Tuesday, December 23, 2008

क्या इसे कॉमेडी कहेंगे?

"...पता है? मेरे मम्मी पापा मुझसे बहुत प्यार करते हैं और मेरा बहुत ध्यान रखते हैं। मुझे कैसे पता चला? अरे रोज रात को मेरे मम्मी पापा मेरे सोने तक जागते रहते हैं, और बार बार मुझसे कहते रहते हैं - मुन्नी बेटे चलो सो जाओ, ज्यादा जागना अच्छा नहीं। और तो और, मेरे सोने के बाद भी वो लोग आपस में मेरे ही बारे में बात करते हैं - अरे लगता है मुन्नी उठ गई...नहीं नहीं सो ही रही है...।

मेरे पापा मुझे मम्मी से भी ज्यादा प्यार करते हैं। मम्मी तो मुझे कभी भी दोपहर में घर के बाहर खेलने नहीं जाने देती, पर जब कभी पापा की छुट्टी होती है, तो वो ख़ुद ही मुझे कहते हैं- मुन्नी बेटे जाओ जरा बाहर जा के खेलो, और हाँ, २-३ घंटे के पहले वापस मत आना..."

कल एक चैनल पर एक कार्यक्रम में एक stand-up comedian यह किस्सा सुना कर सबको हँसा रही थी। जज बनकर जो बैठे थे उनमे थे एक मराठी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता-निर्देशक और दूसरे थे एक दिवंगत राजनेता के सुपुत्र। सब लोग ठहाके लगा लगा कर हँस रहे थे। दर्शक दीर्घा में कलाकार के माता-पिता भी बैठे थे, और अपनी पुत्री की "कला(?)" पर मुग्ध हुये जा रहे थे।

मैने गौर से देखा, कलाकार की उँचाई तो बहुत कम थी, मगर बातें बहुत बड़ी बड़ी थी। कलाकार ने बहुत छोटी सी फ़्राक पहनी हुई थी, शायद बौनी कलाकार होगी....अरे! नहीं, कलाकार के माता-पिता भी तो ज्यादा उम्रदराज़ नहीं दिख रहे...अरे! यह क्या, यह कलाकार तो एक छोटी सी बच्ची ही है...वह भी ज्यादा से ज्यादा ८-१० साल की।

- क्या आजकल के बच्चों को ऐसे जोक्स इतने समझ में आने लगे हैं कि वह टीवी शो में प्रस्तुत करने लगें?
- या फ़िर बड़े लोग, बच्चों को ऐसी बातें पुरी पुरी समझा दे रहे हैं, और बच्चे उसमें से हास्य ढुँढ ले रहे हैं?
- या फ़िर बड़े लोग (माँ-बाप) बच्चों को ऐसे जोक्स रटा दे रहे हैं?
- या कहीं बच्चे जरा ज्यादा ही जल्दी "बड़े" तो नहीं होने लगे हैं?

क्या इसे ही कॉमेडी कहेंगे??

Thursday, December 18, 2008

इस देश में कौन क्या है?

ज़रा इस खबर पर गौर फरमाइए:

"Karkare was investigating non Muslims....somebody wanted him to be killed..."
- AR Antulay - Minister of Minority Affairs


इस देश में कौन अल्पसंख्यक है और कौन बहुसंख्यक, मैं यही समझ नहीं पा रहा हूँ।
क्या आप कुछ मदद करेंगे?

(नोट: पुणे के एक मुख्य अंग्रेजी अखबार के प्रथम पृष्ठ पर छपी खबर है)

Monday, December 15, 2008

मेरा देश महान!

एक शूटर (खिलाड़ी), ऑलम्पिक खेल में स्वर्ण पदक जीतता है, हमारी सरकार और अन्य संस्थाएं उसे मात्र ३ करोड़ रुपए बतौर इनाम देती है।

दूसरा शूटर (सैनिक), आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद होता है, हमारी सरकार उसके परिवार को पुरे ५ लाख का मुआवज़ा देती है।

है ना? मेरा देश महान!!

Tuesday, August 12, 2008

अब हमारी बारी

अभिनव बिन्द्रा को लाखों बधाईयाँ!!

