अरे नहीं भाई लोगों,
घबराओ नहीं, इतनी जल्दी सिंगापुर छोडकर नहीं जा रहा हूँ.
(और ज्यादा खुश होने की भी जरुरत नहीं है)
मैं आज भारत के लिये कूच कर रहा हूँ, किसलिये कर रहा हूँ ये वहाँ पहुँच कर बताउँगा. ;)
तब तक के लिये - खुदा हाफ़िज.
वैसे तो खुदा मेरा ही हाफ़िज रहे तो अच्छा है!
क्यों?
क्योंकि जीवन सागर के मझधार में पहुँचने वाला हूँ!
और एक कैटेगरी को तज कर दूसरी कैटेगरी में प्रवेश करने वाला हूँ.
...इशारों को अगर समझो, राज को राज रहने दो..;)
अगली पोस्ट में "मैडम" के बारे में भी कुछ रहेगा.
नमस्ते.
13 comments:
अब इशारा ऐसा देन्गे,
और ये भी कहेन्गे कि राज को राज रहने दो!
अब हम क्या कहें,
जैसी आपकी मर्जी।
हम भी इशारों में ही पूँछते हैं..
दिन..तारीख..स्थान..? ;)
अब इस विजयवा का क्या कहें? सुक्खी की तरह सवाल पूछता है, उदाहरण के लिये:
सुक्खी ने एक बार क्लास मे एक सवाल पूछा
"जे तू दसदा कि इ बैग विच कि है, ते सारे अन्डे तेरे, जे तू दसदा किन्ने है ते अठ दे अठ त्वाडे, उस ते दस दू दसदा अन्डे किथो आये, तो ए मुर्गी भी तेरी"
सुक्खी का चचेरा भाई, जस्सी भी वंही था....उसने पूछा "प्रा जी, कोई हिन्ट शिन्ट ते दो, ताँइ ते जवाब दे सकेंगे"
अब इस तरह से तो सबको पता चल ही जाना है, खैर पहुँचों इन्डिया, और हमे खुशखबरी सुनाओ, जल्द से जल्द।
विजय भिया,
बधाई हो! तो आप बी पाला बदल रिये हो, याद है ना पाला बदलने पर क्या केते है,
"नई घोडी नया दाम" तो आपको बहुत कुछ लिखना पडेगा!
अब इत्ती हीन्ट दे दी हे तो ये बी तो कऔ, क्या वापसी में मेडम के साथ आओगे? या
अबी सिर्फ "फाइनल" करने जा रिये हो?
उमीद है आपकी नई पाली सुख, संपत्ति और समर्द्धि लाये !
नितिन
बधाई
दो लोगो को बधाई
विजय भाई को इसलिये क्योंकि सबने दी। जीतू भाई को इसलिये कि टिप्पणी लेख पर भारी पढ़ गई
बगवान बचाए तुम्हें विजवा। का कमीं थी आखिर अकेले तुम्हें?
बधाई ।
अरे विजय भाई,
ऐसा जुल्म क्यो ढा रहे हो ? अबी टेम हे चेत जाओ,
बाद मे केना मत की बताया नही था
आशीष
जरा संभल के नहीं तो बोलना मत बताया नहीं था, ये मैडम वाला मामला बड़ा खतरनाक होता है, तो सोच समझ के..
भले ही सारे अनुभवी अपनी सलाह दे लें, आप तो वही करोगे जो ठान चुके हो। करो भाई। लोग ठोकर खाने के बाद ही सँभलते हैं। लेकिन विजय भाई, जबतक सँभलोगे तब तक देर हो चुकी होगी। बहरहाल, बधाई स्वीकार करो हमारी भी।
मिश्रा जी:
"…राज को राज ही मैंने रखा था मगर,
राज खुलता ही जाये तो मैं क्या करूँ…"
नितिन बागला जी:
मैं और इशारे देता हूँ, कृपया थोडा और इंतजार्…!
जीतू भैय्या:
त्वाडा और त्वाडे सुक्खी दा ज्वाब नईं!
इन्डिया तो पहुँच गये हैं, थोडे इन्तेजार के बाद खुशखबरी भी सुनाते हैं।
नितिन व्यास जी:
जो हुकुम सरकार!!
आगे की खबर के लिये, अगली पोस्ट का इन्तेजार करें।
उन्मुक्त ज़ी:
धन्यवाद!!
अतुल भीया:
जब हमने सबकी बधाई स्वीकारी, तो आपकी लेने में क्या हर्ज है?
धन्यवाद स्वीकारें।
रजनीश भीया:
सावन का महीना, शादी बिना, मुश्किल है जीना,
we want girl beautiful beautiful, charming tip-top beautiful beautiful,
जूली, नूरी, बाबी या फ़िर, चलेगी अपनी गल्ली की मीना…!!
रत्ना:
आपकी बधाई सर माथे!! धन्यवाद!
आशीष जी:
बात तो सई के रिये हो भीया, पन, जब तलक के पानी के अन्दर कूदेंगे नईं, तेरना केसे सीखेंग?
विवेकजी:
बात तो सोलह आने सच है, हम तो हैं ही होशियार! खबरदार!! (अपनी मेडम से)
सृजन जी:
यार लोग (याने के हम) तो "ठोकर खाके ही ठाकुर" बनते हैं!
धन्यवाद!!
क्या करें भैया ये तो वो लड्डू है जो खाए सो पछताए जो न खाए सो पछताए। :)
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