Thursday, November 02, 2006

सावधान! एक खतरनाक बीमारी!!

क्या आपको जानकारी है कि आजकल एक बेहद खतरनाक बीमारी ब्लागजगत में फ़ैली हुई है, जिसके शिकार/रोगी आजकल यत्र तत्र घुमते दिखाई देते हैं।
जिस किसी को भी ये बीमारी लग जाये, समझ लो उसकी तो वाट लग गई..!!

बीमारी के लक्षण? मैं बताता हूँ ना -
  • अंतर्जाल पर जरुरत से ज्यादा भ्रमण।
  • ज्यादा से ज्यादा जालस्थलों को कम से कम समय में देखने की लालसा।
  • ब्लाग्स (चिठ्ठों) पर अधिक मेहरबानी।
  • उसमें भी हिन्दी चिठ्ठों पर कुछ खास नज़र-ए-इनायत।
  • लगभग हर चिठ्ठे/जालस्थल से कुछ ना कुछ टीप (कॉपी) कर एक नोटपेड में मय लेखक के नाम से चेपना (पेस्ट करना)।
  • टिप्पणियों को और तस्वीरों को भी नहीं छोड़ना।
  • अपना अमुल्य समय देकर, जमा की गई जानकारी को संपादित करना।
  • और अधिक समय बिगाड कर लिखे हुये / संपादित किये हुये पर कलरबाजी (फ़ारमेटिंग) करना।
  • और अंततः इस प्रकार तैयार किये गये लेख को इस उम्मीद के साथ प्रकाशित कर देना कि लोग उससे लाभ उठायेंगे।
  • (और भी बहुत सारे लक्षण हैं - उपरोक्त तो महज उनमें से प्रमुख ही हैं)
अभी तक के ज्ञात केसेस:
  • देबाशीष (काफ़ी दिनों से बीमारी के लक्षण दबे हुये हैं - लगता है ठीक हो रहे हैं)
  • अनुप शुक्ला (फ़्रिक्वेंट फ़्लायर हैं, बीमारी हायर स्टेज पर है)
  • जितेन्द्र चौधरी (मजे मजे में बीमारी के किटाणु छू गये लगता हैं)
  • समीर लाल (विशिष्ट कलात्मक रोगी, ये रोग फ़ैलाने में काफ़ी माहिर हैं)
  • राकेश खंडेलवाल (सिरीयसली और रेग्युलरली बीमार)
  • संजय बेंगाणी (छोटे छोटे दौरे पडते हैं)
  • (और भी काफ़ी बीमार हैं, सूची यहाँ है)
इनमें से "संजय बेंगाणी" नामक रोगी तो थोडे स्पेशल केस हैं, इन्हें रह रह कर अचानक बीमारी के झटके आते हैं और ये भोजनावकाश के पहले या बाद में अचानक इसके प्रभाव में आ जाते हैं।

अभी अभी विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि हमारे प्रिय मित्र "सागरचंद नाहर" भी इसी बीमारी के लपेटे में आ गये हैं, और ये रोग लगा बैठे हैं.

तो मित्रों ये बिमारी एक संक्रामक रोग है, और हमें अपने प्रियजनों को इस व्याधि से पीडित होने से बचाना है।
अतः अपने आस पास देखिये, अगर आपको किसी में भी इसके थोडे भी लक्षण दिखते हैं तो तुरंत बचाव के उपाय कीजिये।
हाँ, उस दौरान खुद को संक्रमण से बचाय रखना आपकी खुद की जिम्मेदारी है।

पुराने रोगी अक्सर ये बड़बड़ाते पाये जाते हैं:
  • ...बहुत अच्छा लिखते हो...कुद पडो मैदान में..
  • ...निमंत्रण भेजते हैं...
  • ..क्या लिखते हो? एक छोटा सा काम है...
  • ...एक सामाजिक काम है...करोगे क्या?...
अगर आपके ब्लाग पर टिप्पणी में या किसी ईमेल में उपरोक्त में से कुछ दिखाई दे तो समझ जाइयेगा कि कोई आपके उपर भी बीमारी के किटाणु छोड़ रहा है। तुरंत सावधान हो जाइये।

अरे! इस बीमारी का नाम तो सुनते जाइये - इसका नाम है - चिठ्ठाचर्चा !!

