अरे नहीं नही भाई लोगों....
इतनी जल्दी कोई खुशखबरी नहीं है और ना ही हम इस बात को लेकर हमारे पास आने वाले "बधाई-उधाई" को "इण्टरटैन" करेंगे.
मैं तो आजकल के गलाकाट माहौल की सच्चाई से आपको रुबरु करवाना चाहता हूँ, और रचनाकार पर पढे एक आलेख के विषय पर एक और किस्सा बताना चाह रहा हूँ.
आज ही के समाचार पत्र (सकाळ- पुणे) में यह खबर पढी:
चेन्नई में एक चिकित्सक दंपति ने अपने प्रायवेट क्लीनिक में भर्ती एक गर्भवती महिला की सिझेरियन पद्धति द्वारा प्रसूति करवाई.(माना कि इसमें कोई खास बात नहीं, मगर हज़रत जरा आगे तो पढिये). हाँ तो ये ऑपरेशन कुछ खास था. तभी तो समाचार पत्र में अपनी जगह बना पाया.और ये खास इसलिये था क्योंकि ऑपरेशन किया गया था मा० दिलीपनराज द्वारा.अगर यहाँ आपने "मा०" का मतलब "माननीय" लगा लिया हो तो इसमें आपकी कोई गलती नहीं. हर समझदार व्यक्ति (लो आप तो बैठे ठाले समझदारों में आ गये - से थैंक्स!!) ऐसा ही करेगा (है ना?? मैं गलत तो नहीं ही ना??)मगर सच यह है कि यहाँ "मा०" का आशय "मास्टर" से है, अरे वही मास्टर जो आप और हम अपने नाम के आगे लगाते थे..जब हम "बच्चॆ" हुआ करते थे (मैं यह मान कर चल रहा हूँ कि यहाँ पढने वाले सभी बड़े ही होंगे)तो जी आप सही समझे, ऑपरेशन (सिझेरियन) किया गया एक अल्पव्यस्क बालक के द्वारा, एक दसवीं (१०वीं) कक्षा में पढने वाले पन्द्रह (१५) वर्षीय बालक द्वारा, जिसकी योग्यता केवल इतनी है कि उसके माता-पिता स्वयं डॉक्टर (प्रसूतितज्ञ और जनरल सर्जन) हैं. जच्चा और बच्चा की सेहत की पूछताछ ना कि जाये - समाचार में इसका कोई जिक्र नहीं था.अब किसी प्रायवेट क्लीनिक में क्या क्या होता है, ये या तो वहाँ के डॉक्टरों को पता होता है, या फ़िर वहाँ काम करने वालों को, या फ़िर (बिचारे) मरीज़ों (और उनके परिजनों) को. तो फ़िर ये खबर वहाँ से बाहर आई कैसे? वो तो भला को डॉ०के०मुरुगेषन का. क्या कहा? इन्हें नहीं पहचानते? अरे वही, काबिल बच्चे के काबिल पिताजी.इण्डियन मेडिकल एसोसियेशन (आई०एम०ए०) की एक सभा में कूद-कूद के सबको बता दिये कि (वे और) उनका बालक कितना होनहार है. और उम्मीद करने लगे कि "गब्बर बहुत खुस होगा, साब्बासी देगा". हुँह."अरे जब १० साल का बच्चा मोटर चला सकता है, ११ साल का बच्चा सॉफ़्टवेयर/वेबसाईट बना सकता है, १५ साल का बच्चा (पढलिखकर) डॉक्टर बन सकता है, तो उनका बच्चा एक छोटा सा सिझेरियन का ऑपरेशन नहीं कर सकता क्या?? क्या फ़र्क पडता है अगर उसने कोई विधिवत चिकित्सा शास्त्र की शिक्षा नहीं ली. बच्चे के माता पिता स्वयं डॉक्टर हैं, क्या इतना काफ़ी नहीं है? बच्चा खुद बड़ा होशियार है, देखदेख कर सब सीख जाता है, और किसी से कहीं कम नहीं है."ये उपर उद्धृत विचार मेरे नहीं हैं. उन्हीं डॉक्टर साहब के हैं, जो उन्होने आई०एम०ए० के सदस्यों के सामने तब रखे जब उलट उनसे ही इस मामले में सफ़ाई देने को कहा गया.अब (बिचारे) डॉक्टर साहब का अपने बच्चे का नाम किसी रिकार्ड बुक में दर्ज कराने का सपना तो सपना ही रह जायेगा और उस पर उनका खुद का नाम किस किस रिकार्ड (पुलिसीया रिकार्ड) में चढता है और किस रिकार्ड (डॉक्टर पदवी) से बाहर होता है ये तो वक्त ही बतायेगा (क्योंकि आई०एम०ए० के सदस्यों ने डॉक्टर बाबू पर इन्क्वायरी बैठा दी है - और उनसे उनकी डॉक्टरी की डिग्री वापस ले लेने पर भी विचार किया जा रहा है).
