Tuesday, December 23, 2008

क्या इसे कॉमेडी कहेंगे?

"...पता है? मेरे मम्मी पापा मुझसे बहुत प्यार करते हैं और मेरा बहुत ध्यान रखते हैं। मुझे कैसे पता चला? अरे रोज रात को मेरे मम्मी पापा मेरे सोने तक जागते रहते हैं, और बार बार मुझसे कहते रहते हैं - मुन्नी बेटे चलो सो जाओ, ज्यादा जागना अच्छा नहीं। और तो और, मेरे सोने के बाद भी वो लोग आपस में मेरे ही बारे में बात करते हैं - अरे लगता है मुन्नी उठ गई...नहीं नहीं सो ही रही है...।

मेरे पापा मुझे मम्मी से भी ज्यादा प्यार करते हैं। मम्मी तो मुझे कभी भी दोपहर में घर के बाहर खेलने नहीं जाने देती, पर जब कभी पापा की छुट्टी होती है, तो वो ख़ुद ही मुझे कहते हैं- मुन्नी बेटे जाओ जरा बाहर जा के खेलो, और हाँ, २-३ घंटे के पहले वापस मत आना..."

कल एक चैनल पर एक कार्यक्रम में एक stand-up comedian यह किस्सा सुना कर सबको हँसा रही थी। जज बनकर जो बैठे थे उनमे थे एक मराठी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता-निर्देशक और दूसरे थे एक दिवंगत राजनेता के सुपुत्र। सब लोग ठहाके लगा लगा कर हँस रहे थे। दर्शक दीर्घा में कलाकार के माता-पिता भी बैठे थे, और अपनी पुत्री की "कला(?)" पर मुग्ध हुये जा रहे थे।

मैने गौर से देखा, कलाकार की उँचाई तो बहुत कम थी, मगर बातें बहुत बड़ी बड़ी थी। कलाकार ने बहुत छोटी सी फ़्राक पहनी हुई थी, शायद बौनी कलाकार होगी....अरे! नहीं, कलाकार के माता-पिता भी तो ज्यादा उम्रदराज़ नहीं दिख रहे...अरे! यह क्या, यह कलाकार तो एक छोटी सी बच्ची ही है...वह भी ज्यादा से ज्यादा ८-१० साल की।

- क्या आजकल के बच्चों को ऐसे जोक्स इतने समझ में आने लगे हैं कि वह टीवी शो में प्रस्तुत करने लगें?
- या फ़िर बड़े लोग, बच्चों को ऐसी बातें पुरी पुरी समझा दे रहे हैं, और बच्चे उसमें से हास्य ढुँढ ले रहे हैं?
- या फ़िर बड़े लोग (माँ-बाप) बच्चों को ऐसे जोक्स रटा दे रहे हैं?
- या कहीं बच्चे जरा ज्यादा ही जल्दी "बड़े" तो नहीं होने लगे हैं?

क्या इसे ही कॉमेडी कहेंगे??

3 comments:

राजीव जैन said...

आपकी बात से पूरी तरह सहमत

इसलिए आजकल लगता है

टीवी पर सिर्फ काम की चीज देखो और

बा‍की के लिए ब्‍लॉग है न

सागर नाहर said...

बड़े दिनों बाद दिखे दद्दा!
वाकई बच्चे कुछ ज्यादा जल्दी ही बड़े कर दिये जा रहे हैं, बाकी इतने छोटे बच्चों को इतने गहरे चुटकुले कैसे समझ में आते..।
मतलब साफ है उन्हें उनके "बड़े" जबरने बड़े बना रहे हैं।

Shastri JC Philip said...

संचार माध्यम लगातार लोगों को "प्रोग्राम" कर रहे हैं जिससे कि वे अश्लीलता एवं हिंसा को "हास्य" के रूप में लें. इससे समाज में जो विध्वंस का तांडव चल निकलेगा उसका अधिकतर लोगों को कोई अनुमान नहीं है.

आलेख के लिये आभार !!

सस्नेह -- शास्त्री

-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.

महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)