...राहुल बाबा, क्यों ना यह प्रथा अपने ही घर से शुरु करो?
और अब देखते हैं कांग्रेस का अगला अध्यक्ष कोई मुस्लिम बनता है या नहीं?
वैसे इतने सालों में आप लोग (कांग्रेस) अपनी ही पार्टी में एक भी सक्षम मुसलमान नहीं ढुँढ पाये जिसे आप कांग्रेस का अध्यक्ष बना सकें??
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मैं किसी की (मुस्लिम भाईयों की) सक्षमता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा रहा, अपितु, एक बयान को एक अलग नजरिये से देखने की कोशिश कर रहा हूँ।
और कांग्रेस के तमाम मुस्लिम कार्यकर्ताओं से यह अनुरोध करना चाहता हूँ कि वे 'राहुल बाबा' से यह प्रश्न जरुर जरुर पुछें।
Tuesday, December 15, 2009
Thursday, November 19, 2009
आईये जाने गॉल्फ़ को - ४
अब तक आपने गॉल्फ़ के मैदान के बारे में जाना, गेंद के बारे में जाना और गॉल्फ़ क्लब्स के बारे में भी जाना। अब जानते कुछ और महत्वपूर्ण बातों के बारे में।
एक खिलाड़ी को गॉल्फ़ खेलते समय कुछ और चीजों की जरुरत पड़ती है। उनमें पहला स्थान है पहनावे का।
एक पुरुष गॉल्फ़र को आधिकारिक रुप से कॉलर वाली टी-शर्ट या बॉटल नेक टी-शर्ट, हॉफ़ या फ़ुल बाँह वाली (स्लीवलेस नहीं), फ़ॉर्मल पैंट या ३/४th (कॉटन इत्यादी) (जींस नहीं) और गॉल्फ़ शूज़ पहनना होता है।
वहीं महिला गॉल्फ़र के लिये कॉलर वाली टी-शर्ट या बॉटल नेक टी-शर्ट, फ़ॉर्मल पैंट या स्कर्ट, गॉल्फ़ शूज़ मान्य है।
हाँ, दोनो के लिये टी-शर्ट, पैंट (या स्कर्ट) में खुसी हुई (IN) की होना चाहिये। इनके अलावा हैट, कैप या वाईसर और धूप के चश्में हो सकते हैं।
अक्सर खिलाड़ी एक हाथ में दस्ताना (golf glove) भी पहनता है| दांये हाथ का खिलाड़ी बांये हाथ में और बांये हाथ वाला खिलाड़ी दांये हाथ में। यह दस्ताना खिलाड़ी को क्लब पकड़ने से हाथ में होने वाले छालों से बचाता है।
यह तो हुआ पहनावा। देखते हैं कि गॉल्फ़ किट में क्लब्स के अलावा और क्या-क्या हो सकता है।
पानी की बोतल, एक अच्छी सी छतरी (भई धूप या बारिश से बचने के लिये), कड़ी धूप से बचने के लिये सनस्क्रिन क्रिम, मच्छरों/घास के कीड़ों से बचने हेतु कोई क्रिम (अब कछुआ छाप अगरबत्ती ले कर फ़िरने से तो रहे), एक स्कोरकार्ड - अपना स्कोर दर्ज करने के लिये, एक अदद पेन/पेंसिल (अब स्कोर कैसे दर्ज करोगे), एक डायरी - उस गॉल्फ़कोर्स के बारे में कुछ जानकारी, जैसे बंकर, वृक्षों , पानी इत्यादी की स्थिति।
इनके अलावा कुछ अतिरिक्त गेंदें, अरे भई, अगर गेंद पानी के डबके में गई तो उसमें कुद के निकालोगे क्या?
