अभिनव बिन्द्रा को लाखों बधाईयाँ!!
वर्षों के इंतज़ार के बाद आखिरकार भारत को एक व्यक्तिगत स्वर्ण पदक मिल ही गया। अभिनव बिन्द्रा की मेहनत रंग लाई और ११ अगस्त को बीजिंग ओलम्पिक में १० मीटर एयर रायफ़ल व्यक्तिगत स्पर्धा में उन्होने प्रथम स्थान पर कब्जा करते हुये भारत का तिरंगा फ़हरा ही दिया।
आज उन्हे बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से लेकर अलग अलग प्रांतों के मंत्रीगण और यहाँ तक कि स्थानीय नेता तक उन्हे बधाई देने में लगे हुए है। मैने आज ही ऑफ़ीस आते आते देखा किसी तो स्थानीय नेता का होर्डिंग लगा था चौराहे पर अभिनव बिन्द्रा को बधाई देने का। रातों रात लग गया भई, मानो बता रहे हों कि- देखा हमने पहले बधाई दी है।
गुगल पर खोजने पर पता पड़ा कि अमिताभ बच्चन भी कुछ तो बोले हैं इस सफ़लता पर। अच्छा ही तो है, उपलब्धि की तो सब जगह प्रशंसा होनी ही चाहिये।
और अब आयेगी बारी - इनामों की (या कम से कम इनामों की घोषणाओं की)।
महाराष्ट्र और कर्नाटक के मुख्यमंत्री कार्यालय से तो १०-१० लाख के नकद पुरस्कार की घोषणा तो आ ही चुकी है। देखते हैं और कहाँ कहाँ से क्या क्या आता है। अगर कोई हिसाब रख सके तो अच्छा होगा कि कितनी घोषणा अमल हुई और कितनी सिर्फ़ घोषणा ही रह गई।
मगर अपनी बात कहूँ तो मैं तो इंतज़ार में हूँ अभिनव बिन्द्रा के वापस भारत लौटने के। मुझे इस बात में खासी दिलचस्पी रहेगी कि जब ये ऑलम्पिक पदक विजेता खिलाड़ी वापस भारत लौटेगा तो उसके साथ क्या क्या होगा, या फ़िर क्या क्या नहीं होगा।
- जिस तरह क्रिकेट खिलाड़ियों का स्वागत हुआ था, क्या इस खिलाड़ी का भी वैसा ही स्वागत होगा?
- क्या लोगों में इसके लिये वैसी ही दिवानगी देखने को मिलेगी, जैसी क्रिकेट खिलाडियों के लिये होती है?
- क्या हजारों की संख्या में लोग इस खिलाड़ी को लेने हवाई अड्डे पहुचेंगे?
- हवाई अड्डे पर इस खिलाड़ी की फ़जिती की खबर तो नहीं सुनने को मिलेगी ना?
- क्या नामी व्यावसायिक घरानों की तरफ़ से इसपर भी इनामों की बरसात होगी?
- क्या कोई रिलायंस, किंगफ़िशर या फ़िर कोई शाहरुख खान इस खेल या इसके खिलाड़ितों को प्रायोजित करेगा?
- क्या भारत में इस खेल का स्तर बढेगा, ताकि और नये खिलाडी इसकी तरफ़ आकर्षित हों?
- क्या इस खेल के खिलाड़ियों को वह सारी सुविधा मिलेगी जिससे आने वाले समय में हम और पदकों की आशा रख सकें?