वर्षों के इंतज़ार के बाद आखिरकार भारत को एक व्यक्तिगत स्वर्ण पदक मिल ही गया। अभिनव बिन्द्रा की मेहनत रंग लाई और ११ अगस्त को बीजिंग ओलम्पिक में १० मीटर एयर रायफ़ल व्यक्तिगत स्पर्धा में उन्होने प्रथम स्थान पर कब्जा करते हुये भारत का तिरंगा फ़हरा ही दिया।

आज उन्हे बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से लेकर अलग अलग प्रांतों के मंत्रीगण और यहाँ तक कि स्थानीय नेता तक उन्हे बधाई देने में लगे हुए है। मैने आज ही ऑफ़ीस आते आते देखा किसी तो स्थानीय नेता का होर्डिंग लगा था चौराहे पर अभिनव बिन्द्रा को बधाई देने का। रातों रात लग गया भई, मानो बता रहे हों कि- देखा हमने पहले बधाई दी है।

गुगल पर खोजने पर पता पड़ा कि अमिताभ बच्चन भी कुछ तो बोले हैं इस सफ़लता पर। अच्छा ही तो है, उपलब्धि की तो सब जगह प्रशंसा होनी ही चाहिये।

और अब आयेगी बारी - इनामों की (या कम से कम इनामों की घोषणाओं की)।

महाराष्ट्र और कर्नाटक के मुख्यमंत्री कार्यालय से तो १०-१० लाख के नकद पुरस्कार की घोषणा तो आ ही चुकी है। देखते हैं और कहाँ कहाँ से क्या क्या आता है। अगर कोई हिसाब रख सके तो अच्छा होगा कि कितनी घोषणा अमल हुई और कितनी सिर्फ़ घोषणा ही रह गई।

मगर अपनी बात कहूँ तो मैं तो इंतज़ार में हूँ अभिनव बिन्द्रा के वापस भारत लौटने के। मुझे इस बात में खासी दिलचस्पी रहेगी कि जब ये ऑलम्पिक पदक विजेता खिलाड़ी वापस भारत लौटेगा तो उसके साथ क्या क्या होगा, या फ़िर क्या क्या नहीं होगा।

- जिस तरह क्रिकेट खिलाड़ियों का स्वागत हुआ था, क्या इस खिलाड़ी का भी वैसा ही स्वागत होगा?
- क्या लोगों में इसके लिये वैसी ही दिवानगी देखने को मिलेगी, जैसी क्रिकेट खिलाडियों के लिये होती है?
- क्या हजारों की संख्या में लोग इस खिलाड़ी को लेने हवाई अड्डे पहुचेंगे?
- हवाई अड्डे पर इस खिलाड़ी की फ़जिती की खबर तो नहीं सुनने को मिलेगी ना?
- क्या नामी व्यावसायिक घरानों की तरफ़ से इसपर भी इनामों की बरसात होगी?
- क्या कोई रिलायंस, किंगफ़िशर या फ़िर कोई शाहरुख खान इस खेल या इसके खिलाड़ितों को प्रायोजित करेगा?
- क्या भारत में इस खेल का स्तर बढेगा, ताकि और नये खिलाडी इसकी तरफ़ आकर्षित हों?
- क्या इस खेल के खिलाड़ियों को वह सारी सुविधा मिलेगी जिससे आने वाले समय में हम और पदकों की आशा रख सकें?

मेरे ख्याल से तो देश की जनता के लिये वह असली इम्तिहान की घड़ी होगी जब अभिनव बिन्द्रा भारत की जमीन पर वापस पैर रखेगा। तब हम सबको यह जाहिर कर देना होगा कि हम क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों को भी तवज्जों देते हैं, और हम अपने देश के लिये कोई भी सम्मान जीतने वाले हर खिलाड़ी से एक समान प्यार करते है।

अभिनव ने तो अपना काम कर दिया, दोस्तों अब हमारी बारी है।

Friday, August 08, 2008

एक दुखद समाचार और एक गहन विचार

मैं पुणे में जिस सॉफ़्टवेअर कंपनी में काम करता हूँ, उस कंपनी के ऑफ़िस के सामने एक और सॉफ़्टवेअर कंपनी है। अभी बुधवार रात को उस कंपनी के एक कर्मचारी ने ऑफ़ीस के ६ वें माले से कुद कर आत्महत्या कर ली। वो भी एक सॉफ़्टवेअर इंजीनियर ही था, जिसने यह कदम उठा लिया|

"जैसा कि अखबार में आया, वह पढने में तेज था, मेरिट में आने वाला और तो और आई आई टी पास आउट। वह अपने काम को लेकर बहुत चिंतित था। हालाँकि उसने किसी पर भी अपने इस कदम की जवाबदारी नहीं डाली है, पर उसके अंतिम संदेश में यही है कि वह काम का तनाव नहीं सहन कर पा रहा है, और प्रतिभाशाली होते हुए भी अपने अधिकारियों और स्वयं खुद कीआशानुरुप काम नहीं कर पा रहा है, और इसीलिये वह यह कदम उठा रहा है। सो अंतत: उसने वह कदम उठा ही लिया, और अपनो को रोता-बिलखता छोड़ कर चला गया दूर, बहुत दूर। कभी वापस ना आने के लिये। " *

ईश्वर दिवंगत की आत्मा को शांति प्रदान करे।

यह घटना हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबुर करती है, और हमारे सामने कई सवाल खड़े करती है।

