Friday, October 26, 2007

वक्त नहीं

हर खुशी है लोगों के दामन में,

पर एक हँसी के लिये वक्त नहीं,

दिन रात दौड़ती दुनियाँ में,

ज़िंदगी के लिये ही वक्त नहीं.

 

माँ की लोरी का एहसास तो है,

पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं,

सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,

अब उन्हें दफ़नाने का भी वक्त नहीं.

 

सारे नाम मोबाईल में हैं,

पर दोस्ती के लिये वक्त नहीं,

गैरों की क्या बात करें,

जब अपनों के लिये ही वक्त नहीं.

 

आँखों में है नींद बड़ी,

पर सोने का वक्त नहीं,

दिल है गमों से भरा हुआ,

पर रोने का भी वक्त नहीं.

 

पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े,

कि थकने का भी वक्त नहीं,

पराए एहसानों की क्या कद्र करें,

जब अपने सपनों के लिये ही वक्त नहीं.

 

तू ही बता ऐ ज़िंदगी,

इस ज़िंदगी का क्या होगा,

कि हर पल मरने वालों को,

जीने के लिये भी वक्त नहीं.

 

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फ़ॉर्वर्डेड ईमेल से हिंदी में अनुवादित.

 

4 comments:

Udan Tashtari said...

तू ही बता ऐ ज़िंदगी,
इस ज़िंदगी का क्या होगा,
कि हर पल मरने वालों को,
जीने के लिये भी वक्त नहीं.

--सही अनुवाद किया है.

आजकल दिखना लगभग बंद ही है?? सिंगापुर में ही हो अभी?

आलोक said...

सारे नाम मोबाईल में हैं,

पर दोस्ती के लिये वक्त नहीं,


बहुत प्रासंगिक।

हरिमोहन सिंह said...

क्‍या बात है
आश्रम खोलने का इरादा हो हमें भी बताते जाना ।

Anjul said...

this poem is a mirror our real life.
Wonderful!! :)