Monday, June 01, 2009

काश मैने कुछ और मांगा होता

मैं कल इन्दौर से पुणे के लिये बस में बैठा था। अल सुबह ही नींद खुल गई थी। बस अभी अहमदनगर भी नहीं पहुँची थी। मैं काफ़ी देर से अपनी ही सीट पर बैठा खिड़की के बाहर देखता रहा। फ़िर उकता कर आगे केबिन में चला गया। ड्रायवर, कंडक्टर से बात करते हुए आगे का ट्राफ़िक देखना भी अपने आप में एक बढिया शगल है।

सड़क से दाहिनी तरफ़ पानी की दो पाईपलाईन सड़क के समानांतर चल रही थी। सड़क से करीब ३०-४० फ़ुट की दूरी पर तो होगी ही। एक जगह पाईप पर एक बड़ा-सा जोड़ (या वाल्व) सा कुछ लगा था, जहाँ से पानी थोड़ा थोड़ा रिस रहा था। अमुनन ऐसे जोड़ो से पानी रिसता ही रहता है।

मेरे मन में युहीं एक दो ख्याल आ गये कि - इस पाईप में पानी कितने दाब से बहता होगा? अगर पाईप फ़ुट जाए तो पानी कैसे बहेगा? शायद वैसा ही जैसा कि हम लोग अक्सर हॉलिवुड की फ़िल्मों में देखते हैं - गलियों, चौराहों पर लगे हुये पानी के पाईप (हाईड्रेंट्स) हिरो या विलेन की गाड़ियों से टकराकर बड़े प्रेशर से पानी उपर को छोड़ते हुये।

यह सोच ही रहा था कि अचानक ड्राईवर ने कुछ कहा और गाड़ी धीरे कर ली, सामने देखा तो गाड़ियों की कतार नज़र आई। कारण जानने के लिये और आगे देखा तो कुछ समझा ही नहीं - दो चार गाडियों से आगे का कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, मानो धुँध सी छाई हुई हो।

थोड़ा और गौर किया तो तब जाकर मामला समझ में आया।

दरअसल, हुआ यह था कि वही पाईपलाईन आगे से फ़ुट गई थी, और पानी बड़े ही प्रेशर से हमारी दाईं तरफ़ से निकल कर करीब १०-१५ फ़िट उंची पानी की दीवार सी बनाता हुआ सड़क के बाईं तरफ़ तक पहुँच रहा था। मेरा मुँह खुला का खुला ही रह गया।

तत्काल मेरे मन में यह ख्याल आया कि "काश उस वक्त मैने कुछ और मांगा होता"।

बड़े फ़ोर्स से बहते हुये पानी के कारण सड़क तक थोड़ी सी कट गई थी। और गाड़िया एक ही लाईन में चल रही थी। हमारे आगे दो कार थी और उनके आगे एक ट्रक था, जो कि पानी की धार के बिल्कुल मुहाने पर खड़ा हुआ था। हमें लगा कि शायद वो पानी में जाने से डर रहा होगा। मगर देखा तो पानी की दीवार में एक पहले तो २ हलके हलके रोशनी के बिन्दु नज़र आये, फ़िर धीरे धीरे एक ट्रक हमारी ओर आया। पुरा भीगा हुआ।

कंडक्टर ने तुरंत बस में चक्कर लगाकर दाईं तरफ़ की सभी खिड़किया बंद करवाई। अब तक अधिकतर लोग उठ चुके थे, हो-हल्ला सुन कर। जैसे तैसे कर के हमारी आगे वाली गाड़ियाँ निकली, फ़िर हम चले पानी की दीवार पार करने। जैसे ही पानी की पहली बौछार ने हमारी बस को छुआ, लगा बस कुछ हिल सी गई। अचानक धड़ाक सी आवाज़ आई और ढेर सारा पानी बस की छत से अंदर आया। केबिन की छत में एक झरोखा सा था, वो पानी की धार से बंद हो चुका था। जैसे जैसे हम आगे बढते जा रहे थे, हमारी पीछे वाली सीटों से उह-आह-आई-ओए...आवाज़ें आ रही थी। यानी कि पानी बंद खिडकियों (झिर्रीयों) से भी अंदर आ रहा था। राम-राम करते हमारी बस ने पानी की दीवार को पार कर ही लिया।

फ़िर अपनी सीट पर आकर देखा तो मेरे उपर वाली बर्थ तक गीली हो चुकी थी जबकि मैं तो बस के बाईं तरफ़ ही बैठा था।

बस में अंदर पानी ही पानी हो रहा था, जाने कहाँ से घुस गया। सीट के नीचे रखे हुये सामान सारे भीग चुके थे।

बस एक फ़ायदा हुआ कि -अगले कुछ घंटो तक बस थोड़ी ठंडी बनी रही -वरना गरमी में बुरा हाल हो जाता।

पता नहीं कैसे फूटा होगा? अभी तक पाईप दुरस्त हो पाया होगा कि नहीं? जाने कितना पानी बेकार ही बह गया।

-----------------------
वैसे मैंने मोबाइल से वीडियो भी लिया है, पर 3GP फ़ाईल को कैसे/कहाँ अपलोड करूँ -नहीं समझ पाया। कोई बता सके तो लगा दूंगा|

3 comments:

रवि रतलामी said...

हालाकि मैंने प्रयोग नहीं किया है, मगर आप यह आजमा सकते हैं -
http://www.soft29.com/freeware/youtube_uploader.htm

और, यदि ये काम करता हो तो, कृपया एक बढ़िया रीव्यू भी लिख दें!

नीरज गोस्वामी said...

बुजुर्ग इसी लिए कहते हैं सोच हमेशा अच्छी रक्खो....ये भी बढ़िया अनुभव रहा जो हर किसी को नसीब नहीं होता...
नीरज

RC Mishra said...

अभी बता दिया है न आगे से वही करना और खूब मोबाइल विडियो दिखाना!