दो और छोटी (परंतु महत्वपूर्ण) वस्तुएं, जो खिलाड़ी की जेब में होती हैं -
पिच रिपेयरर: आपके शॉट मारने से अगर फ़ेअरवे या ग्रीन का कुछ हिस्सा खराब होता है तो आपका फ़र्ज बनता है कि उसे थोड़ा सा ठीक कर दें, जिससे आपके पीछे आने वाले खिलाडियों को उससे असुविधा ना हो। पिच रिपेयर से आप घास/मिट्टी को थोड़ा दबा/उठा सकते हैं। एक छोटी (बहुत छोटी) खुरपी जैसा होता है, जो आसानी से जेब मे समाजाने जितना ही बड़ा होता है।
बॉल मार्कर: जब आपकी गेंद 'ग्रीन' पर पहुँच जाती है तो आप उसे उठा कर साफ़ कर फ़िर से वहीं रख सकते हैं। आप अपनी गेंद उठाने के पहले बॉल मार्कर रखते हैं जिससे आपकी गेंद वापस रखते समय ठीक उसी जगह रखी जा सके। यह एक सिक्के जैसा होता है।
एक ऑप्शनल वस्तु:
गॉल्फ़ ट्राली: गॉल्फ़ किट को इस ट्राली पर रख कर खींचते हुये ले जाया जा सकता है।
इन सबके अलावा जो एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति, जो कि हर खिलाड़ी के साथ होता है, वह है कैडी।
कैडी: आपने अक्सर देखा होगा कि गॉल्फ़ खेलते समय प्रत्येक खिलाड़ी के साथ-साथ एक आदमी चलता है जो कि उस खिलाड़ी की गॉल्फ़किट उठा कर चलता है। उसे ही कैडी कहते हैं। प्रत्येक शॉट के पहले वह किट में से खिलाड़ी को सही क्लब निकाल कर देता है, और शॉट के बाद क्लब को साफ़ कर के वापस किट में रखता है। यह कैडी न सिर्फ़ उसके खिलाड़ी की किट उठाता है, बल्कि उसे गॉल्फ़कोर्स के बारे में सलाह भी देता है (जब जरुरत हो)। अक्सर यह कैडी उसी गॉल्फ़कोर्स का ही कर्मचारी होता है। जिसे कोर्स के बारे में बहुत जानकारी होती है, जिसे वह उसके खिलाड़ी के साथ टुर्नामेंट के समय बाँटता है। स्तरिय टुर्नामेंट्स में खेल शुरु होने के बाद खिलाडी अपने कैडी के अलावा किसी और से बात नहीं कर सकता है। अधिकतर जाने माने खिलाड़ी हर जगह अपने तय कैडी को ही ले जाना पसंद करते हैं। जैसे नंबर एक खिलाड़ी टाईगर वुड्स के कैडी हैं स्टीव विलियम्स, जो कि हमेशा उनके साथ हर प्रतियोगिता में रहते हैं।
कैडी बनना भी आसान काम नहीं है। आपको गॉल्फ़ के बारे में बहुत जानकारी होना चाहिये। गॉल्फ़ कोर्स को 'पढते' आना चाहिये, हवा, तापमान इत्यादि बहुत सी बातों का ज्ञान होना चाहिये। और सही समय पर अपने खिलाड़ी को सही सलाह देते आना चाहिये।
साथ ही यह भी जान लें कि कैडी बनना दोयम दर्जे का काम नहीं है। इसमें भी काफ़ी कमाई होती है। हर प्रतियोगिता की फ़ीस के साथ ही साथ अगर उनका खिलाड़ी जितता है तो पुरुस्कार राशी का कुछेक प्रतिशत (५%-१०%) भी कैडी के खाते में जाता है। तो आप खुद अंदाजा लगा लीजिये कि स्टीव विलियम्स साल में कितना कमाते होंगे। इंटर्नेट की माने तो सन २००५ में स्टीव ने $697558 सिर्फ़ टाईगर का कैडी बनकर ही कमाया था। और २००८ में (शायद) यह आंकड़ा बढ कर $4900000 हो गया था।
शायद यही कारण हो कि कई प्रोफ़ेश्नल गॉल्फ़र्स, गॉल्फ़ छोड़ कर कैडी बनने का फ़ैसला लेते हैं और(यकिन करना मुश्किल है, परंतु) वे अपने गॉल्फ़ कैरियर से अधिक कमा लेते हैं।
इन सबके अलावा एक गोल्फ़ कोर्स में एक चीज और जो देखी जाती है वह है गॉल्फ़ कार्ट/बग्गी।
यह एक बैटरी से चलने वाली छोटी सी गाड़ी होती है जो खिलाडियों, उनकी किट और कैडी को उस कोर्स में एक जगह से दूसरी जगह पहुचाने के काम आती है।
आज के लिए इतना ही। अगली बार हम हैण्डिकैप और गॉल्फ़ खिलाडियों के स्तर के बारे में जानेंगे, और यह कि एक अमेच्युअर और प्रोफ़ेश्नल खिलाड़ी में क्या फ़र्क होता है।
एक खिलाड़ी को गॉल्फ़ खेलते समय कुछ और चीजों की जरुरत पड़ती है। उनमें पहला स्थान है पहनावे का।
एक पुरुष गॉल्फ़र को आधिकारिक रुप से कॉलर वाली टी-शर्ट या बॉटल नेक टी-शर्ट, हॉफ़ या फ़ुल बाँह वाली (स्लीवलेस नहीं), फ़ॉर्मल पैंट या ३/४th (कॉटन इत्यादी) (जींस नहीं) और गॉल्फ़ शूज़ पहनना होता है।
वहीं महिला गॉल्फ़र के लिये कॉलर वाली टी-शर्ट या बॉटल नेक टी-शर्ट, फ़ॉर्मल पैंट या स्कर्ट, गॉल्फ़ शूज़ मान्य है।
हाँ, दोनो के लिये टी-शर्ट, पैंट (या स्कर्ट) में खुसी हुई (IN) की होना चाहिये। इनके अलावा हैट, कैप या वाईसर और धूप के चश्में हो सकते हैं।
अक्सर खिलाड़ी एक हाथ में दस्ताना (golf glove) भी पहनता है| दांये हाथ का खिलाड़ी बांये हाथ में और बांये हाथ वाला खिलाड़ी दांये हाथ में। यह दस्ताना खिलाड़ी को क्लब पकड़ने से हाथ में होने वाले छालों से बचाता है।
यह तो हुआ पहनावा। देखते हैं कि गॉल्फ़ किट में क्लब्स के अलावा और क्या-क्या हो सकता है।
पानी की बोतल, एक अच्छी सी छतरी (भई धूप या बारिश से बचने के लिये), कड़ी धूप से बचने के लिये सनस्क्रिन क्रिम, मच्छरों/घास के कीड़ों से बचने हेतु कोई क्रिम (अब कछुआ छाप अगरबत्ती ले कर फ़िरने से तो रहे), एक स्कोरकार्ड - अपना स्कोर दर्ज करने के लिये, एक अदद पेन/पेंसिल (अब स्कोर कैसे दर्ज करोगे), एक डायरी - उस गॉल्फ़कोर्स के बारे में कुछ जानकारी, जैसे बंकर, वृक्षों , पानी इत्यादी की स्थिति।
इनके अलावा कुछ अतिरिक्त गेंदें, अरे भई, अगर गेंद पानी के डबके में गई तो उसमें कुद के निकालोगे क्या?
