Thursday, April 06, 2006

झेलिये....

 
कल परसों पता नहीं किस पिनक में हमने कहीं से एक गजल के बोल ढुँढ कर यहाँ  लिख छोडे थे.
 
हमारे एक मित्र श्रीमान रा० च० मिश्र जी ने कहा, कि भैय्या लिखा तो है ही, सुना भी देते तो और अच्छा होता.
 
यकीं मानिये, हम गलत नहीं समझे.
 
हमने तो पुरी इमानदारी से कोशिश की थी वो गजल  ढुँढने की, मगर अब नहीं मिली तो क्या अपने दोस्त को निराश कर देते?
 
नहीं, बिल्कुल नहीं.
 
उनके लिये, खास उनके लिये, हमने वो गजल "खुद" गाई. इसे कहते हैं यारी निभाना. है कि नहीं?
 
तो लीजिये, आप भी झेलिये, सॉरी, आई मीन, सुनिये, जगजीत सिंह जी की वो गजल हमारी दिलकश, दिलबहार, दिलपसंद, दिलफ़लाना, दिलढिकाना आवाज में..
 
 
नोट १: किसी को इंडियन आयडल वालों का नम्बर पता हो तो कृपया उन्हें मेरे ब्लाग का पता बता दिजीयेगा, और फ़िर मेरे लिये sms भी कीजियेगा.
 
नोट २: गालियाँ, सडे अण्डे, टमाटर, चप्पल जूते (पेयर में) कृपा करके श्रीमान रा० च० मिश्र जी के पते पर फ़ारवर्ड करें.

4 comments:

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

http://www.musicindiaonline.com/l/9/s/album.657/artist.400/

yahan se ghazal suniye (original by Jagjit Singh)

Kaul said...

... और सीधे सुन सकते हैं यहाँ से। वैसे विजय ने भी बुरी नहीं गाई है। ;-)

RC Mishra said...

मै विजय भाई का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होने, मेरी ख्वाहिश को मूर्त रूप प्रदान करने के लिये इतना बडा रिस्क लिया (शीर्षक) | साथ ही मानोशी (दी) और रमण कौल जी को उनके त्वरित एवं अति उपयोगी टिप्पणी के लिये धन्यवाद|

इसमेँ कोई शक नही है कि मेरे मित्र की आवाज वाकयी दिलकश, दिलबहार, दिलपसंद, दिलफ़लाना, दिलढिकाना (अन्य उपयुक्त विशेषण आप स्वयं जोड लें) है. हालाकि सवयं को यकीन दिलाने के लिये मुझे 4 बार सुननी पडी, अस्तु मैँ पहली टिप्पणी न कर सका|

उम्मीद है सभी ब्लागर बन्धु इसे एक उदाहरण के तौर पर लेंगें|

Srijan Shilpi said...

ये गज़ल एक बार फिर से सुनने को मिली। विजय भाई, मानोशीजी, रमणजी और मिश्रजी के सौजन्य से। आनन्द आ गया।