Wednesday, March 01, 2006

जो होता है, (शायद) अच्छा ही होता है

किन्ही कारणों से उदास था, अचानक कुछ याद आया, अपने ई-मेलबाक्स को टटोला, एक पुरानी ई-मेल खोली, उसे पढा - थोड़ा मन को अच्छा लगा। वही कहानी यहाँ छाप रहा हूँ, हिन्दी में। देखिये किसे पसंद आती है, और कौन इससे (शीर्षक से) इत्तेफ़ाक रखता है:-

एक कमज़ोर सा दिखने वाला व्यक्ति बार में अकेला बैठा था। उदास सा। बस, बैठे बैठे
अपने ड्रिंक के ग्लास को टकटकी लगाकर देख रहा था। दीन-दुनिया से बेखबर सा। तभी बार
में "दादा" टाईप के एक व्यक्ति ने प्रवेश किया। इधर-उधर लोगों को धौल जमाता हुआ,
अपना रौब झाड़ता हुआ, बार काउंटर तक पहुँचा, जहाँ अपना नायक मुँह लटका के बैठा था।
आते ही उसने अपने हीरो का जाम झटके से छीना और "गटाक" से एक ही सांस में खाली कर
गया। फ़िर गरज़ा- "बच्चे!! अब बोल, क्या बोलता है?"

"कुछ नहीं यार!", ठंडी आह भर कर नायक बोला, "आज
मेरी जिंदगी का सबसे खराब दिन है। आज सुबह मैं ज्यादा सो गया। देर से उठने के कारण,
अपने आफ़िस देर से पहुँचा और एक अति महत्वपूर्ण मिटिंग में नही शामिल हो पाया। मेरा
बास बहुत नाराज़ हुआ, इतना कि उसने मुझे नौकरी से ही निकाल दिया। खैर, अपना सामान
समेट कर जब मैं अपनी कार तक पहुँचा तो क्या देखा कि मेरी कार वहाँ नही थी, कोई उसे
भी चुरा ले गया। मरता क्या ना करता, टैक्सी पकड़ी और घर तक पहुँचा। जब टैक्सी वाले
को भाड़ा देना था तो देखा कि मेरा बटुआ भी नहीं है। वो भी गाली बकता हुआ चला गया। जब
मैं घर में घुसा तो क्या देखता हूँ कि मेरी पत्नी, मेरे ही घर के माली के साथ मेरे
ही बिस्तर में बेवफ़ाई की सारी हदें पार कर रही है। आखिरकार मैंने घर ही छोड़ दिया और
यहाँ इस बार में आ कर बैठा। और जब मैं इन सारी झंझटो से मुक्ति पाने वाला था
तो अचानक तुम कहीं से आए और मेरा ज़हर से भरा ग्लास भी पी गऐ……
"

4 comments:

पंकज बेंगाणी said...

हा हा हा हा हा हा... :-)) क्या बात है. सही है.

Jitendra Chaudhary said...

सही है भीरू।
मजा आ गया।

Pratik Pandey said...

अच्छा कहाँ हुआ? सब कुछ तो बेचारे के साथ बुरा-ही-बुरा हुआ। हाँ, अन्त में 'ज़हर का प्याला' कोई और पी गया; यह अच्छा हुआ। :)

Anonymous said...

हा हा हा, सही जोक से भी मजेदार.....