दो और छोटी (परंतु महत्वपूर्ण) वस्तुएं, जो खिलाड़ी की जेब में होती हैं -
पिच रिपेयरर: आपके शॉट मारने से अगर फ़ेअरवे या ग्रीन का कुछ हिस्सा खराब होता है तो आपका फ़र्ज बनता है कि उसे थोड़ा सा ठीक कर दें, जिससे आपके पीछे आने वाले खिलाडियों को उससे असुविधा ना हो। पिच रिपेयर से आप घास/मिट्टी को थोड़ा दबा/उठा सकते हैं। एक छोटी (बहुत छोटी) खुरपी जैसा होता है, जो आसानी से जेब मे समाजाने जितना ही बड़ा होता है।
बॉल मार्कर: जब आपकी गेंद 'ग्रीन' पर पहुँच जाती है तो आप उसे उठा कर साफ़ कर फ़िर से वहीं रख सकते हैं। आप अपनी गेंद उठाने के पहले बॉल मार्कर रखते हैं जिससे आपकी गेंद वापस रखते समय ठीक उसी जगह रखी जा सके। यह एक सिक्के जैसा होता है।
एक ऑप्शनल वस्तु:
गॉल्फ़ ट्राली: गॉल्फ़ किट को इस ट्राली पर रख कर खींचते हुये ले जाया जा सकता है।
इन सबके अलावा जो एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति, जो कि हर खिलाड़ी के साथ होता है, वह है कैडी।
कैडी: आपने अक्सर देखा होगा कि गॉल्फ़ खेलते समय प्रत्येक खिलाड़ी के साथ-साथ एक आदमी चलता है जो कि उस खिलाड़ी की गॉल्फ़किट उठा कर चलता है। उसे ही कैडी कहते हैं। प्रत्येक शॉट के पहले वह किट में से खिलाड़ी को सही क्लब निकाल कर देता है, और शॉट के बाद क्लब को साफ़ कर के वापस किट में रखता है। यह कैडी न सिर्फ़ उसके खिलाड़ी की किट उठाता है, बल्कि उसे गॉल्फ़कोर्स के बारे में सलाह भी देता है (जब जरुरत हो)। अक्सर यह कैडी उसी गॉल्फ़कोर्स का ही कर्मचारी होता है। जिसे कोर्स के बारे में बहुत जानकारी होती है, जिसे वह उसके खिलाड़ी के साथ टुर्नामेंट के समय बाँटता है। स्तरिय टुर्नामेंट्स में खेल शुरु होने के बाद खिलाडी अपने कैडी के अलावा किसी और से बात नहीं कर सकता है। अधिकतर जाने माने खिलाड़ी हर जगह अपने तय कैडी को ही ले जाना पसंद करते हैं। जैसे नंबर एक खिलाड़ी टाईगर वुड्स के कैडी हैं स्टीव विलियम्स, जो कि हमेशा उनके साथ हर प्रतियोगिता में रहते हैं।
कैडी बनना भी आसान काम नहीं है। आपको गॉल्फ़ के बारे में बहुत जानकारी होना चाहिये। गॉल्फ़ कोर्स को 'पढते' आना चाहिये, हवा, तापमान इत्यादि बहुत सी बातों का ज्ञान होना चाहिये। और सही समय पर अपने खिलाड़ी को सही सलाह देते आना चाहिये।
साथ ही यह भी जान लें कि कैडी बनना दोयम दर्जे का काम नहीं है। इसमें भी काफ़ी कमाई होती है। हर प्रतियोगिता की फ़ीस के साथ ही साथ अगर उनका खिलाड़ी जितता है तो पुरुस्कार राशी का कुछेक प्रतिशत (५%-१०%) भी कैडी के खाते में जाता है। तो आप खुद अंदाजा लगा लीजिये कि स्टीव विलियम्स साल में कितना कमाते होंगे। इंटर्नेट की माने तो सन २००५ में स्टीव ने $697558 सिर्फ़ टाईगर का कैडी बनकर ही कमाया था। और २००८ में (शायद) यह आंकड़ा बढ कर $4900000 हो गया था।
शायद यही कारण हो कि कई प्रोफ़ेश्नल गॉल्फ़र्स, गॉल्फ़ छोड़ कर कैडी बनने का फ़ैसला लेते हैं और(यकिन करना मुश्किल है, परंतु) वे अपने गॉल्फ़ कैरियर से अधिक कमा लेते हैं।
इन सबके अलावा एक गोल्फ़ कोर्स में एक चीज और जो देखी जाती है वह है गॉल्फ़ कार्ट/बग्गी।
यह एक बैटरी से चलने वाली छोटी सी गाड़ी होती है जो खिलाडियों, उनकी किट और कैडी को उस कोर्स में एक जगह से दूसरी जगह पहुचाने के काम आती है।
आज के लिए इतना ही। अगली बार हम हैण्डिकैप और गॉल्फ़ खिलाडियों के स्तर के बारे में जानेंगे, और यह कि एक अमेच्युअर और प्रोफ़ेश्नल खिलाड़ी में क्या फ़र्क होता है।
Saturday, October 31, 2009
आइये जाने गॉल्फ़ को - ३
