गप्पू भाई ने जो हमारी शादी का नगाडा बजाया है, उसके लिये पहले तो हम उनको धन्यवाद देते हैं.
माना कि- आज की तारीख में उनकी ये बात हम पर फ़िट नहीं बैठती,
मगर जो बडे बुढों की टिप्पणियाँ आई है उसे देखकर तो यही लगता है कि इससे फ़िट और कुछ हो भी नहीं सकता.
माना कि- आज की तारीख में उनकी ये बात हम पर फ़िट नहीं बैठती,
मगर जो बडे बुढों की टिप्पणियाँ आई है उसे देखकर तो यही लगता है कि इससे फ़िट और कुछ हो भी नहीं सकता.
वैसे,
जो आपने बताया है वो तो "गोडाऊन" में रखा होता है, हम तो "शोरूम" देखकर ही खुश हो जाते हैं.
बाद की तो बाद में कहेंगे, आज आपसे हम अपने आज-के हाल बताते हैं:-
डालर का मोह ले आया हमें अपने वतन से दूर,
टप्पे खाते खाते लो पहूँच गये आखिर सिंगापूर,
आखिर सिंगापूर, हमें तो नजर ये आया,
यहाँ से तो अच्छे बंगलौर में ही थे भाया,
वहाँ खाने का इंतजाम तो था ही पक्का,
हर चीज में नहीं मिलाते कोई "मक्का",
मिल जाता था वहाँ दाल चावल राजमा रोटी,
यहाँ तो खाओ मुर्गा मच्छी मेंढक और बोटी,
यहाँ का खाना खा के भी जाने क्या हो फ़ायदा,
रोटी पराठा नूडल्स, मैदे से ही बनाने का कायदा,
रोज रोज होटल में खाने पर हो पेट और पैसे की बरबादी,
इन्ही सब झंझटों को टालने के लिये कर बैठे हम शादी,
कर बैठे हम शादी, मगर अब भी छडे छडे हैं,
बीबी है भारत में और खुद अकेले यहाँ पडे हैं,
वो वहाँ हम यहाँ मत पुछो अब कैसा है ये मन,उनको तो अपने पास लाने का अब पूरा हैं जतन,
हाथ जोडे, सर फ़ोडा और दाँतो को पिसा,
पर अभी नही बना मोहतरमा का वीसा,
माना कि अपनी शादी तो हुई है नई नई,
पर मैडम को आते आते गुजर जाएगी मई,
जून जुलाई अगस्त बारिश में झुमेंगे,
बीबी के साथ ही पूरा सिंगापुर घुमेंगे,
अभी तो कर रहा हूँ कंजूसी औ' बचा रहा हूँ पैसा,
तभी तो एन्जॉय कर पाउंगा बर्डपार्क और सैण्टोसा,
आगे का तो पता नहीं हाल अभी का सुना रहा हूँ,
शादी होने के बाद भी साथ रहने को तडप रहा हूँ,
रोज सुबह तो आज भी दफ़्तर देर से जाता हूँ,
बाद की छोडो, अभी ही बॉस की डाँट खाता हूँ,
करनी माना मेरी ही है सो मैं उसे भर लुंगा,
बीबी रहेगी साथ में, उसे, जी भर तो देखुंगा,
काश मालिक मुझमे ये डालर का मोह ना जगाता,
कुछ समय ही सही, बीबी के साथ तो रह पाता,अगर अपनी मैडम को मैं अपने साथ ही यहाँ ले आता,कितना ही अच्छा होता मैं फ़ोर्स्ड बैचलर तो ना कहलाता.
माना कि ये आडी तेढी तुकबन्दी है,
मगर क्या करें आजकल तो दिल ही तेढा हो रहा है,
सीधी बात कहाँ से निकलेगी....?
याने कि- जस का तस धर रखा है!!
7 comments:
वाह जी वाह खुब दर्द बयान किये हो.'सिंगापुरी' तकल्लुश रख लो अपना और यह कविता ज्यों कि त्यों वीजा वालो को भेज दो. शायद उनको भी भगवान ने दील दिया हो.
विजय भाई,
संजय भाई के बताये अनुसार कविता की एक प्रति वीसा विभाग को भी भेजें वरना एसा ना कि भाभीजी ये गाना गाये " तेरी डॉलरिये की नौकरी में मेरा लाखों का सावन............"
भाई क्या कविता जोड़ी है। बहुत अच्छे। कमाल।।।
बहुत अच्छा लिके हो।
ये बताओ, कि शादी के फ़ोटुआ कब दिखाओगे?
ह्म्म...सही कहते हो भैय्या...!
वीजा वालों को तो भेजनी ही पडेगी यह कविता, और अगर फ़िर भी वीसा नहीं बनाया तो ऐसी ही १०-१५ और उनके सर पर मार दुंगा, फ़िर तो परेशान होकर देना ही पडेगा वीसा. :)
मिश्रा जी: फ़ोटू आ जायेंगे तो दिखा भी दिये जायेंगे. सबर किया जाय.
फोटू-सोटू का सबर कर लेंगे. तब तक मिठाई का एक-आद डिब्बा हमारे मुँह पर दे मारो, आशीष मिलेगी.
संजय भाई,
जरूर मारता, मगर जब भरा हुआ था तब मारता तो ज्यादा आशीष मिलती, अब खाली डब्बा मारूंगा तो ना चोट लगेगी ना निशान पडेगा, और फ़िर आशीष का तो कौनो रोल ही नहिये रहेगा.
फ़िर भी ऑप्शन खुला है, शायद फ़ोटू के साथ साथ भारत से कुछ मिठाई शिठाई भी आ जाये....:)
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