....एक छोटे से अंतराल के बाद.
यहाँ से नदारद रहने के बारे में क्या कहूँ? कैसे कहूँ?...
जग्गू दादा की गज़ल का टुकड़ा सुन लीजिये:
..जाने वाले गये भी कहाँ...
..जाने वाले गये भी कहाँ,..
..चाँद सुरज घटा हो गये...
तो समझ कीजिये कि - हम भी चाँद-सुरज-घटा ही हो गये थे..!!
मामला ऐसा रहा कि ऑफ़िस में ब्लागर बंद है,
गुगल (मेल) बंद है..
ये बंद है...वो बंद है...
कुल मिला कर ये है कि हाथ पैर रस्सी से बांध दिये गये हैं,
और कहा जा रहा है कि - काम करो!!
भला हो तिकड़मबाज़ों का..कुछ जुगाड़ निकाल ली है।
"नारद"जी बोलेंगे (गुल्लु दा की आवाज़ में):
..कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में,
कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में,
फ़िर खाक़ अगर हो जाओ तो क्या...
मोर्चा संभालने के पहले की छोटी सी तैयारी समझ कर यह पोस्ट ली जाय..
शायद कुछ लिखूँ - फ़िर से!! (या यूँ कहें - दिल से)
9 comments:
दिल से स्वागत है दिल से लिखने के लिये
यही हाल हमारे कालेज में कर दिया गया है. लेकिन रास्ता निकल ही जाता है.
लिखते रहिये. दिल से :-))
विजय जी, जहाँ चाह ,वहाँ राह,हम आप की पोस्ट का इन्तजार कर रहे हैं
जे हुई ना बात!
३० नवम्बर के बाद २३ मई को दूसरी पोस्ट! कुछ ज्यादा जल्दी नहीं आ गये?
फिर से स्वागत है आपका विजय जी।
सही लिखा है…पुन: स्वागत है आपका…।
अरे, हम तो समझे कि शादी के बाद अब गये ही समझो. ये तो फिर आ गये. खैर, आ ही गये हो तो स्वागत है. मना करने पर मानोगे थोड़े ही!!!
यह हुई ना चिट्ठाकारीता के नशेड़ी वाली बात.
अबे तुम फिर आ गए?
हम तो समझे थे कि बीबी ने समझा बुझाकर, ब्लॉग पीड़ा शान्त करा दी होगी। खैर अब आ ही गए हो तो लिखो फिर....सिंगापुर से इसगाँव की यात्रा का ही हाल बखान कर दो।
अमां हम तो सिंगापुर जा रहे थे, सोचा था, कम से कम 2N/3D का जुगाड़ हो जाएगा, तुम तो टरक लिए वहाँ से। खैर....बच गए इस बार।
इतने दिनों तक इस कुलबुलाहट को कैसे रोका? अपना तो पेट दुखने लगता है।
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