पिछली बार आपने गॉल्फ़ बॉल के बारे में जाना, अब पढते हैं गॉल्फ़ क्लब के बारे में।
जिस तरह क्रिकेट में बैट से, टेनिस में रेकेट से बॉल को हिट किया (मारा) जाता है, उसी प्रकार गॉल्फ़ में जिस स्टिक से बॉल को हिट किया जाता है उसे साधारणत: 'क्लब' कहा जाता है। जहाँ बाकी खेलों में एक ही प्रकार के बैट, रेकेट इत्यादि होते हैं, वहीं गॉल्फ़ में कई प्रकार के 'क्लब्स' होते हैं जिनकी सहायता से यह खेल खेला जाता है। यह क्लब्स रखने के लिए एक बैग होता है, जिसे 'गॉल्फ़ किट' या 'गोल्फ़ बैग' कहा जाता है। गॉल्फ़ खेलते समय यह किट खिलाड़ी खुद या उनके सहायक उठाकर चलते हैं। इन सहायकों को 'कैडी' कहा जाता है। कैडी किट उठाकर चलने के अलावा भी काफ़ी काम का होता है। उसके बारे में बाद में जानेंगे। पहले यह जान लें कि गॉल्फ़ में कई प्रकार के क्लब्स क्यों होते हैं और उनकी क्या भूमिका होती है।
जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूँ कि गॉल्फ़ का मैदान काफ़ी विस्तृत होता है, और खिलाड़ी को उसकी बॉल एक जगह से शुरु करके एक होल तक पहुँचानी होती है। तो हर बार खिलाड़ी के लिये एक नई चुनौती होती है, क्योंकि उसका हर शॉट किसी अलग जगह ही जा कर गिरेगा। एक उदाहरण से समझते हैं। एक होल है ४५० यार्ड्स का। एक खिलाड़ी टी से शुरुआत करता है। उसने बॉल हिट की, उसकी बॉल होल की दिशा में कहीं भी गिर सकती है। मान लेते हैं कि टी से १८० यार्ड्स की दूरी पर गिरी। अब खिलाड़ी को उसका अगला शॉट इस तरह से खेलना पडेगा कि बॉल होल से और नजदीक पहुँचे। मगर अब यहाँ से होल की दूरी है २७० यार्ड्स। इसी प्रकार उसका तीसरा शॉट होल के और नजदीक होगा। कुल मिला कर यह कहा जाय कि एक गॉल्फ़र एक ही शॉट को दुबारा नहीं खेलता तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। इसलिये एक ही 'क्लब' से अलग अलग दूरी के शॉट्स मारना, असंभव नहीं तो, आसान भी नहीं है। इसलिये, एक गॉल्फ़ किट में अलग अलग दूरी के शॉट्स मारने के लिये अलग अलग क्लब्स होते हैं।
एक क्लब के तीन हिस्से होते हैं:
ग्रिप (grip): जहाँ से क्लब को पकड़ा जाता है।
हेड (head): क्लब का वह सिरा जिससे बॉल को हिट किया जाता है।
शॉफ़्ट (shaft): ग्रिप और हेड को जोड़ने वाली लंबी छड़।
हर क्लब, दूसरे क्लब से अलग होता है, यानी कि शाफ़्ट की लंबाई और शाफ़्ट-हेड के कोण (angle) हर क्लब में अलग होते हैं। एक क्लब को उसकी श्रेणी और उसके नंबर से पहचाना जाता है। जैसे 3 wood, 4 wood, 5 wood या 2-iron, 3 iron ...9 iron इत्यादि। एक श्रेणी का क्लब उसी श्रेणी के कम नंबर वाले क्लब से लंबाई (shaft) में कम होगा पर कोण (shaft-head angle) ज्यादा होगा।
Shaft-Head Angle (शाफ़्ट-हेड कोण): यह बॉल की उँचाई और दूरी तय करता है। जितना ज्यादा कोण उतनी ज्यादा उँचाई परंतु कम दूरी, और कम कोण याने ज्यादा दूरी परंतु कम उँचाई।
नीचे दिया गया चित्र ३ मुख्य श्रेणियों को दर्शा रहा है।
वुड (wood): इन्हे 'फ़ेअरवे वुड्स' भी कहा जाता है। इनके द्वारा बॉल सर्वाधीक दूरी तक हिट की जा सकती है। यह बाकी क्लब्स से लंबे होते हैं। साधारणत: इनमें ३, ४, और ५ नंबर के वुड्स होते हैं। पहले यह लकड़ी के ही होते थे, इसलिये इन्हे वुड्स कहा जाता था। आजकल ये धातु के बनते है, परंतु वुडस नाम ही चलन में है हालाँकि इनके नाम में गॉल्फ़ के नंबर १ खिलाड़ी 'टाईगर वुड्स' का कोई योगदान नहीं है। :)
आयर्न (iron): यह नंबर 2 से नंबर 9 तक होते हैं। इनके अलावा इन्हीं में wedges (वेजेस) भी होते है pitching wedge, lob wedge और sand wedge.
