Thursday, June 25, 2009

एक नॉनवेज जोक

एक बार एक हैण्डसम, उँचे कद का हष्टपुष्ट जवान अपनी कार से घुमते हुए एक कस्बे में आ पहुँचा।
वह युवक उस कस्बे के एकमात्र पब-रेस्त्रां में जा पहुँचा।

वहाँ एक टेबल पर बैठने के बाद उसने देखा कि रेस्त्रां में सिर्फ़ महिलाएं ही महिलाएं हैं।
और वह थोड़ा परेशान हो गया क्योंकि सब उसे ही घूर घूर करे देख रहीं थीं।

उसे थोड़ा अजीब लगा। फ़िर उसने वेटर को आवाज़ लगाई। जो वेटर आया उसे देखकर उसकी आँखे फ़टी की फ़टी रह गई।
इतनी बला की खुबसूरत और परफ़ेक्ट फ़िगर वाली लड़की उसने आज तक नहीं देखी थी।

उस युवक से रहा नहीं गया, उसने वेटर से इशारों में ही पुछ लिया कि "यहाँ और क्या मिलेगा?"
वो लड़की अपनी मदभरी चाल से युवक के पास आई, और नीचे झुकी और उसके कानों फ़ुसफ़ुसाई-
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चिकन मसाला
चिकन टिक्का मसाला
चिकन दो प्याज़ा
चिकन हैदराबादी
चिकन पटियाला
चिकन सागवाला
मुर्ग मुस्सलम
बटर चिकन मसाला
चिकन मंचुरियन
चिकन शामीकबाब
तंदूरी चिकन
चिकन टंगड़ी कबाब
चिकन बिरयानी
चिली चिकन
चिकन लालीपॉप
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:
:
इतना ही नहीं, वेटर ने युवक को मटन और फ़िश की भी डिशेज़ बताई।


(सच सच बताना - किस किस के मुँह में पानी आया?)
(अभी खाना खाते खाते ही बनाया हैं)

Thursday, June 18, 2009

The Last Lecture

मेरी आज की पोस्ट जो कि मेरे दूसरे ब्लाग "नून तेल लकड़ी" पर लिखी गई है।

यहा चटकाईये

Tuesday, June 09, 2009

पार्टी लो? या पार्टी दो?

फ़र्ज किया जाय:
- एक १००० लोगों का ग्रुप है।
- उन १००० लोगों के लिये एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।
- उन १००० लोगों में से सिर्फ़ ५० लोग उस प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं।
- उन ५० लोगों में से सिर्फ़ ३ जीतते हैं।
- परिणाम सारे १००० लोगों तक पहुँचाये जाते हैं।
- बाकी लोग उन जीते हुए ३ लोगों को बधाईयाँ देते हैं।

यहाँ तक तो सब सामान्य दिख रहा है। है ना?

अब, जैसा कि हमारे यहाँ चलन है, यार-दोस्त जीतने वालों से पार्टी की मांग करते हैं। जीतने वाला भी खुशी खुशी पार्टी देता है। सही है ना? आपने भी कभी ना कभी ऐसी पार्टी दी ही होगी। या फ़िर जैसे ही आपने किसी को अपना परिणाम बताया, सामने वाला फ़टाक से बोला - पार्टी?

- खुशियाँ बाँटने से बढती हैं।
- अपनी खुशियों में सबको शामिल करना चाहिये।
- खुशी के मौके पर पार्टी देना बनता ही है। यह तो रीत है।
इत्यादि इत्यादि तर्क दिये जाते हैं।

ऐसी बात नहीं है कि हम इससे कुछ अलग हैं, ऐसी पार्टियाँ तो हमने भी खुब मांगी है और खुब उड़ाई हैं। मगर क्या कभी किसी ने यह भी सोचा है कि वाकई जीतने वालों से ही पार्टी लेना ? याकि फ़िर बाकी लोगों ने मिल कर जीतने वालों को पार्टी देना चाहिये?

