Tuesday, June 09, 2009

पार्टी लो? या पार्टी दो?

फ़र्ज किया जाय:
- एक १००० लोगों का ग्रुप है।
- उन १००० लोगों के लिये एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।
- उन १००० लोगों में से सिर्फ़ ५० लोग उस प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं।
- उन ५० लोगों में से सिर्फ़ ३ जीतते हैं।
- परिणाम सारे १००० लोगों तक पहुँचाये जाते हैं।
- बाकी लोग उन जीते हुए ३ लोगों को बधाईयाँ देते हैं।

यहाँ तक तो सब सामान्य दिख रहा है। है ना?

अब, जैसा कि हमारे यहाँ चलन है, यार-दोस्त जीतने वालों से पार्टी की मांग करते हैं। जीतने वाला भी खुशी खुशी पार्टी देता है। सही है ना? आपने भी कभी ना कभी ऐसी पार्टी दी ही होगी। या फ़िर जैसे ही आपने किसी को अपना परिणाम बताया, सामने वाला फ़टाक से बोला - पार्टी?

- खुशियाँ बाँटने से बढती हैं।
- अपनी खुशियों में सबको शामिल करना चाहिये।
- खुशी के मौके पर पार्टी देना बनता ही है। यह तो रीत है।
इत्यादि इत्यादि तर्क दिये जाते हैं।

ऐसी बात नहीं है कि हम इससे कुछ अलग हैं, ऐसी पार्टियाँ तो हमने भी खुब मांगी है और खुब उड़ाई हैं। मगर क्या कभी किसी ने यह भी सोचा है कि वाकई जीतने वालों से ही पार्टी लेना ? याकि फ़िर बाकी लोगों ने मिल कर जीतने वालों को पार्टी देना चाहिये?

मैने हाल ही में इसपर गौर किया और मुझे यह ज्यादा तर्कसंगत लगा कि बाकी लोगों ने मिलकर जीतने वालों को पार्टी देना चाहिये।

मेरे तर्क/विचार हैं कि-

- चुँकि प्रतियोगिता सभी लोगों के लिये थी, तो वे लोग कैसे पार्टी मांग सकते हैं जिन्होने प्रतियोगिता में हिस्सा ही नहीं लिया?(१)
- जीतने वाले ने प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की हिम्मत दिखाई, जीतने के लिये मेहनत की, उसका समय दिया, और जब वो जीत गया तो बाकी लोग किस तरह से उसी से पार्टी लेने के हकदार हो गये?
- अगर जीतने वाला पार्टी देता है तो लेने वाले तो हमेशा तैयार ही रहेंगे, और जिनको वह नहीं बुला पायेगा वे लोग उससे नारज नहीं हो जायेंगे? और इस तरह से अगर जीतने वाला पार्टी देता रहे तो लेने वाले तो खतम ही नहीं होंगे।
- ऐसा क्यों ना हो कि जीतने वाले के निकटगण ही उसे पार्टी दे। इस तरह से पार्टी में ज्यादा (फ़ालतु) लोग भी जमा नहीं होंगे।, क्योंकि जो जीतने वाले के जीतने से सचमुच ही खुश हो, वही उसे पार्टी देने आयेंगे।

अब जीतने वाले को कुछ ना कुछ इनाम भी मिलता है। भले ही वह सिर्फ़ एक प्रमाणपत्र, या एक मेडल या फ़िर कुछ नकद पुरुस्कार, या फ़िर सिर्फ़ उसके नाम की घोषणा ही हुई हो, कभी कभी कोई पुरुस्कार नहीं भी रहता है, सिर्फ़ जीतने वाले का नाम सबको बताया जाता है।

अब इसपर लोग एक तर्क देते हैं कि जीतने वाले को तो वैसे ही इनाम मिल गया है तो उसे हम (बाकी) लोग फ़िर से क्यों इनाम (पार्टी) दें? अगर इनाम नहीं भी मिला तो भी लोग कहते हैं कि 'जीतने वाले का नाम तो हुआ'। इसी खुशी में उसे पार्टी देना चाहिये।

यह तर्क मुझे ऐसा लगता है मानो जब अभिनव बिन्द्रा सोने का तमगा जीत कर आये तो लोग उन्हें ही कहे कि 'पार्टी दो', जबकि उन्हें (और वैसे ही कई खिलाडियों को) तो सम्मान समारोह आयोजित कर के सम्मानित किया जाता है।

तो फ़िर यही बात बाकी जगह पर क्यों ना लागू की जाये। दरअसल यह पार्टी एक तरह का सम्मान समारोह ही तो है, जिसमें जीतने वाले के बारे में कुछ अच्छी बातें की जाती है, लोगों को यह पता चलता है कि जीतने वाले ने जीतने के लिये कितनी मेहनत की। नहीं क्या?

और एक अंतिम तर्क - जब जीतने वालो को ही पार्टी मिला करेगी तो क्या बाकी लोग इस बात से प्रोत्साहित नहीं होंगे और ज्यादा से ज्यादा लोग अगली बार जीतने की ज्यादा कोशिश नहीं करेंगे? इससे एक (स्वस्थ) प्रतिस्पर्धा की भावना सब लोगों में आयेगी, और हमे ज्यादा "विजेता" मिलेंगे।

क्या ऐसा कभी हो सकता है कि हमारा कोई मित्र (किसी भी प्रकार की) कोई प्रतियोगिता जीतकर हमारे सामने आये और हम उसे "पार्टी दो" के बजाय ये कहें कि "अरे वाह! तुमने अच्छा काम किया, चलो आज हम तुम्हें पार्टी देते हैं"।

तो बताईये, आप किसकी तरफ़ होना चाहेंगे?
जीतने वाले से पार्टी लेने वालों में??
या जीतने वाले को पार्टी देने वालों में??

(१) यह बिन्दू सिर्फ़ उपर दिये गये उदाहरण पर आधारित है, क्योंकि यह तो जरुरी नहीं कि पार्टी मांगने वाले भी उसी ग्रुप के हों।

7 comments:

Unknown said...

bhai kamaal ka manthan kiya hai aapne ab aapko party to deni hi padegi..........

दिनेशराय द्विवेदी said...

अपने तो यह चक्र समझ नहीं आया।

Unknown said...

एकदम सही तर्क है आपका, यदि जीतने वाले को पार्टी दी जाये तो आयोजकों का "कांट्रीब्यूशन" भी आपस में बहुत कम होगा, जबकि यदि जीतने वाला पार्टी देता है तो उसका बहुत खर्चा हो जाता है… आपकी बात में दम तो है, तो हमें कब पार्टी दे रहे हैं आप?

विजय वडनेरे said...

अरे यार...

अब इतना मंथन किया हमने, लिखा हमने, फ़िर भी पार्टी हमीं से मांग रहे हो।

इतना लिखकर भी हमें ही पार्टी देना पडेगी क्या??

आप सब लोग 'कान्ट्रीब्यूशन' करो और मुझे पार्टी दो!!

Vaibhav said...

बात तो सच है, अब तो आपकी पार्टी बनती है :-)

Shradha Drolia said...

baat to aapne sahi likhi hain....jitne waale ko party milni chahiye aur naa ki use dusro ko deni chahiye....aaj apko party humari taraf se....tea party ;)(jo aap lete nai ho hahahaha..)

Science Bloggers Association said...

भई हम तो जीतने वालों को पार्टी देने वालों में शामिल होना चाहेंगे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }