Thursday, November 30, 2006

गहरा षडयंत्र

मैं आज आप सभी भाई बंधुओं का ध्यान एक "गहरे षडयंत्र" की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ।

आज (इन्फ़ैक्ट - कल, टू बी मोर प्रिसाईज़) मेरे साथ हुआ, हो सकता है आगे भी किसी और के साथ ऐसा हो जाये, सो पहले ही आपको आगाह कर देना चाहता हूँ।

आपको पता ही होगा कि आजकल कोई भी मशहूर चोर, चोरी के बाद मौका-ए-वारदात पर अपना "हस्ताक्षर" छोड़ जाता है ताकी लोग जान जायें कि ये किसकी "करतूत" है (अब ये भी नहीं पता तो भई "धूम २" देख लो) ठीक इसी तर्ज पर आजकल ब्लाग जगत में भी एक इसी तरह का क्रिमिनल खुल्ले आम घुम रहा है।

उस "क्राईम मास्टर गोगो" ने भी अपना एक स्टाईल विकसित कर लिया है। वैसे वो "क्रिमिनल" है तो काफ़ी होशियार। किसी का भी गला इस तरह से काटता है कि कटने वाले को पता भी नहीं चलता कि कब गर्दन कट गई। क्या कहा? यकीं नहीं होता, हमारे आर्काईव से यह खबर पढें। अब तो आया ना यकीं?

तो मैं बता रहा था कि किस तरह से इस मास्टर माईंड क्रिमिनल ने अपना टेरर (आतंक) फ़ैलाया हुआ है, कि अगर कोई क्राईम किसी छोटे मोटे चोर ने भी किया हो तो पहला "शक" डायरेक्ट और बिलाशक "क्राईम मास्टर गोगो" पर ही चला जाता है। और वो ही सारा का सारा "क्रेडिट" ले जाता है।

अब आप ही कहो, कोई भला मानुष, दिन भर की हाड़-तोड़ मेहनत के बाद, कुछ नेक काम करे, और उस पर भी उसका क्रेडिट कोई भलता ही ताड ले, तो दिल दुखेगा कि नहीं? बताओ..! बताओ..!! टेल ..टेल..!!

अब मैं यहाँ क्राईम के शिकार और क्रिमिनल का अता पता तो नहीं बताता...! मगर हाँ, क्राईम सीन १ और क्राईम सीन २ पर जरुर ले चलता हूँ. इसके पहले कि कोई आ के सबूत मिटा जाये, आप सब गवाहों की लिस्ट में आ जाओ।

जहाँ तक षडयंत्र की बात है - वो ऐसा है कि - बड़ी मछली छोटी मछलियों को ऐसे ही तो खा जाती है - जब मार्केट में बड़े बड़े लोग ही सारे क्राईम करेंगे तो हम जैसे छोटे-मोटे उठाईगिरों का पता नहीं क्या होगा? आज एल मामूली सी टिप्पणी के जरिये नाम चुरा लिया गया है, कल हो सकता है मेरी पोस्ट ही तड जाये!! आप लोग भी होशियार रहियेगा।

जाने क्या होगा रामा रेऽऽऽऽ ....जाने क्या होगा मौला रेऽऽऽऽऽऽ

वैसे थोड़ा बहुत करमचंद और शर्लाक होम्स बनने का मौका दे दिया है आपको, फ़िर भी यदि नहीं समझ पाओ तो हमसे पुछना बाद में.

Tuesday, November 28, 2006

घाटे की बाजी??

"केसिनो रोयाल" हमने अभी तो तक देखी नहीं, मगर, जिस तरह की कहानी, उसके चर्चे (और परखच्चे) सुन रहे हैं, रही सही कसर भी चली जा रही है उम्मीद की कि थियेटर जा के पैसे खर्चने लायक भी है या नहीं? या फ़िर घर पर ही इंतजार करें कि कभी किसी चैनल पर आ जाये या इंटरनैट पर कोई भला मानुस अपलोड कर दे.

अव्वल तो हम किसी फ़िल्लम के बारे में कभी लिखते नहीं...
मगर आज अमित का लेख पढ कर हमने सोचा कि भई विजय, जब लोगबाग फ़िल्मों की बधिया उखाड़ने के लिये उनके नाम का मतबल भी गूगल पर ढूँढ रहे हैं तो जरूर कोई ना कोई बात तो होगी फ़िल्लम में...!!

तपाक से हम भी गूगला -दिये..! अब कुछ विशेष तो ढुँढना नहीं था, सो, जो हाथ लगा परोसे दे रहें हैं.

हमें पता चला कि "जेम्स बाण्ड" सीरिज़ में इसी नाम से पहले भी एक फ़िल्लम आ चुकी है वो भी १९६७ में, और मजे की बात, बिल्कुल इसी तरह की "साधारण" रही थी.
याने अब ये नई वाली जब हमनाम हुई तो साथ ही साथ हमभाग्य भी हो गई.