मैने हाल ही में इसपर गौर किया और मुझे यह ज्यादा तर्कसंगत लगा कि बाकी लोगों ने मिलकर जीतने वालों को पार्टी देना चाहिये।

मेरे तर्क/विचार हैं कि-

- चुँकि प्रतियोगिता सभी लोगों के लिये थी, तो वे लोग कैसे पार्टी मांग सकते हैं जिन्होने प्रतियोगिता में हिस्सा ही नहीं लिया?(१)
- जीतने वाले ने प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की हिम्मत दिखाई, जीतने के लिये मेहनत की, उसका समय दिया, और जब वो जीत गया तो बाकी लोग किस तरह से उसी से पार्टी लेने के हकदार हो गये?
- अगर जीतने वाला पार्टी देता है तो लेने वाले तो हमेशा तैयार ही रहेंगे, और जिनको वह नहीं बुला पायेगा वे लोग उससे नारज नहीं हो जायेंगे? और इस तरह से अगर जीतने वाला पार्टी देता रहे तो लेने वाले तो खतम ही नहीं होंगे।
- ऐसा क्यों ना हो कि जीतने वाले के निकटगण ही उसे पार्टी दे। इस तरह से पार्टी में ज्यादा (फ़ालतु) लोग भी जमा नहीं होंगे।, क्योंकि जो जीतने वाले के जीतने से सचमुच ही खुश हो, वही उसे पार्टी देने आयेंगे।

अब जीतने वाले को कुछ ना कुछ इनाम भी मिलता है। भले ही वह सिर्फ़ एक प्रमाणपत्र, या एक मेडल या फ़िर कुछ नकद पुरुस्कार, या फ़िर सिर्फ़ उसके नाम की घोषणा ही हुई हो, कभी कभी कोई पुरुस्कार नहीं भी रहता है, सिर्फ़ जीतने वाले का नाम सबको बताया जाता है।

अब इसपर लोग एक तर्क देते हैं कि जीतने वाले को तो वैसे ही इनाम मिल गया है तो उसे हम (बाकी) लोग फ़िर से क्यों इनाम (पार्टी) दें? अगर इनाम नहीं भी मिला तो भी लोग कहते हैं कि 'जीतने वाले का नाम तो हुआ'। इसी खुशी में उसे पार्टी देना चाहिये।

यह तर्क मुझे ऐसा लगता है मानो जब अभिनव बिन्द्रा सोने का तमगा जीत कर आये तो लोग उन्हें ही कहे कि 'पार्टी दो', जबकि उन्हें (और वैसे ही कई खिलाडियों को) तो सम्मान समारोह आयोजित कर के सम्मानित किया जाता है।

तो फ़िर यही बात बाकी जगह पर क्यों ना लागू की जाये। दरअसल यह पार्टी एक तरह का सम्मान समारोह ही तो है, जिसमें जीतने वाले के बारे में कुछ अच्छी बातें की जाती है, लोगों को यह पता चलता है कि जीतने वाले ने जीतने के लिये कितनी मेहनत की। नहीं क्या?

और एक अंतिम तर्क - जब जीतने वालो को ही पार्टी मिला करेगी तो क्या बाकी लोग इस बात से प्रोत्साहित नहीं होंगे और ज्यादा से ज्यादा लोग अगली बार जीतने की ज्यादा कोशिश नहीं करेंगे? इससे एक (स्वस्थ) प्रतिस्पर्धा की भावना सब लोगों में आयेगी, और हमे ज्यादा "विजेता" मिलेंगे।

क्या ऐसा कभी हो सकता है कि हमारा कोई मित्र (किसी भी प्रकार की) कोई प्रतियोगिता जीतकर हमारे सामने आये और हम उसे "पार्टी दो" के बजाय ये कहें कि "अरे वाह! तुमने अच्छा काम किया, चलो आज हम तुम्हें पार्टी देते हैं"।

तो बताईये, आप किसकी तरफ़ होना चाहेंगे?
जीतने वाले से पार्टी लेने वालों में??
या जीतने वाले को पार्टी देने वालों में??

