Tuesday, November 28, 2006

घाटे की बाजी??

"केसिनो रोयाल" हमने अभी तो तक देखी नहीं, मगर, जिस तरह की कहानी, उसके चर्चे (और परखच्चे) सुन रहे हैं, रही सही कसर भी चली जा रही है उम्मीद की कि थियेटर जा के पैसे खर्चने लायक भी है या नहीं? या फ़िर घर पर ही इंतजार करें कि कभी किसी चैनल पर आ जाये या इंटरनैट पर कोई भला मानुस अपलोड कर दे.

अव्वल तो हम किसी फ़िल्लम के बारे में कभी लिखते नहीं...
मगर आज अमित का लेख पढ कर हमने सोचा कि भई विजय, जब लोगबाग फ़िल्मों की बधिया उखाड़ने के लिये उनके नाम का मतबल भी गूगल पर ढूँढ रहे हैं तो जरूर कोई ना कोई बात तो होगी फ़िल्लम में...!!

तपाक से हम भी गूगला -दिये..! अब कुछ विशेष तो ढुँढना नहीं था, सो, जो हाथ लगा परोसे दे रहें हैं.

हमें पता चला कि "जेम्स बाण्ड" सीरिज़ में इसी नाम से पहले भी एक फ़िल्लम आ चुकी है वो भी १९६७ में, और मजे की बात, बिल्कुल इसी तरह की "साधारण" रही थी.
याने अब ये नई वाली जब हमनाम हुई तो साथ ही साथ हमभाग्य भी हो गई.

उसके हीरो थे: पीटर सेल्लर.

आगे, बाकी का किसी को पढना हो तो यहाँ देखें..हम ना करेंगे अंग्रेजी का हिन्दी.!! हाँऽऽ!!

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