पहले: पच्चीस हज़ार में एक।
अब: सत्तर हज़ार में एक।
बुझो तो जाने!
Tuesday, April 14, 2009
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24 घंटे कम नहीं होते। बहुत कुछ घटता है। आपके साथ, आपके अपनों के साथ, और अनजानों के साथ भी। व्यक्ति विशेष नहीं होते, घटनाएँ विशेष होती हैं, यही सब पाएंगे आप यहाँ।
4 comments:
अभी आपकी कई रचनाये पढ़ी ,पढ़ कर अच्छा लगा .
लेकिन ये पहेली समझ में नही आई .
पहले: पच्चीस हज़ार में एक।
अब: सत्तर हज़ार में एक।
कुछ हिंट दीजिये
बिना हिंट के पता नही चलेगा।
मुंबई में प्रति इकाई ज़मीन का दाम लग रहा है ये तो!
आलोक भाई: 'रचनाएं अच्छी लगी' यह जान कर अच्छा लगा, और आपने यह बात यहाँ टिप्पणी के रुप में जाहिर कर दी - यह और भी अच्छा लगा।
परमजीत जी: हिंट के रुप में एक और पोस्ट ठेल दी गई है।
अनिल जी: हम उसकी क्या बातें करें जो सपने से भी बाहर हो! ही ही ही।
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