- क्या सिर्फ़ काम ही सबकुछ है?
- क्या आजकल नौकरीपेशा व्यक्ति काम के लिए जी रहा है या जीने के लिये काम करता है?
- क्या companies और managers, अपने मातहतों को सिर्फ़ Resource की तरह ही देखते और बर्ताव करते हैं?
- क्या companies को सिर्फ़ काम पुरा होने से ही मतलब है?
- क्या किसी manager ने अपने मातहत को कभी यह कहा है कि - अब बस करो! बाकी अगले दिन देखना!!
- इतना काम सिर्फ़ एक के कंधों पर किस तरह से आ सकता है कि उसे ऐसा कदम उठाने की नौबत आ जाये?
- ज्यादा काम के साथ साथ इस क्षेत्र में काम का ना होना या कम काम का होना या मनोकुल काम का ना होना भी कुण्ठा बढाता है।
- क्या खुदकुशी करना आसान है - समस्या का समाधान ढुँढने से?
- अगर ज्यादा ही तनाव हो तो क्या छुट्टी लेकर घर पर नहीं बैठा जा सकता? ताकि परिवार के साथ समय गुजार सके?
- अगर वह भी नहीं तो भी आजकल जितने अवसर सॉफ़्टवेअर के क्षेत्र में है क्यों ना उनका उपयोग किया जाय और नौकरी ही बदल ली जाय। नई जगह पर नये लोग मिलेंगे और नया काम। और तनाव? यकिन मानिये, नई जगह पर एकदम से तो वह नहीं ही मिलेगा। सो कुछ समय तो आपको मिल ही जायेगा खुद को फ़िर से तैय्यार करने का।

क्या किसी के पास कोई जवाब है इन सवालों का??

* यह खबर पुणे के स्तरीय अखबारों में छपी है। अपनी तरफ़ से कुछ भी नहीं जोड़ा है और किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की कतई-कतई मंशा नहीं है। दिवंगत के परिवार के दुख में हमें भी शामिल समझें।

Tuesday, August 05, 2008

क्या ऐसे रिकॉर्ड्स होना चाहिये?

आज ही के अखबार में पढा, एक युवक जो कि शायद पुणे का ही होगा, उसका नाम "लिम्का बुक" में आने वाला है (या शायद आ भी गया है)। "लिम्का बुक" तो आपको पता ही होगा - अरे "गिनीज़ बुक" की छोटी बहन। तो, जब नाम "लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स" में छप रहा है तो कोई ना कोई रिकॉर्ड भी बना होगा ना, है कि नहीं?

क्या आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि उसके नाम क्या रिकॉर्ड बना है?
- क्या कहा?
- नहीं लगाना है?
- मैं ही बताउँ?
- चलिये, मैं ही बता देता हूँ।

क्या रिकॉर्ड है, सीधे-सीधे बताने के बजाय मैं पहले उस रिकॉर्ड के बारे में बताता हूँ। यह एक ऐसा रिकॉर्ड है-

- जिसको बनाने के लिये उस युवक को 'अक्षरश:' कोई मेहनत नहीं करना पड़ी।
- ना ही उसने इस बारे में कभी, कुछ सोचा होगा।
- ना ही उसके घरवालों ने इस बारे में कोई मदद की।
- और ना ही उसके यार-दोस्तों ने।
- ना 'इससे' उसे कोई फ़ायदा है (सिवाय रिकॉर्ड बनने के), और ना कोई नुकसान।
- ना ही दूसरों के लिये यह कोई फ़ायदे-नुकसान की चीज है।
- यहाँ तक की यह युवक तो पैदा ही इस रिकॉर्ड के साथ हुआ था।

कुछ समझे क्या? मैं बात कर रहा हूँ एक तरह की physical deformity (शारीरिक विकृति) की।
जी हाँ, अगर चिकित्सा शास्त्र से पुछा जाएगा तो वहाँ से तो यही जवाब आएगा - शारीरिक विसंगति/विकृति/बेढंगापन।

अरे! अरे! कुछ और मत सोचिए। उस युवक के दोनो हाथों में पाँच के बजाय सिर्फ़ छ:-छ:, और एक पैर में छ: उँगलियाँ हैं।

अब भला बताईये, यह कैसा रिकॉर्ड बना? और किसने बनाया? और क्या सिर्फ़ इस आधार पर किसी को भी प्रसिद्धि मिल जानी चाहिये?
माना, अगर "बुक" में किसी ना किसी का नाम ही लिखना है तो क्यों ना यह श्रेय उस युवक के माता-पिता को दिया जाना चाहिये?

और सिर्फ़ यही नहीं, ऐसे ही कई कई मामले रिकॉर्ड बनकर जहाँ तहाँ "बुक्स" में छपे हैं, और छप रहे हैं।
क्या ऐसे मामलों को रिकॉर्ड कहना उचित होगा?

