"...मैं आगे आया, मैने देखा, बॉल खसकाई, एंगल सेट किया, और जोर से शॉट मारा। ये क्या, मेरा क्लब बॉल को छुआ तक नहीं। उपर से निकल गया। थोड़ी देर बाद फ़िर ट्राय किया, अबकी बार बॉल हिली और कुछ गज तक गई। तीसरी बार और जोर लगाया, धत्त तेरे कि, इस बार बॉल तो कुछ खास बढी नहीं, हाँ, घास और मिट्टी जरुर काफ़ी दूर तक उड़ गई।"
जी हाँ, दोस्तों, आप सही समझे, मैं गॉल्फ़ सीख रहा हूँ।
मेरी बहुत समय से इच्छा थी, और मौका ही ढुँढ रहा था। मौका भी मिल गया। एक नया गॉल्फ़ कोर्स शुरु हुआ है जहाँ गॉल्फ़ एकेडमी भी है। तो वहाँ पर एक ६ दिन का आरंभिक कोर्स शुरु किया गया है। ऑस्ट्रेलिया से एक प्रोफ़ेश्नल गोल्फ़र आये हैं सिखाने के लिये, नाम है क्लाईव्ह बार्डस्ले। सिखाने के लिये उनके सहायक हैं भारत के नौजवान गॉल्फ़र अनिरबन लाहिरी। मन तो था ही, फ़िर सीनियर प्रोफ़ेश्नल खिलाड़ी (खिलाडियों) से सीखने का मौका। और कहते हैं ना, अच्छे मौके बार बार नहीं मिलते।
बस एक दिक्कत थी, मैडम जी की इच्छा थी कि जब "वो लोग" पुणे आ जायें उसके बाद ही मैं कुछ नया शुरु करूँ। तो कुछ ऐसा मामला जमा कि कोर्स शुरु होने के एक दिन पहले ही मैडम और प्रांजय पुणे पहुँच रहे थे। दूसरी बात थी कि कोर्स के लिये मुझे रोज २ से ढाई घंटे देने पड़ते। तो लग रहा था कि मैडम मना कर देंगी। मगर नहीं, उन्होने सुना, समझा और पुरा सहयोग दिया। और बोलीं कि जाओ अच्छे से सीखना (ताकि बाद में मैं उन्हे सीखा सकूँ)।
अब तीसरी दिक्कत - कोर्स का समय सुबह ७:३० से ९:३०। कोर्स, घर से १६ किमी दूर। ऑफ़ीस का टाईम ९:३०, पर चलो वह तो मैनेज हो जाता है। इतनी फ़्लेक्सिबिलिटी तो है भई हमारे ऑफ़ीस में।
सो ले ही लिया, कोर्स में दाखिला।
तो होता यह है कि सुबह १६ किमी जाना, फ़िर १६ किमी आना और फ़िर ६ किमी पर ऑफ़ीस। उफ़्फ़...!! अपनी गड़्डी की, बोले तो, वाट लग रेली है। गड्डी बोले तो, कार-शार नहीं जी, अपनी दुचाकी, बाईक। तो बाईक की अब कहीं जाके परीक्षा हो रही है। (ये मुये पेट्रोल के दाम भी अभी ही बढने थे)।
इतना तो अच्छा है कि १० किमी हाईवे पर है। सो वह तो ५ से १० मि. में पार हो जाते हैं। बचे ६ किमी हाईवे से अंदर हैं और बुरी बात कि रोड भी पुरी तरह से पक्की नहीं बनी हुई है। बेचारी बाईक, पहले तो ८०-९० फ़िर एकदम से २०-२५।
मेरे साथ उस कोर्स में सीखने वाले, एक तो महाराष्ट्र पुलिस के पीली बत्ती वाले सी.आई.डी. अफ़सर हैं, एक साहब रीयल स्टेट बिल्डर हैं। अपने लड़के (१२-१५ वर्ष का होगा) के साथ सीखते हैं। और बाकि लोग भी किसी ना किसी बड़े व्यवसायी के पुत्र/पुत्री/पत्नी।
यानी कि नौकरी करने वाला और बाईक पर आने वाला - सिर्फ़ अपुनईच्च है। वो क्या है ना कि अपुन तो आलरेडी हज़ारों में एक हूँ ना।
खैर हमे क्या? अपन तो सीखने आये हैं, पुरा पैसा वसूल करते हैं, मन लगा कर सीखते हैं।
अब क्या क्या सीखा कैसे कैसे सीखा यह भी सब बताउंगा।
अपनी अगली कुछ पोस्ट्स में मैं गॉल्फ़ की बातें करूंगा और यह भी बताउंगा कि कोर्स कैसा चल रहा है।
क्या आप कभी खेले हैं गॉल्फ़? अपना अनुभव जरुर बताईयेगा।
वैसे लाईफ़ में इससे भी नया (और अच्छा) बहुत कुछ हुआ है और चल ही रहा है।
वो अंग्रेजी में कहते हैं ना? रीड बिटविन द लाइन्स। तो अगर आपने उपर की लाईन्स अच्छे से पढी होंगी तो समझ ही जायेंगे। :)
Wednesday, July 08, 2009
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1 comment:
खेलना तो पसंद नहीं मगर नेटवर्किंग के लिए गोल्फ कोर्स जरुर चले जाते हैं ऑफिस मीट्स में. :) सुनईये आप तो किस्से.
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