Saturday, October 21, 2006

क्या दिवाली? क्या ईद?

अब ये क्या बात हुई? क्या दिवाली क्या ईद! यही सोच रहे हैं ना आप लोग?

हाँ भई, पता है पता है, अब आप लोग तो यही कहेंगे कि -अरे खुरामा खुरामा शादी हुई है..और ये विचार? है ना?

तो जनाब बात ये है कि (शादी के बाद) पहली पहली दिवाली है...तो सारे परिवार के साथ खुशियाँ मनाते, दोस्तों के बीच हुडदंग होता, मगर कहाँ?? घर से कोसों दूर...पड़े हैं अलग-थलग किसी और दुनियाँ में. अकेले-अकेले (हाँ यार..! मैडम तो है, पर मैं - हम दोनों अकेले-अकेले हैं - ऐसा कह रहा हूँ).

दिवाली के पहले की साफ़ सफ़ाई, फ़िर घर की सजावट - फ़ूलों के हार, लाईटिंग वगैरह, फ़िर दिये बाती, नये कपडे, आतिशबाजी, पटाखे, आस पड़ोस में मिलने जुलने जाना, दोस्तों रिश्तेदारों का अपने घर आना.

यह पहली दिवाली होगी जब- हम अपने परिवार के साथ नहीं हैं.

इसके पहले तो ऐसा होता था कि - जहाँ भी होते थे, जैसे तैसे कर के, दिवाली के समय घर पहुँच ही जाते थे. तो इस बार, ऐसा कुछ नहीं है.

और फ़िर ईद! आहा! सिवैयां...शीर खुरमा डली हुई सिवैयां!! अभी तक तो कहीं से इस बार ऐसा कुछ होता नज़र नहीं आ रहा. :(

वैसे, वीकेण्ड जोड़ कर चार दिन की छुट्टियाँ तो हैं - पर वो क्या है ना कि - नंगा नहायेगा क्या, निचोडेगा क्या.
अमा यार आने जाने में ही चार दिन निकल जायेंगे हैं - हाँ कहने को जरुर सिंगापुर "पास" में है.

अब हम यह जरुर सोचते हैं कि काश हमारा परिवार बंगलौर या चेन्नई या फ़िर हैदराबाद में होता, कम से कम डायरेक्ट फ़्लाईट तो होती. अब इंदौर जाना हो तो पहले मुंबई उतरो, फ़िर अगली सुबह इंदौर की फ़्लाईट पकडो.

तो जनाब, आपको बताया जरुर जायेगा कि सिंगापुरी दिवाली कैसी रही - क्या कहा? कब?? अरे यार दिवाली होने तो दो. :)

तब तक तो आप, हमारी दोनों की तरफ़ से दिपावली और ईद की हार्दिक शुभकामनाएँ तो रख ही लीजिए.

मनाएं पर्व,
घर आई घड़ियाँ
है खुशियों की.

दिवाली! ईद!
लो शुभकामनाएँ,
हम दोनों की.


-
प्रणोति व विजय वडनेरे
सिंगापुर.
२१ अक्तुबर २००६

Thursday, October 12, 2006

किस्सा-ए-डुप्लीकेट

आजकल मार्केट में हर जगह डुप्लीकेट आ रहे हैं, और ये USA* manufactured ब्राण्ड धडल्ले से बिक रहे हैं, यहाँ तक की हिन्दी ब्लाग जगत भी इससे अछुता नहीं रह पाया.

खबर है ना आपको?

क्या कहा??  नहीं?? - अरे आजकल एक विशेष टिप्पणीकर्ता, ब्लाग मार्केट में चल रहा है (चल रहा है या रही है -अब इतनी तो तफ़्सील नहीं है हमारे पास), और उनका काम क्या है कि - लोगों के ब्लाग्स पर जाते हैं (पढते है कि नहीं -ये मत पुछना), और बकायदा अपना निशान टिप्पणी के रुप में छोड़ आते हैं.

अब इनके "शिकार लोग" परेशान भी हैं और कुछ (मन ही मन) खुश भी.

खुश इसलिये कि - वाह! चलो ब्लाग पर टिप्पणी तो आई..
परेशान इसलिये कि - वो जनाब नाम किसी और का इस्तेमाल करते हैं; और टिप्पणी कुछ बेहुदा सी करते हैं.

याने एक पंथ  दो शिकार - दो कैसे? - अरे जिसके ब्लाग पर टिप्पणी मारी और जिसके नाम से टिप्पणी मारी.

इन्ही दूसरे टाईप के "शिका र्स" में एक अपने अदद जीतू भैया भी हैं. उनका गम तो और ज्यादा है - अब उन्हे हर ब्लाग पर ज्यादा से ज्यादा चक्कर लगाने पडते हैं और सफ़ाई देते रहना पडती है कि -"वो मैं नहीं था"!!

अंत में थक हार के उन्होने चिठ्ठाकारों के लिये अनाउंस कर दिया कि - "..भाई लोगों देख लो, ऐसा ऐसा हो रहा है...इसमें कोई विदेशी हाथ लगता है.."!