और फ़िर अगर ऐसे ही रिकॉर्ड बनते हैं तो फ़िर तो आतंकवादियों की पुरी की पुरी जमात ही रिकॉर्ड बुक में जगह पा जायेगी। अरे! वो ही तो एक ऐसी प्रजाति है जो इंसानों के लिये अनिवार्य २ अवयवों के बिना भी जीवित है। आपको तो पता ही होगा ना? फ़िर भी सुन लीजिये:

१. दिल, और
२. दिमाग!

आप क्या कहते हैं??

Wednesday, July 30, 2008

पुणे में भूकंप!

२९ - ३० जुलाई की दरमियानी रात को अचानक १२:३० - १:०० बजे के करीब मुझे कुछ अजीब सा महसूस हुआ। ऐसा लगा कि चक्कर से आए। ऐसा सिर्फ़ कुछ पलों के लिये ही हुआ। फ़िर वापस सब कुछ सामान्य सा हो गया। मैने भी फ़िर कुछ ध्यान नहीं दिया।

सुबह तक भूल भी चुका था, अखबार में भी कुछ नहीं। ऑफ़ीस पहुँचा, वहाँ भी सब सामान्य। लँच करते समय एक दोस्त ने बताया, रात को भूकंप आया था। तब कहीं जा कर लगा कि हो ना हो "वह" अजीब सी जो हरकत थी - हो ना हो भूकप की ही होगी।

सोच कर ही सिहरन-सी आ गई, मेरा फ़्लैट चौथे माले पर है, अगर ज्यादा शक्तिशाली भूकंप आया होता तो?? बाप रे! अपन को तो पता भी नहीं चलता कि कहाँ से कहाँ पहुँच गए।

अब कहीं जा के ऑफ़ीस में लोग उसके बारे में बात कर रहे हैं, शायद ३-५ रिक्टर स्केल का था, कोई आधिकारिक पुष्टि तो अभी तक पढी नहीं, हो सकता होकि लोकल न्यूज़ चैनलों पर चल रही हो।

आपको कुछ खबर है क्या??

(आप लोगों की जानकारी के लिये - मैं फ़िलहाल पुणे में रहता हूँ)

Friday, July 25, 2008

बैंगलुरु में विस्फोट के क्या मायने हैं?

सुनने में आ रहा है कि आज बैंगलुरु में कुछ बम धमाके हुये।

कुछ प्रसिद्ध सॉफ़्टवेअर कंपनीज़ को भी निशाना बनाया गया। मुझे तो ऐसा लगता है कि यह और कुछ नहीं "जीत" की खुशी में कुछ आतिशबाजियाँ की गई हैं। आखिर हो भी क्यों ना, लोकतंत्र जब जब हारता है, "उन" लोगों की जीत ही तो होती है।

अच्छा है, कुछ समय बाद जब देश में सिर्फ़ जब संसद और उसे चलाने वाले ही बचेंगे तो ही शायद यह सब बचेगा।
अरे भई, जब सब पढे लिखे, साधारण लोग अपने और अपने परिवार की सलामती के लिये किसी दूसरे मुल्क में विस्थापित हो जायेंगे तो वही लोग बचेंगे ना जिन्हें यही सब करने में अपना हित दिखता हो।

आम आदमी आखिर बेचारा जाये कहाँ??

Tuesday, July 22, 2008

क्या यही है - अनक्लियर-सी, न्युक्लियर डील?

अभी अभी एक फ़ॉर्वर्ड इमेल आया।

इसको हिन्दी में ट्रांसलेट करने का तो समय नहीं मिला, सो ऐसे-कि-ऐसे ही चेपे दे रहे हैं।
आप पढिये, और बताईये कि जो कुछ लिखा है वैसा ही हो रहा है क्या? और जो हो रहा है वह ठीक हो रहा है या फ़िर दिल्ली वालों के लिये "मैं" से बढकर और कुछ नहीं है?

मैं ज्ञानीजनों से विनती करता हूँ कि इस संदर्भ में हमारे भी ज्ञानचक्षु खोले जायें।

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There are lot of talks about 1 2 3 Agreement between India & USA and it almost led to the topple of Central Government. In this mail I am trying to explain the commercial & technical aspects relating to this Agreement which I have read and sharing with you.

What is 123 Agreement?


This is called 123 Agreement because this comes under USA's Atomic Power Act Section 123.
Let's see how India's (Indians?) Sovereignty & Independence are pledged...


(1) After this Agreement USA will supply all fuel, machinery / equipment & technology to India for producing Nuclear Power.


(2) All these days from about 22 Nuclear Power Plants, India is producing power as well as Atom. It's a high security / secret that from where which is produced, how much is produced, where it is supplied, what research is being done with that, etc. to anybody. But if we sign this Agreement, we have to disclose these secrets and also agree to 14 of our Nuclear Power Plants to be under the scanner of International Atomic Power Organization.


(3) The fuel utilised to produce Atomic Power can be recycled for reuse and this plant will be under direct supervision of IAPO.


