पहले तो खुद decide करो,
फ़िर manager से मिलो,
उसको convince करो,
उसका approval लो…
यहाँ तक तो सब Normal चलता है, मगर इसके बाद जो दास्तां शुरु होती है वह Private Sector की एक बडी IT Company में भी "सरकारी दफ़्तर" की मौजुदगी का अहसास दिला देती है। और शायद अभी तक "पंकज कपूर" का ध्यान इस पर गया नही, वरना Office-Office की एक और कडी तैयार मिलती।
आज मुझे एहसास हुआ कि - किसी company में आने से ज्यादा मुश्किल होता है वहाँ से जाना। बुलाने के लिये तो HR पलक पाँवडे बिछा के स्वागत करते हैं, पर जाते समय आप उनके लिये एकदम "अस्पर्श्य" जैसे ही हो जाते हैं। आपकी कोई पुछ परख ही नही रहती। आप खुद को उनकी priority श्रेणी में बिल्कुल अंतिम स्थान पर पाते हैं। एक एक approval लिये बार बार चक्कर काटो, उनकी चिरौरी करो। उफ़्फ़!! इससे तो अच्छा था कि जहाँ हो वही रहो। मगर हाय रे! "तरक्की की चाहत", तुझे avoid कैसे करें??
तो अब तक तो आप समझ ही गये होंगे कि मैं क्या "गुबार" निकाल रहा हूँ। नहीं?? अरे मैं एक बढिया सी, आराम की नौकरी को त्याग कर, एक नई, अनजान सी जगह पर, नये लोगों के बीच, जाने की राह पर निकल पडा हूँ। बकौल "शाहरुख खान" -
दिल है, मेरा दीवाना, यारों मैं तो चला, माना मंज़िल दूर है, पर जाना ज़रुर है, ऐ दोस्तों अलविदा…!!
तर्जुमा:
दिल - यहाँ दिमाग पढेँ
दीवाना - तरक्की के लिये कटीबद्ध
मंजिल - बताऊँगा बताऊँगा, थोडा इंतज़ार कीजिए
तो मैं "रो" (बता) रहा था कि - manager, system admin, library, training dept, admin, finance, HR etc etc...में चक्कर काटते काटते मुझे तो अपने फ़ैसले पर वो क्या है ना - कभी कभी डाऊट होने लगता है। खैर, "जब ओखली में सर दिया तो मूसल से क्या डरना"। क्या कहते हैं आप?
मुन्ना भाई MBBS का (modified) dialog: अरे सर्किट, ये स्साला company में 256 तरह के departments होते हैं, अपन स्साला join होते समय सोचते हैं क्या?
चलो, मैं फ़िर चलता हूँ मेरा form आगे बढाने की कवायद करने। updates देते रहुँगा। किसी को shortcuts पता हो तो सलाह दीजिए, एक अदद शुक्रिया ज्ञापित करूँगा आपको।
(अगली कडी)
Tuesday, February 21, 2006
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4 comments:
लगता है आप नौकरी छोड रहे हैं , पर हिन्दी मे लिखना नही छोडियेगा | अच्छा और सरस लिखा है | लिखते रहिये | लेकिन धीरे-धीरे जरा रोमन में लिखे शब्दों को कम करके सम्पूर्ण देवनागरी पर आ जाइये | अंगरेजी के शब्दों को ज्यों का त्यों देवनागगरी में लिख देने पर भी बात पूरी तरह समझ में आ जाती है |
अनुनाद
जीवन अगर अपने हिसाब से जीना चाहते हैं तो power के खेल समझने पड़ेंगे आपको। जितनी जलदी अपनी power बना सको उतना बेहतर।
टिप्पणी के लिये धन्यवाद!!
अनुनाद जी: आपके कहेनुसार चलने का "ट्राय" करुंगा!
जय हनुमान जी: आपकी बात में सचमुच "पावर" (दम) है!!
सही लिखे हो,
कम्पनियां ऐसे ही ट्रीट करती है, ज्वाइन करते समय दामाद और जाते समय घर जंमाई की तरह।
तुम्हारे भविष्य के लिये हमारी बहुत बहुत शुभकामनायें
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