मगर अपने जासूसी / खुरापाती दिमाग में अचानक एक बिजली सी कौंधी कि -

कहीं ऐसा तो नहीं कि - वैसी मेल लिखने वाले खुद ही असली जीतू भैया ना हो....??
हो सकता हो कि "उस"को अपने जीतू भैया पर तरस आ गया हो और ऐसी उसकी तमन्ना हो कि- जीतू भैया- बेदाग रहें.

मगर कुछ भी हो - अपराध तो अपराध ही है - और सजा / प्रायश्चित का फ़ैसला सुनाने का सर्वाधिकार न्यायपालिका के हाथ में है, तो चलिये ढुँढते (यानि आप और हम खेलते) हैं कि - " अपराधी कौन?"

नही....वो क्या है ना कि अब असली नकली का पता तो लगाना ही पडेगा ना..??

तो जासूस विजय उर्फ़ "लोकल शर्लाक होम्स" के फ़ंडे ये है कि  -
  1. सबसे पहले तो हर एक को शक की निगाह से देखो (अगर आपको पुरानी फ़िल्मों के खलनायक के.एन.सिंह या प्राण की तरह एक भौंह टेढी करते आता है तो और बेहतर).
  2. फ़रीयादी को खुद -पाक साफ़ होने का सबूत देने को कहो.
  3. फ़रीयादी को बोलो की 'सो कॉल्ड' आरोपी को पकड़ लाओ या सुराग दो, तो (हमें) आसानी रहेगी (उसे सजा दिलाने/पकड़ने में).
  4. सारे असली लोगों के चेहरे/ब्लाग्स पर मार्क लगा दिया जाय (बकौल फ़िल्म अंदाज अपना अपना).
  5. असली ब्लागर्स के कम से कम ३ फ़ोटो (एक सामने, एक दाँयें और एक बाँये से) खींच कर बाकी सारे ब्लागर्स में डिस्ट्रीब्युट कर दिये जायें, और ये ताकीद कर दी जाये कि उन फ़ोटो से मिलते जुलते चेहरे वाला कोई भी व्यक्ति उनके ब्लाग पर टिप्पणी करता पाया गया तो कंट्रोल रूम में तत्काल संपर्क करे.
  6. अगर ये कोई बहुत ही चालाक अपराधी है तो फ़िर उसे पकडने का सरल तरीका ये है कि उसके किये गये अपराधों पर शिकार अपना खुद का अधिकार जताते चले. इससे अपराधी के ईगो को ठेस पहुँचेगी और वो या तो अपने आप सामने आ जायेगा या फ़िर कोई ऐसा आत्मघाती कदम उठायेगा जिससे वो बेनकाब हो जायेगा.
  7. सारे ब्लागर्स अपने अपने ब्लाग पर नजर गडा के बैठें, और जैसे ही कोई टिप्पणी आये, तुरंत सबको खबर करे और कन्फ़र्म कर ले. और जो भी "अं..आं...म्म्म्म..." इस तरह से बोलता नजर आये तो उसे "प्राईम सस्पेक्ट" की श्रेणी में डाल लिया जाय.
  8. सारे ब्लागर्स टिप्पणियों को सीरियसली लेना ही छोड़ दें, "जो चाहे आये...जो चाहे टिप्पणी करे हमारी बला से.." - टाईप का रुख इख्तियार कर लें. इल्लीगल टिप्पणी करने वाला अपने आप बोर हो कर कन्नी काट लेगा.
  9. अपने अपने ब्लाग्स सेक्युर कर के रखें - खुद लिखें और खुद पढें - और लगे तो (अगर पसंद आये तो) खुद ही टिप्पणी दें (टिप्पणी पर टिप्पणी भी खुद ही दें) - ना होगा बाँस ना बजेगी बाँसुरी.
  10. कुछ नुस्खे "फ़ुरसतिया" जी  के यहाँ से उधार लिये (ताडे) हुये हैं:
    1. सिर्फ़ एक ही ब्लाग ना रखें, एक ही ब्लाग की २ - ३ कापियाँ रखें, जैसे ही किसी एक पर फ़र्जी टिप्पणी दिखे तो, धडाक से दूसरे पर शिफ़्ट हो लो.
    2. जब एक चुर्मुक सी टिप्पणी से इतना डर, तो "भैय्ये..ब्लाग लिखते ही काहे हो??"
  11. अपने ब्लाग में कविताओं, छंदो, हाईकुओं, कुंडलियों के अलावा कुछ लिखो ही मत. और "हर आम-औ-खास" को सूचित कर दो कि -हम टिप्पणी भी उसी फ़ारमेट में स्वीकारेंगे. जो "सच्चा ब्लागर/टिप्पणीकर्ता" होगा वो ही टिप्पणी करने की माथाफ़ोड़ी करेगा.
फ़िलहाल के लिये तो बस, इतना ही.
आगे और ध्यान आयेंगे तो "सर्व साधारण" को सूचित किया जायेगा.

(ही.. ही.. ही ... मैं तो बस्स...ऐसे ही ...सोऽऽऽऽच रहाऽऽऽ था.)


टीप १: USA: उल्लासनगर सिंधी एसोसिएशन (कभी बचपन में सुना था)
टीप २: फ़र्जी टिप्पणीबाज से अपेक्षा है कि वो यहाँ भी पधारे (खातिरदारी का पूरा इंतजाम है)