Monday, June 05, 2006

दिल का हाल..कह तो दिया अब.. दिल को खोल..!!

परिचर्चा में बड़ी चर्चा थी "हाइकू" की.
हम भी जा पहुँचे और बड़े-बुढों को लिखता देख हमने भी हाथ मारा,
और सबसे पहली बनाई ये वाली:-

क्या होती है ये?
इसे कविता कहें?
है गणित ये!!



आज जब चुटकुलेबाजी से फ़ुर्सत मिली तो से घुमते घामते फ़िर हाइकू सेक्शन तक आ पहुँचे.
सोचा आज एक अदद और लिख दी जाय.

तो जनाब, बनाने बैठे.
अब जब बनते बनते उम्मीद से काफ़ी बड़ी बन गई तो मन में लालच आ गया.
सोचा परिचर्चा तक ही क्यों इसे सीमित रखें, ऐसे "कलात्मक पीस" को तो अपने चिठ्ठे पर ही जगह मिलनी चाहिये.

तो साहेबान, पेश-ए-खिदमत है,
हाल-ए-हाइकू:

सोचा बहुत,
लिखूँ मैं कुछ और,
है नया दौर!

'आरक्षण' है
'महाजन' भी तो है
जिंदगी बोर...!

मन में व्यथा
और है व्याकुलता
बाहर शोर..!!

काम करते,
हम व्यस्त दिखते,
मन में चोर..!!

विरह में हैं,
इंतजार में रहें,
कितना और..!!

सपना मेरा,
खुशियों का बसेरा,
सांझ या भोर..!!

समय हुआ,
हम चलते बने,
घर की ओर..!!

कामना भी है,
मन करता अब,
जाऐं इन्दौर..!!

बहुत हुआ,
अब मत कहना-
कि वंस मोर..!!

नाम है मेरा,
विजय वडनेरे,
ना कोई और..!!

9 comments:

RC Mishra said...

जनाब ये 'हाइकू' क्या चीज है?

Anonymous said...

हाइकु कि मात्राओं तथा अक्षरों का गणीत समझाईये, मिश्राजी को.

Sunil Deepak said...

मुझे यह दो पसंद आईं:

"मन में व्यथा
और है व्याकुलता
बाहर शोर..!!

काम करते,
हम व्यस्त दिखते,
मन में चोर..!!"

तुक तो सबका अच्छा है पर इनमें भाव भी छुपा है.

ई-छाया said...

अरे वाह विजय

Jitendra Chaudhary said...

सही है भीड़ू।
अब तो बेटा तुम भी हाइकू गुरु हो गये, इसे कहते है, गुरु गुड़ ही रहा, चेला चीनी हो गया"

नही चीनी नही, चेला तो जापानी हो गया(हाइकू जापानी विधा है ना)

Udan Tashtari said...

बेहतरीन है, विजय भाई. आप तो वाकई हाईकु को लेकर सिरियस टाइप के हो गये.
बढिया है कलम सधाये रखें,बधाई.

समीर लाल

विजय वडनेरे said...

मिश्रजी: विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि आपको पता चल गया है कि हाइकू किस चिडिया का नाम है, तथापि हम बताय देते है:

पंक्तियाँ तीन,
अक्षर ५, सात, ५,
हाइकू नाम!!

संजय भाई: उम्मीद है कि हम ठीक तरह से समझा पाये होंगे.

सुनील जी: आपको पसंद आई इसके लिये शुक्रिया. बाकि तो हम तुक बनाते चले, भाव-ताव तो "ऑटोमेटिकली" ही आ गये :)

ई-शैडो जी: धन्यवाद

जीतू भैय्या: भई फ़िलहाल तो अपन सिंगापूरी हैं। वैसे, आप तो बस्स सिखाते चलो हम सीखते रहेंगे.

समीर जी: तारीफ़ के लिये (भी) सिरियसली शुक्रिया। मैं तो बस्स तारीफ़ ऊप्स, आई मीन, प्रोत्साहन का भूखा हूँ जी!! :)

अनूप शुक्ल said...

लिख ही मारे
हायकू चकाचक
बहुत अच्छे!

Sagar Chand Nahar said...

जरा यहाँ नजर डालिये हमने भी आपके लिये कुछ लिखा है प्रविष्टी क्रमांक 11 और 13
http://www.akshargram.com/paricharcha/viewtopic.php?id=229