मैं पुणे में जिस सॉफ़्टवेअर कंपनी में काम करता हूँ, उस कंपनी के ऑफ़िस के सामने एक और सॉफ़्टवेअर कंपनी है। अभी बुधवार रात को उस कंपनी के एक कर्मचारी ने ऑफ़ीस के ६ वें माले से कुद कर आत्महत्या कर ली। वो भी एक सॉफ़्टवेअर इंजीनियर ही था, जिसने यह कदम उठा लिया|
"जैसा कि अखबार में आया, वह पढने में तेज था, मेरिट में आने वाला और तो और आई आई टी पास आउट। वह अपने काम को लेकर बहुत चिंतित था। हालाँकि उसने किसी पर भी अपने इस कदम की जवाबदारी नहीं डाली है, पर उसके अंतिम संदेश में यही है कि वह काम का तनाव नहीं सहन कर पा रहा है, और प्रतिभाशाली होते हुए भी अपने अधिकारियों और स्वयं खुद कीआशानुरुप काम नहीं कर पा रहा है, और इसीलिये वह यह कदम उठा रहा है। सो अंतत: उसने वह कदम उठा ही लिया, और अपनो को रोता-बिलखता छोड़ कर चला गया दूर, बहुत दूर। कभी वापस ना आने के लिये। " *
ईश्वर दिवंगत की आत्मा को शांति प्रदान करे।
यह घटना हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबुर करती है, और हमारे सामने कई सवाल खड़े करती है।
- क्या सिर्फ़ काम ही सबकुछ है?
- क्या आजकल नौकरीपेशा व्यक्ति काम के लिए जी रहा है या जीने के लिये काम करता है?
- क्या companies और managers, अपने मातहतों को सिर्फ़ Resource की तरह ही देखते और बर्ताव करते हैं?
- क्या companies को सिर्फ़ काम पुरा होने से ही मतलब है?
- क्या किसी manager ने अपने मातहत को कभी यह कहा है कि - अब बस करो! बाकी अगले दिन देखना!!
- इतना काम सिर्फ़ एक के कंधों पर किस तरह से आ सकता है कि उसे ऐसा कदम उठाने की नौबत आ जाये?
- ज्यादा काम के साथ साथ इस क्षेत्र में काम का ना होना या कम काम का होना या मनोकुल काम का ना होना भी कुण्ठा बढाता है।
- क्या खुदकुशी करना आसान है - समस्या का समाधान ढुँढने से?
- अगर ज्यादा ही तनाव हो तो क्या छुट्टी लेकर घर पर नहीं बैठा जा सकता? ताकि परिवार के साथ समय गुजार सके?
- अगर वह भी नहीं तो भी आजकल जितने अवसर सॉफ़्टवेअर के क्षेत्र में है क्यों ना उनका उपयोग किया जाय और नौकरी ही बदल ली जाय। नई जगह पर नये लोग मिलेंगे और नया काम। और तनाव? यकिन मानिये, नई जगह पर एकदम से तो वह नहीं ही मिलेगा। सो कुछ समय तो आपको मिल ही जायेगा खुद को फ़िर से तैय्यार करने का।
क्या किसी के पास कोई जवाब है इन सवालों का??
* यह खबर पुणे के स्तरीय अखबारों में छपी है। अपनी तरफ़ से कुछ भी नहीं जोड़ा है और किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की कतई-कतई मंशा नहीं है। दिवंगत के परिवार के दुख में हमें भी शामिल समझें।
Friday, August 08, 2008
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5 comments:
बहुत ही दुखद और अफसोसजनक.
चिंताएँ जायज है.बहुत कुछ बदलना चाहिए.
भाई कई लोग पेसे कॊ जिन्दगी समझते हे, ओर उस के लिये सारी जिन्दगी बेकार कर देते हे,
कुछ लोग पेसे से ज्यादा जिन्दगी को सम्मन देते हे कम हो तो भी गुजारा करते हे खुश रह कर, ओर पुरी जिन्दगी जीते हे जिन्दा दिल बन कर
धन्यवाद,
दुखद और अफसोसजनक. ईश्वर दिवंगत की आत्मा को शांति प्रदान करे।
अच्छा विचारा है। साधुवाद!
किन्तु देवनागरी के बीच में रोमन घुसाने का कोई सार्थक कारण नहीं है। 'मैनेजर', 'कम्पनी' आदि देवनागरी में लिखे जा सकते हैं। क्यों पढ़ने वालों से अपेक्षा रखते हैं कि वे अंग्रेजी (रोमन) भी पढ़ना जानते होंगे? अधिकक से अधिक यह किया जा सकता है कि आप देवनागरी के साथ-साथ कोष्टक में अंग्रेजी शब्द भी दे सकते हैं ; वह भी तब जब आपको लगे कि हिन्दी में लिखा शब्द शायद किसी को समझ में न आये।
अनुनाद जी: कोशिश करेंगे कि रोमन का इस्तेमाल थोड़ा कम किया जाय.
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