बैठे बैठे अचानक ही मेरे दिमाग में ये कीडा कुलबुलाया कि क्यों ना आप लोगों से एक शायराना पहेली पूछी जाय?
पहेली कुछ ऐसी है कि - एक शेर की पहली पंक्ति मैं लिखता हूँ, आप लोग उसे पूरा करने का प्रयत्न करें। दूसरी लाइन कुछ भी हो सकती है। यानी की जरूरी नहीं कि "सीरियस" टाईप की ही हो।
वैसे मेरे पास भी एक 'दूसरी' लाइन है, पर देखते हैं कि दूर दूर बैठे हम लोग एक जैसा सोच सकते हैं या नहीं।
तो लीजिये, पहली लाइन है:
शाम जवान है ....
अब आपकी बारी।
Tuesday, November 27, 2007
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7 comments:
जवानी में उफ़ान है।
ऐसे में आता बस तूफान है
तुम पर दिल कुर्बान है
हाथों में एक जाम है
या
ऐसे में तुम कहां हो
शाम जवान है ............. दिल तो बदगुमान है
वो कभी न आएगा इसका इत्मिनान है
दिल का मगर क्या कीजे, आस पे ही जीता है
ये भी आसरा न छीन .... इस पे टिकी जान है
गला हलकान है
किराये का मकान है
दूर दुकान है
आया मेहमान है
मैं बहुत दिनों तक इंतजार करता रहा कि कभी तो कोई मेरे जैसे सोचेगा. मगर नहीं, इतना फटा हुआ कोई सोच नही पाया.
मैंने सोचा था-
शाम जवान है,
और घनशाम मेजर है!!
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