Thursday, March 02, 2006

ये हैं हमारे चचा…!!!

आईऐ, आपका तवारूफ़ करवाऐं हमारे एक अज़ीज़ से।

प्यार से हम इन्हें चचा कहते हैं। वैसे तो हम इन्हें काफ़ी इज्जत बख्शते हैं, और प्यार भी करते हैं, पर क्या है ना कि चचा कभी कभी हमसे नाराज़ हो जाते हैं। रूठ जाते हैं। अब क्यों नाराज़ होते हैं ये तो खुद इन्हे नही पता होता। बस्स हो ही जाते हैं। अब नाराज़गी में तो ये क्या करें इसका पता इनको खुद नहीं रहता। कभी ये खुद का नुकसान करते हैं, और कभी जहाँ रहते हैं वहाँ का।

वैसे तो इन्हें काफ़ी समय हो गया है हमारे साथ रहते रहते, पर अभी भी अपनी जड़ों को भूले नहीं है। कभी वहाँ खोदते हैं और कभी यहाँ, गरज ये कि "खुदाई" बिना इन्हे चैन नहीं। इनका बस चले तो ये जहाँ जहाँ जमीन का टुकडा दिख रहा है वहाँ भी खुदाई कर डालें।

एक मजे की बात बताते हैं। वैसे इनकी जन्मभूमि रेगिस्तान में कहीं थी। इनके कई सारे नाते रिश्तेदार अभी भी वहीं रहते हैं। अब रेगिस्तान में कहीं हरियाली तो होती नहीं ना, सो वहाँ इन्हे हरे रंग का महत्व सीखाया इनके एक गुरु ने। उनका आशय यह रहा होगा कि हरे रंग को देख कर अपने लोगों को थोड़ा सुकून मिलेगा और अमन से रहेंगे। मगर चचा ने तो कुछ और ही मतलब निकाल लिया, और बस्स निकल पड़े सारी दुनिया को हरे रंग से रंगने। अब इन्हें ये तो पता नहीं था कि सारी दुनिया थोड़े ना कोई रेगिस्तान है जो हर जगह हरे रंग की जरुरत है। मगर अब इन्हें कौन समझाए।

एक बात और है। पहले चचा के सारे नाते रिश्तेदार छोटी छोटी बातों को लेकर आपस में ही लड़ते रहते थे। यह देख कर इनके बड़े बुज़ुर्गों ने कुछ नियम कायदे लिखे। वैसे मानना पडेगा कि पुराने समय में भी उन लोगों ने काफ़ी आगे का सोचा और बहुत कुछ लिखा और बहुत खुब लिखा। अब देखा जाये तो जो भी लिखा वो सब चचा और चचा के नाते रिश्तेदारों के लिये ही लिखा था, मगर चचा तो चचा ठहरे, उन्होने तो अपनी श्मशीर उठाई और निकल पड़े जो लिखा था वो अमल करवाने। जो मिला उससे ही जिद कर बैठे कि मियां हम तो मानते ही हैं - तुम भी मानो। यह तो वही बात हुई कि - "मान ना मान, मैं तेरा मेहमान"। बरसों बीत गए, पर चचा की श्मशीर नहीं थमी। अभी भी चल ही रही है।

अब चचा की एक और खास आदत है। खुदाई करते हैं और "नेमतें" इकठ्ठा करते चलते हैं। घर में जगह नहीं होती कुछ और समाने की, मगर मजाल है कि खुदाई रुक जाये। पहले से जमा चीज़े धूल खा रही हैं, अटाला हो रही है, उसकी कोई परवाह नहीं। इन्हें तो बस जूनून है खुदाई का। हो सकता हो कि इनका ये सोचना हो कि भई जितनी चीज़े ज्यादा रहेंगी, उन पर हरा रंग करेंगे तो हर तरफ़ हरियाली ही हरियाली दिखेगी। अब ये कहाँ तक सही है ये तो पता नहीं।

मगर हमें तो चचा से बेहद प्यार है। अब जैसे भी हैं, हमारे अपने हैं। पहले भले ही मेहमान थे, मगर अब हमारा ही एक हिस्सा है। इनकी तो ज़बान, तहज़ीब हमें बहुत पसन्द है। बस कभी कभी इनकी हरकतों पर थोड़ा रंज होता है।

कैसे लगे आपको हमारे चचा?? बताईयेगा जरूर!!

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