पटर (putter): यह एकमात्र क्लब होता है जो कि बिना किसी कोण का होता है। इसका उपयोग सिर्फ़ green में ही किया जा सकता है, बॉल को होल में डालने के लिये।
इनके अलावा आजकल drivers भी काफ़ी चलन में हैं। यह सबसे लंबे होते हैं, और इनका हेड भी काफ़ी बड़ा होता है। लंबे टी शॉट्स खेलने के लिये इनका इस्तेमाल होता है।
इस तरह से देखें तो एक गॉल्फ़र के किट में एक putter, कुछ irons, wedges, woods और एक driver होते हैं।
देखें चित्र: Driver और Woods के कोण और प्रकार:
देखें चित्र: Putter, Irons और Wedges के कोण और प्रकार:
इन मानक (standard) क्लब्स के अलावा आजकल नई तकनीक से बने हुये hybrid क्लब्स भी आ रहे हैं। जो कि iron+wood को मिलाकर बनते हैं।
Wedges: जब बॉल green के काफ़ी पास आ जाती है तो pitching wedge (PW) या lob wedge (LW) का इस्तेमाल किया जाता है। जबकि जब बॉल किसी sand bunker में चली जाती है तो sand wedge (SW) का इस्तेमाल किया जाता है।
वैसे तो गॉल्फ़ में इस बात का कोई नियम नहीं है कि कौन-सा शॉट कौन से क्लब से खेला जायेगा, और खिलाडी अपना शॉट खेलने के लिये अपनी किट से कोई भी क्लब चुनने के लिये स्वतंत्र होता है।
किस तरह के क्लब से कितनी दूरी का शॉट लगेगा इसका कोई मानक नहीं है। यह हर खिलाड़ी के तरीके पर निर्धारित होता है कि वह कितनी दूरी और कितनी सटीकता से शॉट मार सकता है। इसलिये खिलाडी अपने हिसाब से अपने किट में क्लब्स रखता है।
हाँ, जहाँ तक नियम की बात है, आधिकारिक रुप से एक टुर्नामेंट में एक खिलाड़ी के किट में अधिकतम १४ क्लब्स ही हो सकते हैं।
आज के लिये इतना ही।
चित्र साभार: www.visualdictionaryonline.com
जिस तरह क्रिकेट में बैट से, टेनिस में रेकेट से बॉल को हिट किया (मारा) जाता है, उसी प्रकार गॉल्फ़ में जिस स्टिक से बॉल को हिट किया जाता है उसे साधारणत: 'क्लब' कहा जाता है। जहाँ बाकी खेलों में एक ही प्रकार के बैट, रेकेट इत्यादि होते हैं, वहीं गॉल्फ़ में कई प्रकार के 'क्लब्स' होते हैं जिनकी सहायता से यह खेल खेला जाता है। यह क्लब्स रखने के लिए एक बैग होता है, जिसे 'गॉल्फ़ किट' या 'गोल्फ़ बैग' कहा जाता है। गॉल्फ़ खेलते समय यह किट खिलाड़ी खुद या उनके सहायक उठाकर चलते हैं। इन सहायकों को 'कैडी' कहा जाता है। कैडी किट उठाकर चलने के अलावा भी काफ़ी काम का होता है। उसके बारे में बाद में जानेंगे। पहले यह जान लें कि गॉल्फ़ में कई प्रकार के क्लब्स क्यों होते हैं और उनकी क्या भूमिका होती है।
जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूँ कि गॉल्फ़ का मैदान काफ़ी विस्तृत होता है, और खिलाड़ी को उसकी बॉल एक जगह से शुरु करके एक होल तक पहुँचानी होती है। तो हर बार खिलाड़ी के लिये एक नई चुनौती होती है, क्योंकि उसका हर शॉट किसी अलग जगह ही जा कर गिरेगा। एक उदाहरण से समझते हैं। एक होल है ४५० यार्ड्स का। एक खिलाड़ी टी से शुरुआत करता है। उसने बॉल हिट की, उसकी बॉल होल की दिशा में कहीं भी गिर सकती है। मान लेते हैं कि टी से १८० यार्ड्स की दूरी पर गिरी। अब खिलाड़ी को उसका अगला शॉट इस तरह से खेलना पडेगा कि बॉल होल से और नजदीक पहुँचे। मगर अब यहाँ से होल की दूरी है २७० यार्ड्स। इसी प्रकार उसका तीसरा शॉट होल के और नजदीक होगा। कुल मिला कर यह कहा जाय कि एक गॉल्फ़र एक ही शॉट को दुबारा नहीं खेलता तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। इसलिये एक ही 'क्लब' से अलग अलग दूरी के शॉट्स मारना, असंभव नहीं तो, आसान भी नहीं है। इसलिये, एक गॉल्फ़ किट में अलग अलग दूरी के शॉट्स मारने के लिये अलग अलग क्लब्स होते हैं।