मेरे ख्याल से तो देश की जनता के लिये वह असली इम्तिहान की घड़ी होगी जब अभिनव बिन्द्रा भारत की जमीन पर वापस पैर रखेगा। तब हम सबको यह जाहिर कर देना होगा कि हम क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों को भी तवज्जों देते हैं, और हम अपने देश के लिये कोई भी सम्मान जीतने वाले हर खिलाड़ी से एक समान प्यार करते है।
अभिनव ने तो अपना काम कर दिया, दोस्तों अब हमारी बारी है।
Tuesday, August 12, 2008
Friday, August 08, 2008
एक दुखद समाचार और एक गहन विचार
मैं पुणे में जिस सॉफ़्टवेअर कंपनी में काम करता हूँ, उस कंपनी के ऑफ़िस के सामने एक और सॉफ़्टवेअर कंपनी है। अभी बुधवार रात को उस कंपनी के एक कर्मचारी ने ऑफ़ीस के ६ वें माले से कुद कर आत्महत्या कर ली। वो भी एक सॉफ़्टवेअर इंजीनियर ही था, जिसने यह कदम उठा लिया|
"जैसा कि अखबार में आया, वह पढने में तेज था, मेरिट में आने वाला और तो और आई आई टी पास आउट। वह अपने काम को लेकर बहुत चिंतित था। हालाँकि उसने किसी पर भी अपने इस कदम की जवाबदारी नहीं डाली है, पर उसके अंतिम संदेश में यही है कि वह काम का तनाव नहीं सहन कर पा रहा है, और प्रतिभाशाली होते हुए भी अपने अधिकारियों और स्वयं खुद कीआशानुरुप काम नहीं कर पा रहा है, और इसीलिये वह यह कदम उठा रहा है। सो अंतत: उसने वह कदम उठा ही लिया, और अपनो को रोता-बिलखता छोड़ कर चला गया दूर, बहुत दूर। कभी वापस ना आने के लिये। " *
ईश्वर दिवंगत की आत्मा को शांति प्रदान करे।
यह घटना हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबुर करती है, और हमारे सामने कई सवाल खड़े करती है।
- क्या सिर्फ़ काम ही सबकुछ है?
- क्या आजकल नौकरीपेशा व्यक्ति काम के लिए जी रहा है या जीने के लिये काम करता है?
- क्या companies और managers, अपने मातहतों को सिर्फ़ Resource की तरह ही देखते और बर्ताव करते हैं?
- क्या companies को सिर्फ़ काम पुरा होने से ही मतलब है?
- क्या किसी manager ने अपने मातहत को कभी यह कहा है कि - अब बस करो! बाकी अगले दिन देखना!!
- इतना काम सिर्फ़ एक के कंधों पर किस तरह से आ सकता है कि उसे ऐसा कदम उठाने की नौबत आ जाये?
- ज्यादा काम के साथ साथ इस क्षेत्र में काम का ना होना या कम काम का होना या मनोकुल काम का ना होना भी कुण्ठा बढाता है।
- क्या खुदकुशी करना आसान है - समस्या का समाधान ढुँढने से?
- अगर ज्यादा ही तनाव हो तो क्या छुट्टी लेकर घर पर नहीं बैठा जा सकता? ताकि परिवार के साथ समय गुजार सके?
- अगर वह भी नहीं तो भी आजकल जितने अवसर सॉफ़्टवेअर के क्षेत्र में है क्यों ना उनका उपयोग किया जाय और नौकरी ही बदल ली जाय। नई जगह पर नये लोग मिलेंगे और नया काम। और तनाव? यकिन मानिये, नई जगह पर एकदम से तो वह नहीं ही मिलेगा। सो कुछ समय तो आपको मिल ही जायेगा खुद को फ़िर से तैय्यार करने का।
क्या किसी के पास कोई जवाब है इन सवालों का??
* यह खबर पुणे के स्तरीय अखबारों में छपी है। अपनी तरफ़ से कुछ भी नहीं जोड़ा है और किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की कतई-कतई मंशा नहीं है। दिवंगत के परिवार के दुख में हमें भी शामिल समझें।
"जैसा कि अखबार में आया, वह पढने में तेज था, मेरिट में आने वाला और तो और आई आई टी पास आउट। वह अपने काम को लेकर बहुत चिंतित था। हालाँकि उसने किसी पर भी अपने इस कदम की जवाबदारी नहीं डाली है, पर उसके अंतिम संदेश में यही है कि वह काम का तनाव नहीं सहन कर पा रहा है, और प्रतिभाशाली होते हुए भी अपने अधिकारियों और स्वयं खुद कीआशानुरुप काम नहीं कर पा रहा है, और इसीलिये वह यह कदम उठा रहा है। सो अंतत: उसने वह कदम उठा ही लिया, और अपनो को रोता-बिलखता छोड़ कर चला गया दूर, बहुत दूर। कभी वापस ना आने के लिये। " *
ईश्वर दिवंगत की आत्मा को शांति प्रदान करे।
यह घटना हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबुर करती है, और हमारे सामने कई सवाल खड़े करती है।
- क्या सिर्फ़ काम ही सबकुछ है?