(१) यह बिन्दू सिर्फ़ उपर दिये गये उदाहरण पर आधारित है, क्योंकि यह तो जरुरी नहीं कि पार्टी मांगने वाले भी उसी ग्रुप के हों।

Saturday, June 06, 2009

कृपया महिलायें इसे ना पढें

दोस्तों,

अगर आप अपने ब्लाग या अपनी वेबसाईट पर अपनी "उम्र" बताना चाहते हैं, जो कि हर रोज, खुद-ब-खुद "अपडेट" होती रहे, अरे बिल्कुल वैसे ही जैसे मैने अपने ब्लाग पर लगाई है, अरे॥!! देखो ना, सीधे हाथ की पट्टी में। दिखा??

तो फ़िर देर किस बात की ये लो छोटी सी जावास्क्रिप्ट (जावास्क्रिप्ट) जिसे कि आप किसी भी वेब पेज पर लगा सकते हैं।
----------------------------------------------------
<div id="vkwage"></div>
<script type="text/javascript"><!--
function daysInLastMonth(m,y) {
m-=2;
if(m<0){m=11;y-=1;}
return 32-new Date(y,m,32).getDate();
}
function getAge(y,m,d) {
var todaysDate = new Date();
var ty = todaysDate.getFullYear();
var tm = todaysDate.getMonth() + 1;
var td = todaysDate.getDate();
var dilm = daysInLastMonth(tm,ty);
var age = "";
var yd = ty - y;
var md = tm - m;
if(md<0) {
yd -= 1;
md = (12 - m) + tm;
}
var dd = td - d;
if(dd<0) {
md-=1;
dd = (dilm - d) + td;
}
if(yd > 0) {
age += yd + " वर्ष";
}
if(md>0) {
age += " " + md + " माह";
}
if(dd>0) {
age += " " + dd + " दिन";
}
return age;
}
var o=document.getElementById("vkwage");
o.innerHTML="जन्म हुये: "+ getAge(1977,3,29);
//--></script>
----------------------------------------------------


तो बस, आपको करना यह है कि ये उपर दी गई स्क्रिप्ट कॉपी करके अपने वेबपेज में पेस्ट करना है और हाँ यह जो लाल रंग में है वह आपका जन्म दिनांक है (वर्ष, माह, दिन)।

माह - जनवरी-१,फ़रवरी-२...

थोड़ा बहुत फ़ेरबदल करके इसे आप अपने पेज जैसा, और जैसा चाहिये वैसा आउटपुट ले सकते हैं (बशर्ते आपको थोड़ी बहुत जावास्क्रिप्ट आती हो)। script tag में चाहे जितनी बार आप वो document.write... लाईन लिख सकते हैं, अलग अलग dates के साथ।


हाँ, और आप महिलायें, आप अपने बजाये अपने किसी भी निकटतम का जन्मदिनाँक या फ़िर कोई महत्वपूर्ण दिनाँक इस्तेमाल कर सकती हैं।


बड़ा नोट: मैने पोस्ट का शीर्षक यूँ ही महिलाओं को भी यहाँ तक लाने के लिये ही दिया था।

ही...ही...ही



छोटा नोट: इस पोस्ट के टाईटल को महिलाओं के उम्र-छिपाओ-स्वभाव को लेकर किया गया स्वस्थ मजाक ही समझा जाय।

Wednesday, June 03, 2009

ऑनलाईन फ़ाईल कन्वर्टर

आपने मेरी पिछली पोस्ट में वीडियो देखा ही होगा, क्या कहा? नहीं देखा, कोई बात नही यहाँ से देख लो। यह मेरा पहला वीडियो है मेरे ब्लाग पर। अब उस वीडियो के ब्लाग पर आने की दास्तान भी पढ़ लो।

हाँ तो हुआ ऐसा था कि मैने अपने मोबाईल से वीडियो लिया था जो कि 3GP फ़ार्मेट में था, उसे मुझे यहाँ पोस्ट करना था। ब्लागर के ही टुलबार में "Add Video" बटन दिया गया है, जिससे कि ब्लाग पोस्ट में ही वीडियो लगा सकते है। ये uploaded वीडियो शायद गुगल वीडियोज़ में स्टोर हो जाते हैं। अब इसमें limitation यही थी कि ब्लागर सिर्फ़ AVI, MPEG जैसे १-२ फ़ार्मेट ही स्वीकार करता है।