एक क्लब के तीन हिस्से होते हैं:
ग्रिप (grip): जहाँ से क्लब को पकड़ा जाता है।
हेड (head): क्लब का वह सिरा जिससे बॉल को हिट किया जाता है।
शॉफ़्ट (shaft): ग्रिप और हेड को जोड़ने वाली लंबी छड़।
हर क्लब, दूसरे क्लब से अलग होता है, यानी कि शाफ़्ट की लंबाई और शाफ़्ट-हेड के कोण (angle) हर क्लब में अलग होते हैं। एक क्लब को उसकी श्रेणी और उसके नंबर से पहचाना जाता है। जैसे 3 wood, 4 wood, 5 wood या 2-iron, 3 iron ...9 iron इत्यादि। एक श्रेणी का क्लब उसी श्रेणी के कम नंबर वाले क्लब से लंबाई (shaft) में कम होगा पर कोण (shaft-head angle) ज्यादा होगा।
Shaft-Head Angle (शाफ़्ट-हेड कोण): यह बॉल की उँचाई और दूरी तय करता है। जितना ज्यादा कोण उतनी ज्यादा उँचाई परंतु कम दूरी, और कम कोण याने ज्यादा दूरी परंतु कम उँचाई।
नीचे दिया गया चित्र ३ मुख्य श्रेणियों को दर्शा रहा है।
वुड (wood): इन्हे 'फ़ेअरवे वुड्स' भी कहा जाता है। इनके द्वारा बॉल सर्वाधीक दूरी तक हिट की जा सकती है। यह बाकी क्लब्स से लंबे होते हैं। साधारणत: इनमें ३, ४, और ५ नंबर के वुड्स होते हैं। पहले यह लकड़ी के ही होते थे, इसलिये इन्हे वुड्स कहा जाता था। आजकल ये धातु के बनते है, परंतु वुडस नाम ही चलन में है हालाँकि इनके नाम में गॉल्फ़ के नंबर १ खिलाड़ी 'टाईगर वुड्स' का कोई योगदान नहीं है। :)
आयर्न (iron): यह नंबर 2 से नंबर 9 तक होते हैं। इनके अलावा इन्हीं में wedges (वेजेस) भी होते है pitching wedge, lob wedge और sand wedge.
पटर (putter): यह एकमात्र क्लब होता है जो कि बिना किसी कोण का होता है। इसका उपयोग सिर्फ़ green में ही किया जा सकता है, बॉल को होल में डालने के लिये।
इनके अलावा आजकल drivers भी काफ़ी चलन में हैं। यह सबसे लंबे होते हैं, और इनका हेड भी काफ़ी बड़ा होता है। लंबे टी शॉट्स खेलने के लिये इनका इस्तेमाल होता है।
इस तरह से देखें तो एक गॉल्फ़र के किट में एक putter, कुछ irons, wedges, woods और एक driver होते हैं।
देखें चित्र: Driver और Woods के कोण और प्रकार:
देखें चित्र: Putter, Irons और Wedges के कोण और प्रकार:
इन मानक (standard) क्लब्स के अलावा आजकल नई तकनीक से बने हुये hybrid क्लब्स भी आ रहे हैं। जो कि iron+wood को मिलाकर बनते हैं।
Wedges: जब बॉल green के काफ़ी पास आ जाती है तो pitching wedge (PW) या lob wedge (LW) का इस्तेमाल किया जाता है। जबकि जब बॉल किसी sand bunker में चली जाती है तो sand wedge (SW) का इस्तेमाल किया जाता है।
वैसे तो गॉल्फ़ में इस बात का कोई नियम नहीं है कि कौन-सा शॉट कौन से क्लब से खेला जायेगा, और खिलाडी अपना शॉट खेलने के लिये अपनी किट से कोई भी क्लब चुनने के लिये स्वतंत्र होता है।
किस तरह के क्लब से कितनी दूरी का शॉट लगेगा इसका कोई मानक नहीं है। यह हर खिलाड़ी के तरीके पर निर्धारित होता है कि वह कितनी दूरी और कितनी सटीकता से शॉट मार सकता है। इसलिये खिलाडी अपने हिसाब से अपने किट में क्लब्स रखता है।
हाँ, जहाँ तक नियम की बात है, आधिकारिक रुप से एक टुर्नामेंट में एक खिलाड़ी के किट में अधिकतम १४ क्लब्स ही हो सकते हैं।
आज के लिये इतना ही।
चित्र साभार: www.visualdictionaryonline.com
Monday, August 17, 2009
कहाँ है हमारा स्वाभिमान?
हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति को हमारे ही देश में एक विदेशी एयरलाईंस के कर्मचारी द्वारा हवाईअड्डे पर तलाशी के नाम पर रोका जाता है। और इस गंभीर बात की अखबारों में तक खबर नहीं बनती।
जबकि हमारे एक "अभिनेता" को एक दूसरे देश में उसी देश के अधिकारियों द्वारा इम्मीग्रेशन के लिये रोका जाता है, और अपने देश का मीडिया सुबह शाम उसी खबर को बढा-चढा कर परोस रहा है।
इसे विडंबना कहें? या यही है हमारा (सोया हुआ) स्वाभिमान?
Sunday, August 02, 2009
Monday, July 20, 2009
आईये जाने गॉल्फ़ को-२
पिछली कड़ी में आपने गॉल्फ़ के खेल और मैदान के बारे में जाना। इस बार हम इसमें इस्तेमाल होने वाले साधनों पर थोड़ी नज़र डालते हैं।
गॉल्फ़ खेलने के लिये एक अदद मैदान के अलावा और बहुत कुछ चाहिये होता है, इनमें जो सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है वह है - गेंद।
काफ़ी सालों (पढें शतकों) पहले यह चमड़े की बनाई जाती थी, और इसमें एक पक्षी के पंख भरे जाते थे। फ़िर वहाँ से सफ़र बढाते हुये, यह लकड़ी और रबर, स्पंज से होते होते आज की आधुनिक बॉल तक पहुँची है। अब तो यह विभिन्न प्रकार के सिन्थेटीक के मिश्रण से बनाई जाती है।
आजकल यह दो, तीन या चार परतों में बनाई जाती है। इन्हें क्रमश: two-piece, three-piece और four-piece बॉल कहा जाता है।
सामान्यत: एक कड़क खोल, जिसमें तरल या कोई ठोस पदार्थ भरा होता है, को रबर के डोरियों से कस कर लपेटा जाता है और फ़िर अंत में इसपर एक (सिंथेटिक) कवर चढा दिया गया है, इस प्रकार की गेंद इस्तेमाल में लाई जाती है।
गॉल्फ़ के नियमों के मुताबिक इस गेंद का वजन अधिकतम ४५.९३ ग्राम होता है, और इसका व्यास कम से कम ४२.६७ मिमी होता है। यह टेबल टेनिस की बॉल से थोड़ी बड़ी होती है मगर ठोस होती है। इसकी जो खासियत है वह है इसपर पडे हुए छोटे-छोटे छेद, जिन्हें डिम्पल कहा जाता है। (देखें चित्र)।
गॉल्फ़ की गेंद पर जो छिद्र से बने होते है वह वैज्ञानिक कारणो से होते हैं और इन्हीं की वजह से गेंद काफ़ी ज्यादा दूरी तय कर पाती है - करीब २५० से ३५० मीटर तक।
इंटरनेट के एक स्त्रोत की मानें तो किसी खिलाड़ी द्वारा मारे गए सबसे लंबे शॉट का रिकार्ड ४५८ यार्ड्स (४१८.७८ मी) का है, जो कि अमेरिका के जैक हैम के नाम है।
संयोग की बात है कि यह रिकार्ड सोलह साल पहले, आज ही के दिन यानि २० जुलाई १९९३ ही बना था।
चित्र में जो बॉल की नीचे एक लम्बी सी वस्तु दिखाई दे रही है (जिसपर बॉल रखी हुई है) उसे Tee/टी कहते हैं।
ध्यान दें कि जिस जगह से खेल शुरु करते हैं उसे क्षेत्र को भी tee कहते हैं और पहला शॉट मारने के लिये बॉल जिस चीज पर रखी जाती है उसे भी tee ही कहते हैं। और शायद इसीलिये हर होल के पहले शॉट को tee-shot कहा जाता है।
यह tee लकड़ी अथवा प्लास्टिक की होती है, और इसका उपयोग सिर्फ़ किसी "होल" को शुरु करने के वक्त पहले शॉट के लिये ही किया जा सकता है।
इस tee को जमीन में गाड़ दिया जाता है और इसपर बॉल रखी जाती है। इस कारण बॉल जमीन से थोड़ी उपर हो जाती है तथा लंबा शॉट मारने के लिये आसानी हो जाती है।
आगे के पोस्ट में हम गोल्फ़ क्लब (जिससे बॉल को hit किया जाता है) के बारे में जानेंगे।
गॉल्फ़ खेलने के लिये एक अदद मैदान के अलावा और बहुत कुछ चाहिये होता है, इनमें जो सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है वह है - गेंद।
काफ़ी सालों (पढें शतकों) पहले यह चमड़े की बनाई जाती थी, और इसमें एक पक्षी के पंख भरे जाते थे। फ़िर वहाँ से सफ़र बढाते हुये, यह लकड़ी और रबर, स्पंज से होते होते आज की आधुनिक बॉल तक पहुँची है। अब तो यह विभिन्न प्रकार के सिन्थेटीक के मिश्रण से बनाई जाती है।