तो जैसा कि आप सभी को पता चला है (और पहले से भी पता होगा हम तब भी यही कहेंगे - देखें कोई क्या करता है) कि आजकल के बच्चे कुछ जल्दी ही बड़े हो जाते हैं, या यूँ कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि बड़ों के द्वारा धक्का दे दे कर बड़ा बना दिये जाते हैं.
जो उम्र खेलने कूदने की होती है, अच्छी बातें सीखने की होती है, उस उम्र में आजकल के बच्चे अपने पालकों/शिक्षकों के दबाव में अपने जिंदगी के बेहतरीन पलों को खो रहें हैं. कभी पढाई की चक्की में, कभी किसी "खेल" की दौड़ में, तो कभी गानों की तान में, तो कभी किसी "रिकार्ड" की तलाश में बच्चों का बचपन खोता जा रहा है.
उन पालकों /शिक्षकों को कोई किस तरह समझाए कि जो काम, जो मुकाम आप खुद नहीं पा सके अपनीं जिंदगी में, वह अपने बच्चों के उपर "थोपना" कहाँ तक जायज़ है?
माना कि कुछ बच्चे वाकई बहुत समझदार, जीनियस टाईप के होते हैं, और थोड़ा भी मार्गदर्शन मिले तो सफ़लता के नये आयाम छू सकते हैं, और छूते भी है. इसमें कोई दो राय नहीं. मगर मार मार के गधे को घोड़ा बनाना, याने कि सिर्फ़ "रिकार्ड" के लिये बच्चों से कोई ऐसा काम करवाना जो उस काम से संबंधित लोगों के लिये और/या खुद बच्चे के लिये खतरनाक साबित हो कहाँ तक सही ठहराया जा सकता है?
आपकी राय जानने की इच्छा रहेगी.
वैसे एक बात और बतायें? इन्दौर में हमारे परिचित एक दंपति की ४-५ साल की बिटिया को अभी से संसार के सारे देशों के नाम और उनकी राजधानियाँ मुँह-जबानी याद है.



8 comments:
भीया जी, हम आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हैं। बड़े सलीके से विचार प्रकट किये हैं आपने।
बेचारे बच्चे!
हे हे डॉक्टर बाबू का दाँव उल्टा पढ़ गया। :)
बेचारे बच्चों पर बोझ बढ़ता जा रहा है, गलाकाट प्रतिस्पर्धा ने उनका बचपन छीन लिया है।
बच्चे बेचारे परेशान हो रहे हैं।
हाय रे बेचारे बच्चे.
उस डॉग-दर बाबू को तो कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए.
वैसे भी उन्होंने बच्चे पर जुल्म तो किया ही है, अचिकित्सक से सर्जरी जैसा कार्य करवा कर मरीज की जान भी खतरे में डालने का कार्य किया है!
सभी बुद्ध-जनों- का टिप्पणी के लिये धन्यवाद.
वैसे अब मामला गरमाता जा रहा है, और ये खबर अब टाईम्स ऑफ़ इण्डिया में भी प्रकाशित हो चुकी है. मय "सो-कॉल्ड" डॉग-दर फ़ैमिली की तस्वीर.
पता नहीं "बच्चे" और क्या क्या गुल खिलाने वाले हैं.
आगे आगे देखिये होता है क्या क्या.
लीजिये साहब,
आज के अखबार (२६ जून, सकाळ -पुणे) में उप्रोक्त डॉक्टर दंपति के गिरफ़्तार होने की भी खबर आ गई है.
ठीक ही तो है... जैसी करनी, वैसी भरनी!!
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