अब आई मुसीबत फ़ार्मेट बदलने की।

पहले तो मैने सोचा कि कोई मुफ़्त का सॉफ़्टवेअर मिल जाये तो इंस्टाल कर लूँ, पर आजकल अपने लैपटाप पर कोई भी सॉफ़्टवेअर इंस्टाल करने से पहले १० बार सोचता हूँ।

फ़िर इंटर्नेट पर ही ढुँढ रहा था कि मेरा एक (कजिन) भाई (आशीष) ऑनलाईन नजर आया। मैने यों ही उससे पुछ लिया। उसने दो मिनिट में ही दो हल बता दिये। पहला तो कोई टूल इंस्टाल करने का था। दूसरा ऑनलाईन था। जाहिर है मैने दूसरा ही पहले (और आखिरी) देखा।

आप भी देखिये: www.media-convert.com

जाने कितनी तरह के तो फ़ार्मेट से कितनी ही तरह के फ़ार्मेट में कन्वर्शन की सुविधा दी गई है। बीसीयों advanced options भी हैं। मुझे तो कुछ जरुरत नहीं पड़ी। default settings से ही मेरा काम हो गया। युजर इंटरफ़ेस एकदम सीधा-सच्चा, सरल सा। बिलकुल १-२-३ की तरह आसान।

१- पहले अपने सिस्टम से जिस फ़ाईल को कन्वर्ट करना है उसे select करें।
२- source फाइल का फ़ार्मेट अपने आप select हो जायेगा, बस एक बार check कर लें।
३- जिस फ़ार्मेट में फ़ाईल वापस चाहिये उसे select करें।
बस, OK बटन दबायें।

फ़्री साईट होने की वजह से हो सकता है कि कन्वर्ज़न में थोड़ी देर लगेगी, पर काम एकदम चोखा होगा।
चाहें तो उसी वक्त download करें, या फ़िर ईमेल के द्वारा मंगवा लें, और तो और, चाहें तो सीधे मोबाईल पर download करें।

कुल मिला कर - एक बढिया ऑनलाईन टूल। (वो भी फ़ोकट) यानि कि सोने पे सुहागा!!

तो फ़िर देर किस बात की? हो जाईये शुरु, और दनादन घरभर के बदल डालिये -- फ़ार्मेट! :)

पानी की दीवार

मेरे पिछले पोस्ट में जिस पानी की दीवार का जिक्र था उसका वीडियो:




यह वीडियो मैने अपने मोबाईल से लिया हुआ है। वास्तविक फ़ाईल 3GP फ़ार्मेट में थी, जिसे AVI में बदल कर यहाँ पोस्ट किया है।

Monday, June 01, 2009

काश मैने कुछ और मांगा होता

मैं कल इन्दौर से पुणे के लिये बस में बैठा था। अल सुबह ही नींद खुल गई थी। बस अभी अहमदनगर भी नहीं पहुँची थी। मैं काफ़ी देर से अपनी ही सीट पर बैठा खिड़की के बाहर देखता रहा। फ़िर उकता कर आगे केबिन में चला गया। ड्रायवर, कंडक्टर से बात करते हुए आगे का ट्राफ़िक देखना भी अपने आप में एक बढिया शगल है।

सड़क से दाहिनी तरफ़ पानी की दो पाईपलाईन सड़क के समानांतर चल रही थी। सड़क से करीब ३०-४० फ़ुट की दूरी पर तो होगी ही। एक जगह पाईप पर एक बड़ा-सा जोड़ (या वाल्व) सा कुछ लगा था, जहाँ से पानी थोड़ा थोड़ा रिस रहा था। अमुनन ऐसे जोड़ो से पानी रिसता ही रहता है।