- क्या आजकल नौकरीपेशा व्यक्ति काम के लिए जी रहा है या जीने के लिये काम करता है?
- क्या companies और managers, अपने मातहतों को सिर्फ़ Resource की तरह ही देखते और बर्ताव करते हैं?
- क्या companies को सिर्फ़ काम पुरा होने से ही मतलब है?
- क्या किसी manager ने अपने मातहत को कभी यह कहा है कि - अब बस करो! बाकी अगले दिन देखना!!
- इतना काम सिर्फ़ एक के कंधों पर किस तरह से आ सकता है कि उसे ऐसा कदम उठाने की नौबत आ जाये?
- ज्यादा काम के साथ साथ इस क्षेत्र में काम का ना होना या कम काम का होना या मनोकुल काम का ना होना भी कुण्ठा बढाता है।
- क्या खुदकुशी करना आसान है - समस्या का समाधान ढुँढने से?
- अगर ज्यादा ही तनाव हो तो क्या छुट्टी लेकर घर पर नहीं बैठा जा सकता? ताकि परिवार के साथ समय गुजार सके?
- अगर वह भी नहीं तो भी आजकल जितने अवसर सॉफ़्टवेअर के क्षेत्र में है क्यों ना उनका उपयोग किया जाय और नौकरी ही बदल ली जाय। नई जगह पर नये लोग मिलेंगे और नया काम। और तनाव? यकिन मानिये, नई जगह पर एकदम से तो वह नहीं ही मिलेगा। सो कुछ समय तो आपको मिल ही जायेगा खुद को फ़िर से तैय्यार करने का।
क्या किसी के पास कोई जवाब है इन सवालों का??
* यह खबर पुणे के स्तरीय अखबारों में छपी है। अपनी तरफ़ से कुछ भी नहीं जोड़ा है और किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की कतई-कतई मंशा नहीं है। दिवंगत के परिवार के दुख में हमें भी शामिल समझें।
Tuesday, August 05, 2008
क्या ऐसे रिकॉर्ड्स होना चाहिये?
आज ही के अखबार में पढा, एक युवक जो कि शायद पुणे का ही होगा, उसका नाम "लिम्का बुक" में आने वाला है (या शायद आ भी गया है)। "लिम्का बुक" तो आपको पता ही होगा - अरे "गिनीज़ बुक" की छोटी बहन। तो, जब नाम "लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स" में छप रहा है तो कोई ना कोई रिकॉर्ड भी बना होगा ना, है कि नहीं?
क्या आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि उसके नाम क्या रिकॉर्ड बना है?
- क्या कहा?
- नहीं लगाना है?
- मैं ही बताउँ?
- चलिये, मैं ही बता देता हूँ।
क्या रिकॉर्ड है, सीधे-सीधे बताने के बजाय मैं पहले उस रिकॉर्ड के बारे में बताता हूँ। यह एक ऐसा रिकॉर्ड है-
- जिसको बनाने के लिये उस युवक को 'अक्षरश:' कोई मेहनत नहीं करना पड़ी।
- ना ही उसने इस बारे में कभी, कुछ सोचा होगा।
- ना ही उसके घरवालों ने इस बारे में कोई मदद की।
- और ना ही उसके यार-दोस्तों ने।
- ना 'इससे' उसे कोई फ़ायदा है (सिवाय रिकॉर्ड बनने के), और ना कोई नुकसान।
- ना ही दूसरों के लिये यह कोई फ़ायदे-नुकसान की चीज है।
- यहाँ तक की यह युवक तो पैदा ही इस रिकॉर्ड के साथ हुआ था।
कुछ समझे क्या? मैं बात कर रहा हूँ एक तरह की physical deformity (शारीरिक विकृति) की।
जी हाँ, अगर चिकित्सा शास्त्र से पुछा जाएगा तो वहाँ से तो यही जवाब आएगा - शारीरिक विसंगति/विकृति/बेढंगापन।
अरे! अरे! कुछ और मत सोचिए। उस युवक के दोनो हाथों में पाँच के बजाय सिर्फ़ छ:-छ:, और एक पैर में छ: उँगलियाँ हैं।
अब भला बताईये, यह कैसा रिकॉर्ड बना? और किसने बनाया? और क्या सिर्फ़ इस आधार पर किसी को भी प्रसिद्धि मिल जानी चाहिये?