If India does nuclear test, this agreement gets cancelled. But:-


(1) USA will take back all the machinery / equipments / technology supplied to India thus far.


(2) Those 14 plants will continue to be under scanner irrespective of the status of the agreement.


On the other hand, if any of the commitments given by USA is breached by them, then there is no clause for cancelling this agreement.


The agreement is apparently like this...USA can either hug India or slap India. India will not ask why are we hugged or why are we slapped. On the other hand, India cannot hug or slap USA for breach of agreement.


This is only capsule so that easy to read and digest.


Subject: India Pledged.... Part 2


Requirement of Power


The most important requirement for India's Economic Growth in the coming years will be the power & infrastructure. The argument put forth favoring the 123 Agreement says that we need Nuclear Power Production to be increased to meet the demand.


Power Production in India


Presently following are the figures:


Thermal Power 66%


Hydel Power 26%


Solar & Wind Power 5% - Presently Rs.600 Crores are spent for producing this power.


Nuclear Power 3% - If this is to be increased to 6%, it requires additional Rs.50,000 Crores.


Naturally it will be wise to increase other 3 modes of power production rather than the expensive & dangerous Nuclear Power. Isn't??


URANIUM


We used to import Uranium from various other countries. After the Pokran Test, we are not getting it. To augment the supply, we need to sign the 123 Agreement to get Uranium from USA. But we will have to declare to USA from which power plant India takes raw material for producing Atom Bomb. Why should we disclose our internal secrets to those rascals? Will any one allow an outsider to continuously monitor what's happening in your Hall & Kitchen of your house? Other study reveals that Uranium is available in India aplenty. Only hurdle is the acquisition of land. To produce Atomic Power & Bomb in the next 40 years, the requirement of Uranium is 25,000 MT whereas the availability is 78,000 MT across India.


PLUTONIUM


Presently 35% of Plutonium is used to produce Atomic Bombs. After signing the Agreement, we will be allowed to use only 10%. Who are those rascals to restrict the usage of our natural resource ? That is though you are capable of cooking & eating 10 idlis as your breakfast, you are allowed only 3 idlis henceforth. How can it be? Why should we accept this?


THORIUM


As told by Dr. APJ, we have abundant Thorium. In fact we are the 2nd largest producer of Thorium next only to Australia. India has to explore this further for producing power. For your information, in
South India - particularly around Kanyakumari, the availability of Thorium is abundant.

INDIA-IRAN-CHINA


USA does not like the amicable relationship between India-Iran and also
India-China. If India-China relationship gets stronger, then both these can rule the Eastern Part of the Globe which USA wants to break as per their divide & rule.

By signing this agreement, USA wants India to depend on it for producing power which is going to be a crucial factor in future. There is a talk of bringing Natural Gas from Iran to India with a big pipeline project.
USA doesn't like this proposal.

Atomic Power Technology


Whether power is produced or Bomb is produced, using Atomic power without spoiling the infrastructure and without allowing the radiation is always under threat. Moreover preserving the wastes coming out of Atomic Power Plants is expensive & unsafe.


There was an accident in Three Miles Island in USA. To close this plant nearly USD 200 Crores spent with tons & tons of concrete but yet to be fully closed.


In another accident at Soviet Union's Serbia Plant, even the next generation child are affected due to the radiation.


It will be very very expensive to defuse & close down an Atomic Power Plant than its construction cost.


France


France has got 56 Nuclear Power stations producing 73% of the country's
total power requirement. They are catching up the problem of eliminating the wastes / emissions from out of those plants at the same time increase the power production capacity. Government of France is now thinking how to reduce the power consumption in the country.

Conclusion


In view of the above danger, rather than signing the agreement and pledging India to USA, it will be prudent to increase the Solar & Wind Energy and more importantly Hyder Power Production can be increased by linking all rivers across India and by constructing DAMS. (Ofcourse Dam construction projects can be given to L&T's B&F Sector:-)


The whole process of this Agreement started in the year 2005 when Manmohan visited USA. In a span of just 2 years a major decision of signing this agreement has taken place with political motive. On the contrary, neither this Government nor any other earlier Central Government could not amend the Constitution thereby nationalise the rivers across the country thereby effectively utilise the water resources for both Agriculture purpose and producing Hydel Power. What an irony?


Whenever someone is helping the needy, you can't expect the TERMS AND CONDITIONS BETWEEN THE needy and the helper to be EQUAL??? BUT


(1) the helper's ulterior motive should be seen with broad eye because he is capable of digging a grave behind you, and,


(2) better to be self-sufficient and explore new avenues with available resources.


INDIA-CHINA-USA


India is very rich in Culture; follow Religions, Value Ethics, Level of
Education is Very Good.

China is also rich in Culture, follow Religion, better disciplined.