आपका शुभचिंतक!
(यकिन मानिये - अभी तक तो इस रोग के लक्षण छू के भी नहीं गये हमें)

12 comments:

Pratik Pandey said...

बढिया लिखा है गुरू। यह कोई आम बीमारी नहीं, बल्कि महामारी है महामारी... :-)

संजय बेंगाणी said...

जब इतना अच्छा लिख ही लेते हो तो चिट्ठाचर्चा क्यों नहीं करते?
निमंत्रण भिजवाऊं क्या?
:)

संजय बेंगाणी said...

काश आप पहले इस बिमारी के बारे में यह जनहित पोस्ट लिख देते तो मुझ जैसे एक आध रोगी तो इस बिमारी से बच निकलता.

bhuvnesh sharma said...

विजयजी बीमारों की लिस्ट में तो मैं भी हूँ
जल्दी से अस्पताल का पता बताईये।

पंकज बेंगाणी said...

अपन ने तो एंटी बायोटिक टिका रखी है गुरू....

अपन को तो झटके कम लगते हैं...

पर पास ना आना मियाँ.... छुआछुत की बिमारी है... :)

Sagar Chand Nahar said...

अच्छा किया समय पर चेता दिया वरना.....यकीन मानिये हमें नहीं पता था कि यह इतनी खतरनाक बीमारी है।
वैसे लिख अच्छा लेते हैं, चिठ्ठा चर्चा क्यों नहीं करते । कुछ पुराने रोगियों को भी आराम मिल जायेगा।

अनुराग श्रीवास्तव said...

बड़ी भयंकर बीमारी फैली है यहां तो, मैं तो सटकता हूं यहां से………

विजय, बच कर रहना!!

Shuaib said...

वाह हकीम साहब क्या बीमारी पकडी है आपने - वाकई बहुत अच्छा लिखा आपने :)

Anonymous said...

भैया यह तो बहुत ही खतरनाक बीमारी है ऊपर लिखे नामों वाले सब लोग तो पुराने पापी हैं, पर मेरा तो हिन्दी चिट्ठाजगत से परिचय ही २-३ महीने पुराना है फिर भी इस बीमारी ने मुझे एकदम चपेट में ले लिया।

Pratyaksha said...

आप कैसे बचे रहे ? डॉ. झटका से इलाज कराया क्या ;-)

विजय वडनेरे said...

हमारी बात का समर्थन करने के लिये आप सभी का धन्यवाद.

संजय भाई और सागर भाई पहले तो किटाणु छोड रहे थे, फ़िर बाजार का रुख पकड कर बोले कि "बचाया क्यों नहीं" :)

प्रत्यक्षा जी: डॉ झटका का ईलाज नहीं, हमारा खुद का तरीका अपनाया है। कानों में रूई ठूँस रखी है..सर पर हेल्मेट और तो और आँखों पर काला चश्मा. चश्में और हेल्मेट पर नीँबू और मिर्च बांध रखी है. :)

Anonymous said...

विजय भाई नमस्ते!, कुछ दिनो से 'हिन्दी चिट्ठे लिखने - पढने के बीमारी' से ग्रसित हूँ.पता नही कैसे आपके चिट्ठे तक पहली बार ही आ पाई हूँ..जानकर बेहद खुश हूँ कि आप इन्दौर के हैं..वैसे तो मै खरगोन की हूँ लेकिन इन्दौर भी आधा घर ही है,तमाम रिश्तेदार वहाँ रह्ते हैं..परिचर्चा पर आपकी मजेदार 'कुन्डली' पढी..मैने खरगोन पर एक कविता लिखी है समय मिले तो पढियेगा.( 'पहला कदम और उससे मिली शिक्षा' नामक पोस्ट www.rachanabajaj.wordpress.com पर है. लिन्क देना मुझे नही आता).