माना, अगर "बुक" में किसी ना किसी का नाम ही लिखना है तो क्यों ना यह श्रेय उस युवक के माता-पिता को दिया जाना चाहिये?
और सिर्फ़ यही नहीं, ऐसे ही कई कई मामले रिकॉर्ड बनकर जहाँ तहाँ "बुक्स" में छपे हैं, और छप रहे हैं।
क्या ऐसे मामलों को रिकॉर्ड कहना उचित होगा?
और फ़िर अगर ऐसे ही रिकॉर्ड बनते हैं तो फ़िर तो आतंकवादियों की पुरी की पुरी जमात ही रिकॉर्ड बुक में जगह पा जायेगी। अरे! वो ही तो एक ऐसी प्रजाति है जो इंसानों के लिये अनिवार्य २ अवयवों के बिना भी जीवित है। आपको तो पता ही होगा ना? फ़िर भी सुन लीजिये:
१. दिल, और
२. दिमाग!
आप क्या कहते हैं??
क्या आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि उसके नाम क्या रिकॉर्ड बना है?
- क्या कहा?
- नहीं लगाना है?
- मैं ही बताउँ?
- चलिये, मैं ही बता देता हूँ।
क्या रिकॉर्ड है, सीधे-सीधे बताने के बजाय मैं पहले उस रिकॉर्ड के बारे में बताता हूँ। यह एक ऐसा रिकॉर्ड है-
- जिसको बनाने के लिये उस युवक को 'अक्षरश:' कोई मेहनत नहीं करना पड़ी।
- ना ही उसने इस बारे में कभी, कुछ सोचा होगा।
- ना ही उसके घरवालों ने इस बारे में कोई मदद की।
- और ना ही उसके यार-दोस्तों ने।
- ना 'इससे' उसे कोई फ़ायदा है (सिवाय रिकॉर्ड बनने के), और ना कोई नुकसान।
- ना ही दूसरों के लिये यह कोई फ़ायदे-नुकसान की चीज है।
- यहाँ तक की यह युवक तो पैदा ही इस रिकॉर्ड के साथ हुआ था।
कुछ समझे क्या? मैं बात कर रहा हूँ एक तरह की physical deformity (शारीरिक विकृति) की।
जी हाँ, अगर चिकित्सा शास्त्र से पुछा जाएगा तो वहाँ से तो यही जवाब आएगा - शारीरिक विसंगति/विकृति/बेढंगापन।
अरे! अरे! कुछ और मत सोचिए। उस युवक के दोनो हाथों में पाँच के बजाय सिर्फ़ छ:-छ:, और एक पैर में छ: उँगलियाँ हैं।
अब भला बताईये, यह कैसा रिकॉर्ड बना? और किसने बनाया? और क्या सिर्फ़ इस आधार पर किसी को भी प्रसिद्धि मिल जानी चाहिये?
माना, अगर "बुक" में किसी ना किसी का नाम ही लिखना है तो क्यों ना यह श्रेय उस युवक के माता-पिता को दिया जाना चाहिये?
और सिर्फ़ यही नहीं, ऐसे ही कई कई मामले रिकॉर्ड बनकर जहाँ तहाँ "बुक्स" में छपे हैं, और छप रहे हैं।
क्या ऐसे मामलों को रिकॉर्ड कहना उचित होगा?
और फ़िर अगर ऐसे ही रिकॉर्ड बनते हैं तो फ़िर तो आतंकवादियों की पुरी की पुरी जमात ही रिकॉर्ड बुक में जगह पा जायेगी। अरे! वो ही तो एक ऐसी प्रजाति है जो इंसानों के लिये अनिवार्य २ अवयवों के बिना भी जीवित है। आपको तो पता ही होगा ना? फ़िर भी सुन लीजिये:
१. दिल, और
२. दिमाग!
आप क्या कहते हैं??
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