USA does not have Culture, does not have Ethics, only want power over
others. Particularly wants a firm footing in South Asia. Remember the introduction EURO by European Countries and it is stronger than Dollar?
So their "DAL" cannot be boiled at "EUROPE". They are trying in India as already Pakistan is in their clutches.

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Friday, July 11, 2008

इंदौर में आपातकाल, फ़्लैग-मार्च (होने वाला है)

बंधुओं,

मैं कुछ दिनों की छुट्टियों में अपने "गाँव" जा रहा हूँ।
बहुत दिनों से पढ रहा हूँ कि दंगे हो रहे हैं, फ़लाने हो रहे हैं ढिकाने हो रहे हैं, आखिर मैं भी तो देखुँ कि क्या हो रहा है?

तो रविवार से इंदौर में फ़्लैग-मार्च शुरु!!
:)

(मिलते हैं आप लोगों से, वहीं पर!!)

Monday, July 07, 2008

कुवाँरियों के हित में जारी

यह बातचीत है दो सहेलियों की. पहली जिसको कुछ शादी के लिये रिश्ते आये हैं और दूसरी जो अच्छे रिश्ते छाँटने में पहली की मदद करती है।
अपनी सहुलियत के लिए हम इन सहेलियों के नाम रख देते हैं।
जिसको रिश्ते आएं हैं - नित्या, और इसकी सहेली - विद्या।

विद्या: hey नित्या डियर, क्या बात हो गई जो मुझे इतना urgent में फ़ोन करके बुला लिया?
नित्या: आओ विद्या. तुम्हे याद है कुछ समय पहले मेरे parents ने computer से मेरी कुँडली बनवाई थी? मेरे लिए एक अच्छा सा लड़का ढुँढने के लिए?

विद्या: हाँ हाँ, याद है ना। फ़िर तुमने दो-चार मेट्रिमॉनी websites में register भी तो किया था. क्यों कुछ ढँग के लड़के आए हैं क्या?
नित्या: हाँ आए हैं ना. इतने सारे आए हैं कि तुम्हे क्या बताऊँ. पर उनमे से ५-६ ही हैं जिनपर विचार किया जा सकता है।

विद्या: अच्छा। तो फ़िर डियर, confusion क्या है?
नित्या: अरे! जो ५-६ लड़के Mom-Dad ने select किए हैं ना, वो सब-के-सब Software Engg. हैं। ऐसा लगता है कि यह Software Engg. आजकल दूसरी field की लड़कियाँ चाहते हैं शादी के लिए।

विद्या: अच्छा?
नित्या: हाँ, और चुँकि तुम भी एक Software Engg. हो, तुम सही लड़का चुनने में मेरी मदद कर सकती हो। है ना??
विद्या: हाँ, हाँ, जरुर, क्यों नहीं। तुम एक एक करके उनके बारे में बताओ.

नित्या: यह लो पहला। यह एक मैनेजर है।
विद्या: मैनेजर? ओह! फ़िर तो यह हमेशा यही जताता रहेगा कि यही सबसे ज्यादा व्यस्त है, पर असल में खुद कुछ नहीं करेगा। यह तुमको सिर्फ़ एक किलो चावल देकर सारे के सारे गाँव के लिये खाना बनाने के लिए कहेगा। यह तुमको मटन दे कर "चिली चिकन" बनाने को कह सकता है। और अगर तुम कहोगी भी कि तुम नहीं बना सकती, वो नहीं मानेगा। वो तुमसे खुब मेहनत करवाएगा। और तो और वो तुमको nigh shift allowance भी देने का वादा करेगा, पर देगा कभी नहीं। अगर तुम साफ़ मना करोगी कि दिन रात मेहनत कर के भी मटन से "चिली चिकन" नहीं बन सकता तो भी वो नहीं मानेगा, और तुमको हर तरफ़ से यह मानने पर मजबुर करेगा कि वो ही सही है।

नित्या: बाप रे!! इतना खतरनाक? इससे तो बच कर ही रहना पडेगा। चलो यह देखो, यह दूसरा एक Test Engg. है।
विद्या: अरे! यह तो और भी खतरनाक है। तुम चाहे जो भी करो, जैसे भी करो, यह बिना भूले, बिना गलती के तुम्हारे काम में "गल्तियाँ" ही ढुँढेगा। अगर तुम इसे १० अलग अलग dishes भी बना कर खिलाओगी तो भी यह उनमें से यह तुरंत बता सकता हि कि किसमें नमक कम पड़ा है। अगर तुम इसे कहोगी कि -कम से कम इतना ही कह दो कि खाना अच्छा बना है - तो यह कहेगा कि - अच्छा बनाना तो तुम्हारी duty ही है। यह हर बात में सिर्फ़ और सिर्फ़ Testing ही करेगा।