उसके हीरो थे: पीटर सेल्लर.

आगे, बाकी का किसी को पढना हो तो यहाँ देखें..हम ना करेंगे अंग्रेजी का हिन्दी.!! हाँऽऽ!!

Thursday, November 02, 2006

सावधान! एक खतरनाक बीमारी!!

क्या आपको जानकारी है कि आजकल एक बेहद खतरनाक बीमारी ब्लागजगत में फ़ैली हुई है, जिसके शिकार/रोगी आजकल यत्र तत्र घुमते दिखाई देते हैं।
जिस किसी को भी ये बीमारी लग जाये, समझ लो उसकी तो वाट लग गई..!!

बीमारी के लक्षण? मैं बताता हूँ ना -
  • अंतर्जाल पर जरुरत से ज्यादा भ्रमण।
  • ज्यादा से ज्यादा जालस्थलों को कम से कम समय में देखने की लालसा।
  • ब्लाग्स (चिठ्ठों) पर अधिक मेहरबानी।
  • उसमें भी हिन्दी चिठ्ठों पर कुछ खास नज़र-ए-इनायत।
  • लगभग हर चिठ्ठे/जालस्थल से कुछ ना कुछ टीप (कॉपी) कर एक नोटपेड में मय लेखक के नाम से चेपना (पेस्ट करना)।
  • टिप्पणियों को और तस्वीरों को भी नहीं छोड़ना।
  • अपना अमुल्य समय देकर, जमा की गई जानकारी को संपादित करना।
  • और अधिक समय बिगाड कर लिखे हुये / संपादित किये हुये पर कलरबाजी (फ़ारमेटिंग) करना।
  • और अंततः इस प्रकार तैयार किये गये लेख को इस उम्मीद के साथ प्रकाशित कर देना कि लोग उससे लाभ उठायेंगे।
  • (और भी बहुत सारे लक्षण हैं - उपरोक्त तो महज उनमें से प्रमुख ही हैं)
अभी तक के ज्ञात केसेस:
  • देबाशीष (काफ़ी दिनों से बीमारी के लक्षण दबे हुये हैं - लगता है ठीक हो रहे हैं)
  • अनुप शुक्ला (फ़्रिक्वेंट फ़्लायर हैं, बीमारी हायर स्टेज पर है)
  • जितेन्द्र चौधरी (मजे मजे में बीमारी के किटाणु छू गये लगता हैं)
  • समीर लाल (विशिष्ट कलात्मक रोगी, ये रोग फ़ैलाने में काफ़ी माहिर हैं)
  • राकेश खंडेलवाल (सिरीयसली और रेग्युलरली बीमार)
  • संजय बेंगाणी (छोटे छोटे दौरे पडते हैं)
  • (और भी काफ़ी बीमार हैं, सूची यहाँ है)
इनमें से "संजय बेंगाणी" नामक रोगी तो थोडे स्पेशल केस हैं, इन्हें रह रह कर अचानक बीमारी के झटके आते हैं और ये भोजनावकाश के पहले या बाद में अचानक इसके प्रभाव में आ जाते हैं।

अभी अभी विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि हमारे प्रिय मित्र "सागरचंद नाहर" भी इसी बीमारी के लपेटे में आ गये हैं, और ये रोग लगा बैठे हैं.

तो मित्रों ये बिमारी एक संक्रामक रोग है, और हमें अपने प्रियजनों को इस व्याधि से पीडित होने से बचाना है।
अतः अपने आस पास देखिये, अगर आपको किसी में भी इसके थोडे भी लक्षण दिखते हैं तो तुरंत बचाव के उपाय कीजिये।
हाँ, उस दौरान खुद को संक्रमण से बचाय रखना आपकी खुद की जिम्मेदारी है।

पुराने रोगी अक्सर ये बड़बड़ाते पाये जाते हैं:
  • ...बहुत अच्छा लिखते हो...कुद पडो मैदान में..
  • ...निमंत्रण भेजते हैं...
  • ..क्या लिखते हो? एक छोटा सा काम है...
  • ...एक सामाजिक काम है...करोगे क्या?...
अगर आपके ब्लाग पर टिप्पणी में या किसी ईमेल में उपरोक्त में से कुछ दिखाई दे तो समझ जाइयेगा कि कोई आपके उपर भी बीमारी के किटाणु छोड़ रहा है। तुरंत सावधान हो जाइये।

अरे! इस बीमारी का नाम तो सुनते जाइये - इसका नाम है - चिठ्ठाचर्चा !!

आपका शुभचिंतक!
(यकिन मानिये - अभी तक तो इस रोग के लक्षण छू के भी नहीं गये हमें)