मेरे मन में युहीं एक दो ख्याल आ गये कि - इस पाईप में पानी कितने दाब से बहता होगा? अगर पाईप फ़ुट जाए तो पानी कैसे बहेगा? शायद वैसा ही जैसा कि हम लोग अक्सर हॉलिवुड की फ़िल्मों में देखते हैं - गलियों, चौराहों पर लगे हुये पानी के पाईप (हाईड्रेंट्स) हिरो या विलेन की गाड़ियों से टकराकर बड़े प्रेशर से पानी उपर को छोड़ते हुये।

यह सोच ही रहा था कि अचानक ड्राईवर ने कुछ कहा और गाड़ी धीरे कर ली, सामने देखा तो गाड़ियों की कतार नज़र आई। कारण जानने के लिये और आगे देखा तो कुछ समझा ही नहीं - दो चार गाडियों से आगे का कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, मानो धुँध सी छाई हुई हो।

थोड़ा और गौर किया तो तब जाकर मामला समझ में आया।

दरअसल, हुआ यह था कि वही पाईपलाईन आगे से फ़ुट गई थी, और पानी बड़े ही प्रेशर से हमारी दाईं तरफ़ से निकल कर करीब १०-१५ फ़िट उंची पानी की दीवार सी बनाता हुआ सड़क के बाईं तरफ़ तक पहुँच रहा था। मेरा मुँह खुला का खुला ही रह गया।

तत्काल मेरे मन में यह ख्याल आया कि "काश उस वक्त मैने कुछ और मांगा होता"।

बड़े फ़ोर्स से बहते हुये पानी के कारण सड़क तक थोड़ी सी कट गई थी। और गाड़िया एक ही लाईन में चल रही थी। हमारे आगे दो कार थी और उनके आगे एक ट्रक था, जो कि पानी की धार के बिल्कुल मुहाने पर खड़ा हुआ था। हमें लगा कि शायद वो पानी में जाने से डर रहा होगा। मगर देखा तो पानी की दीवार में एक पहले तो २ हलके हलके रोशनी के बिन्दु नज़र आये, फ़िर धीरे धीरे एक ट्रक हमारी ओर आया। पुरा भीगा हुआ।

कंडक्टर ने तुरंत बस में चक्कर लगाकर दाईं तरफ़ की सभी खिड़किया बंद करवाई। अब तक अधिकतर लोग उठ चुके थे, हो-हल्ला सुन कर। जैसे तैसे कर के हमारी आगे वाली गाड़ियाँ निकली, फ़िर हम चले पानी की दीवार पार करने। जैसे ही पानी की पहली बौछार ने हमारी बस को छुआ, लगा बस कुछ हिल सी गई। अचानक धड़ाक सी आवाज़ आई और ढेर सारा पानी बस की छत से अंदर आया। केबिन की छत में एक झरोखा सा था, वो पानी की धार से बंद हो चुका था। जैसे जैसे हम आगे बढते जा रहे थे, हमारी पीछे वाली सीटों से उह-आह-आई-ओए...आवाज़ें आ रही थी। यानी कि पानी बंद खिडकियों (झिर्रीयों) से भी अंदर आ रहा था। राम-राम करते हमारी बस ने पानी की दीवार को पार कर ही लिया।

फ़िर अपनी सीट पर आकर देखा तो मेरे उपर वाली बर्थ तक गीली हो चुकी थी जबकि मैं तो बस के बाईं तरफ़ ही बैठा था।

बस में अंदर पानी ही पानी हो रहा था, जाने कहाँ से घुस गया। सीट के नीचे रखे हुये सामान सारे भीग चुके थे।

बस एक फ़ायदा हुआ कि -अगले कुछ घंटो तक बस थोड़ी ठंडी बनी रही -वरना गरमी में बुरा हाल हो जाता।

पता नहीं कैसे फूटा होगा? अभी तक पाईप दुरस्त हो पाया होगा कि नहीं? जाने कितना पानी बेकार ही बह गया।

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वैसे मैंने मोबाइल से वीडियो भी लिया है, पर 3GP फ़ाईल को कैसे/कहाँ अपलोड करूँ -नहीं समझ पाया। कोई बता सके तो लगा दूंगा|