नित्या: इसको भी reject करो। अगला एक Performance Test Engg.
विद्या: यह भी एक नमुना ही है। अगर कभी सारा खाना अच्छा भी बनी ना, तो भी यह कहेगा कि इतना time क्यों लगा? अगर तुम coffee बनाने में 10 मिनट लगाओगी तो यह कहेगा कि 10 मिनट क्यों लगे? यह काम तो 5 मिनट में भी हो सकता था। भले ही तुम कहो कि तुमने instant coffee नहीं filter coffee बनाई है, तो भी यह नहीं मानेगा। यह तुम्हारे किए हुए सारे कामों के बारे में ऎसा ही कहेगा. अगर तुम शादी के बाद भी "make-up" करना चाहती हो तो इससे शादी करने से पहले 100 बार सोच लो।

नित्या: अरे यार! तो क्या तुम कहती हो कि software engg. से शादी करना ही नहीं चाहिये?
विद्या: ऐसा किसने कहा? इनमें एक प्रकार और होता है -जो शादी करने के लिए बिल्कुल फ़िट होता है।

नित्या: ऐसा? तो फ़िर बताओ ना, वो कौन सा प्रकार होता है?
विद्या: उन्हें Developers कहा जाता है।

नित्या: अरे वाह! तो फ़िर तुम इन Developers के बारे में कुछ बताओ ना!!
विद्या: यह तो सबसे अच्छे टाईप के लोग होते हैं। यह सारा काम खुद करते हैं। खुद का काम तो करते ही हैं, साथ में दूसरों का काम भी कर लेते हैं - वो भी बिना किसी शिकायत के। इन्हे बस जोश दिलाते रहना पड़ता है। इनके साथ बस एक ही problem होती है - इन्हें कुछ भी कहो, यह हमेशा कहेंगे कि इन्हें सब पता है। वैसे यहाँ तक भी ठीक है। तुम इन्हें चाहे जितना काम दे सकते हो, यहाँ तक कि चाहे जितना मार सकते हो, बस एक शर्त है, इन्हें बार बार यह सुनना होता है -"अरे वाह! तुम कितने अच्छे हो, कितना अच्छा काम करते हो.."

नित्या: Great! यह तो बहुत अच्छे "पति" बन सकते हैं। मुझे लगता है कि मैं ऐसे ही किसी Developer के साथ ही खुश रह पाउंगी। चलो मैं तो चली - किसी Developer को ढुँढने। Many Thanks विद्या, तुमने काफ़ी अच्छी सलाह दी। Thanks a ton!! Bye!!

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सूचना: उपरोक्त बातचीत दो काल्पनिक व्यक्तियों के बीच, किन्तु सत्य तथ्यों पर आधारित, है। अगर आपका नाम उपर कहीं आया है तो इसे सिर्फ़ एक इत्तेफ़ाक ही समझें।
उपसूचना: उपरोक्त तथ्य are subject to market risk, और बाकी जानकारियाँ check करने के बाद ही "पति" select करें।

Friday, July 04, 2008

मैं चाहता हूँ

मैं चाहता हूँ, फ़िर से...

- ढेर सारी कॉमिक्स पढना...
- दोस्तों के साथ खेलना...
- बारीश में भीगना...
- कागज़ की नाव बनाकर बहते हुये पानी में तैराना...
- सायकल पर स्टंट्स करना...
- सायकल खोल-खाल कर फ़िर से कसना...
- खुब खुब फ़ुटबाल खेलना...
- किसी पहाड़ पर चढना...
- खुब सारा तैरना...
- रेत में घरोंदे बनाना...
- पैराशुट बना कर उडाना...
- चित्रकारी करना...
- मिट्टी से मुर्तियाँ बनाना...
- गत्ते से घर बनाना...
- तार-मोटर वगैरह जोड कर सर्किट-मॉडल्स बनाना...
- दशहरे के रावण का पुतला बनाना...
- एल्युमिनियम के तार को मोड़ कर मॉडल्स बनाना...
- गुलेल बनाना...
- खिडकियों को ढँक कर कमरे में प्रोजेक्टर से फ़िल्म चलाना...
- धनुष-बाण बना कर चलाना...
या फ़िर कभी "कुछ भी" ना करना...

आप क्या चाहते हैं?

Wednesday, January 23, 2008

इन्हें ऐसा आईडिया और इतना पैसा कौन देता है?

मैं मैडमजी से कुछ कहना चाहता था, पर उन्होंने इशारे से मुझे चुप कर दिया. वो कुछ समझने की कोशिश कर रहीं थीं.

मैंने तंग आकर अपना लैपटॉप चालू कर लिया ताकि मैं कुछ काम कर सकू. यह देख कर मैडम ने आँखे तरेरी - कुछ इस अंदाज से कि - कभी तो मेरा साथ दिया करो.

उनकी आज्ञा सर माथे पर. लैपटॉप साइड में रखकर मैं भी समझने की कोशिश करने लगा.

