Friday, May 25, 2007

दो चुटकुले

मौन-उपचार
 
एक दंपति के बीच पिछले कुछ दिनों से खटपट चल रही थी. दोनो को एक दुसरे से बात न करना ही सबसे कारगर उपाय लगा. तो फ़ैसला हुआ कि जो पहले बोलेगा वही हारा हुआ माना जायेगा.
 
रात को सोने के पहले पति को अचानक याद आया कि अगले ही दिन उन्हे अपने काम के सिलसिले से बाहर जाना है और सुबह सुबह ६ बजे की फ़्लाईट पकड़नी है.
 
सो, पहले बोलने (और हारने) से बचने के लिये पति महाशय ने एक कागज के पुरज़े पर लिखा - "मुझे सुबह ५ बजे उठा देना" और कागज बगल में सोई पत्नी के सिरहाने रख दिया.
 
सुबह पति की नींद खुली, देखा घड़ी में ९ बज रहे थे। जाहिर है, वो अपनी फ़्लाईट "मिस" कर चुका था। पत्नी पास में नहीं थी, अलबत्ता उसने अपने सिरहाने एक पर्ची देखी, जिसपर पत्नी ने लिख रखा था - "सुबह के ५ बज रहे हैं, उठ जाओ!"
 
 
शब्द प्रयोग
 
पति ने अखबार की एक खबर पढ कर सुनाई - कि औरतें, पुरुषों के मुकाबले एक दिन में दुगने शब्दों का प्रयोग करती हैं"
 
पत्नी ने कहा - वो इसलिये कि पुरुषों को सुनाने के लिये औरतों को अपनी हर बात दुहरानी पड़ती है।
 
पति - "...क्या??..."
 
 

Wednesday, May 23, 2007

मैं आया....(मेरे लिये)...!!

....एक छोटे से अंतराल के बाद.
 
यहाँ से नदारद रहने के बारे में क्या कहूँ? कैसे कहूँ?...
 
जग्गू दादा की गज़ल का टुकड़ा सुन लीजिये:
 
..जाने वाले गये भी कहाँ...
..जाने वाले गये भी कहाँ,..
..चाँद सुरज घटा हो गये...
 
तो समझ कीजिये कि - हम भी चाँद-सुरज-घटा ही हो गये थे..!!
 
मामला ऐसा रहा कि ऑफ़िस में ब्लागर बंद है,
गुगल (मेल) बंद है..
ये बंद है...वो बंद है...
कुल मिला कर ये है कि हाथ पैर रस्सी से बांध दिये गये हैं,
और कहा जा रहा है कि - काम करो!!
 
भला हो तिकड़मबाज़ों का..कुछ जुगाड़ निकाल ली है।
 
"नारद"जी बोलेंगे (गुल्लु दा की आवाज़ में):
 
..कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में,
कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में,
फ़िर खाक़ अगर हो जाओ तो क्या...
 
मोर्चा संभालने के पहले की छोटी सी तैयारी समझ कर यह पोस्ट ली जाय..
 
शायद कुछ लिखूँ - फ़िर से!! (या यूँ कहें - दिल से)