यूं तो मैं ख़ुद को बड़ा समझदार समझता हूँ, पर उस वक्त हर चीज/बात मेरे सर के ऊपर से जा रही थी. मेरी सारी कोशिशें बेकार हो रही थी. मुझे ख़ुद पर झल्लाहट भी होने लगी थी.

थोडा समय बीतते न बीतते मैडम ने भी हथियार डाल दिए. और मौका देख कर मैंने भी अपना लैपटॉप चालू कर लिया. मगर उत्सुकता तो थी ही, सो, बीच बीच में मैं भी सर उठा कर देख रहा था. पर जितना दिमाग लगाता उतना ही कन्फ्यूज होता जा रहा था.

कभी कभी मैडम से नजरें मिलती थी, दोनों बिना किसी भाव के एक दूसरे को देखते थे, कभी रोनी सूरत बना कर एक दूसरे को दिलासा देते थे, कभी अचानक ख़ुद पर ही जोर से हँस कर माहौल सामान्य करने की चेष्टा करते थे.

हम दोनों ही अब इस बात का इंतजार कर रहे थे कि कब यह प्रताड़ना ख़त्म होगी. कब हमे इससे निजात मिलेगा.
हम दोनों ही देख रहे थे कि पैसा तो खूब खर्चा किया हुआ है, मगर फ़िर भी किसी चीज की कमी बुरी तरह खल रही थी.

उस न दिखने और न समझने वाली चीज को हमने खूब खोजा मगर अफसोस वो हमे कहीं नजर नहीं आई. एक लड़का था, और एक लड़की भी. अनजाने चहरे थे. साथ में और भी लोग थे. अधिकतर जाने पहचाने. कुछ तो बोल रहे थे. और बड़ी देर से बोल रहे थे. समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या बोल रहे हैं, और क्यों बोल रहे हैं.

लडके लड़की को बोलना आता है, ये दिखाने के लिए उनसे क्या क्या नहीं बुलवाया गया, सुनते सुनते हमारे सर में दर्द हो उठा, बेचारों को बोलते समय कितना कष्ट हुआ होगा. ऐसा लग रहा था -मानो तेज तेज बोलने की स्पर्धा हो रही ही. लडके ने "gym" में मेहनत की है - ये बताने के लिए उसे क्या क्या " नहीं" पहनाया गया और लड़कियाँ तो जैसे होती ही हैं शरीर दिखाने के लिए.

कितना खर्चा किया गया होगा, ये सोच कर मैं बड़ा दुखी हो जाता हूँ. किसी एक के दिमाग की उपज (या सनक) के कारण कभी कभी ऐसी चीज सामने आ जाती है तो जो ना निगली जाती है और ना उगली जाती है.

मैं तो यह सोचता हूँ कि कोई अपना पैसा किस तरह से इस तरह की चीज बनाने में लगा सकता है? किसी के पास भंसाली जी का इमेल पता या फ़ोन नम्बर हो तो मुझे दीजियेगा - मुझे पूछना है उनसे - इसे बनाने का आईडिया आपको कहाँ से मिला? और कृपया मुझे बता दें कि इसकी कहानी क्या है? और आपके आसपास क्या ऐसा कोई नहीं है जो आपको सही सलाह दे सके?

हमारा तो ये अनुभव रहा "सांवरिया" देख कर. आप अपना अनुभव बताएं.

(कृपया ध्यान दें: यह मूवी रिव्यू नहीं है, इसे आईडिया रिव्यू कह सकते हैं.)

Wednesday, January 16, 2008

क्या सभी इससे चिढ़ते हैं?

 
मैं बात कर रहा हूँ ये अपने गुगल ट्रांसलिटरेशन के गजेट की. जो आजकल बहुत प्रचलित हो रहा है, और लगभग सभी ब्लाग्स पर नजर आ रहा है.
 
वैसे तो ये बड़ा अच्छा टूल है, पर इसमें एक ख़राब बात है और वो है इसका "फोकस".
 
अक्सर ये गजेट ब्लॉग के आख़िर में लगा होता है, और जैसे ही पेज लोड होता है, इसके फोकस के कारण पेज स्क्रोल होकर सबसे नीचे चला जाता है और मुझे इस बात से बड़ी चिढ होती है.
 
अरे भाई, जब मुझे कुछ ट्रांसलेट करना ही नही है तो मैं वह गजेट भी क्यों देखना चाहूँगा? कई बार तो ऐसा हुआ कि मैंने एक ब्लॉग पढा और दूसरे पोस्ट पर क्लिक किया, दूसरा पन्ना खुला मगर फोकस डायरेक्ट कहीं तो भी एकदम नीचे चला गया. और मैं ढूँढता ही रह गया कि अरे मैं कहाँ था और कहाँ पहुँच गया.
 
मेरे ख्याल से टूल में तो कोई बुराई नहीं है, पर इसका फोकस "सेट" नहीं किया होना चाहिए.
 
आपका क्या ख्याल है??