आजकल यह दो, तीन या चार परतों में बनाई जाती है। इन्हें क्रमश: two-piece, three-piece और four-piece बॉल कहा जाता है।
सामान्यत: एक कड़क खोल, जिसमें तरल या कोई ठोस पदार्थ भरा होता है, को रबर के डोरियों से कस कर लपेटा जाता है और फ़िर अंत में इसपर एक (सिंथेटिक) कवर चढा दिया गया है, इस प्रकार की गेंद इस्तेमाल में लाई जाती है।
गॉल्फ़ के नियमों के मुताबिक इस गेंद का वजन अधिकतम ४५.९३ ग्राम होता है, और इसका व्यास कम से कम ४२.६७ मिमी होता है। यह टेबल टेनिस की बॉल से थोड़ी बड़ी होती है मगर ठोस होती है। इसकी जो खासियत है वह है इसपर पडे हुए छोटे-छोटे छेद, जिन्हें डिम्पल कहा जाता है। (देखें चित्र)।
गॉल्फ़ की गेंद पर जो छिद्र से बने होते है वह वैज्ञानिक कारणो से होते हैं और इन्हीं की वजह से गेंद काफ़ी ज्यादा दूरी तय कर पाती है - करीब २५० से ३५० मीटर तक।
इंटरनेट के एक स्त्रोत की मानें तो किसी खिलाड़ी द्वारा मारे गए सबसे लंबे शॉट का रिकार्ड ४५८ यार्ड्स (४१८.७८ मी) का है, जो कि अमेरिका के जैक हैम के नाम है।
संयोग की बात है कि यह रिकार्ड सोलह साल पहले, आज ही के दिन यानि २० जुलाई १९९३ ही बना था।
चित्र: गॉल्फ़ बॉल
चित्र साभार: www.visualdictionaryonline.com
चित्र में जो बॉल की नीचे एक लम्बी सी वस्तु दिखाई दे रही है (जिसपर बॉल रखी हुई है) उसे Tee/टी कहते हैं।
ध्यान दें कि जिस जगह से खेल शुरु करते हैं उसे क्षेत्र को भी tee कहते हैं और पहला शॉट मारने के लिये बॉल जिस चीज पर रखी जाती है उसे भी tee ही कहते हैं। और शायद इसीलिये हर होल के पहले शॉट को tee-shot कहा जाता है।
यह tee लकड़ी अथवा प्लास्टिक की होती है, और इसका उपयोग सिर्फ़ किसी "होल" को शुरु करने के वक्त पहले शॉट के लिये ही किया जा सकता है।
इस tee को जमीन में गाड़ दिया जाता है और इसपर बॉल रखी जाती है। इस कारण बॉल जमीन से थोड़ी उपर हो जाती है तथा लंबा शॉट मारने के लिये आसानी हो जाती है।
आगे के पोस्ट में हम गोल्फ़ क्लब (जिससे बॉल को hit किया जाता है) के बारे में जानेंगे।
Thursday, July 09, 2009
आईये जाने गॉल्फ़ को-१
गॉल्फ़ - हॉकी जैसी स्टिक से एक बाल को मारते चलो और मैदान में एक छेद में डाल दो। बस। बुढ्ढों का खेल है जो फ़िट रहने के लिये खेलते हैं। अमीर लोगों के चोंचले हैं..और ना क्या क्या।
ज्यादातर लोगों की गॉल्फ़ के बारे में यही सोच रहती होगी। देखने में तो काफ़ी सरल लगता है। मगर यकीन मानिये इतना भी सरल नहीं है। अभी हम इसके उपर जो टैग (अमीरों का खेल, बुढ्ढों का खेल इत्यादि) चिपका है उसे दरकिनार करते हुये समझते हैं कि आखिरकार यह खेल है क्या।
इस खेल का इतिहास वगैरह जानने के लिये तो कृपया गुगल देव की शरण में ही जायें। यहाँ हम सिर्फ़ इस खेल को सीधे साधे शब्दों में जानेंगे।
गॉल्फ़, एक बहुत बड़े परीसर में खेला जाता है। यह एक ऐसा खेल है जिसमें इसके परिसर का कोई मानक माप नहीं होता। इस परीसर को "कोर्स" कहा जाता है। एक गॉल्फ़ कोर्स को वहाँ मौजुद "होल्स" (कप्स/छेदों) की संख्या से मापा जाता है। ज्यादातर कोर्स नौ (९) या अठारह (१८) होल्स के होते हैं। इसका मतलब एक खिलाड़ी को उस गॉल्फ़ कोर्स में नौ/अठारह अलग अलग क्षेत्र मिलेंगे खेलने के लिए। जैसे किसी रेस में एक start और finish पाईंट होता है, वैसे ही एक "होल/कप" को खेलने के लिये भी एक start और एक finish पाईंट होते हैं। जो start पाईंट होता है उसे टी/Tee कहते हैं। और finish होल/कप पर होता है। इसका मतलब अगर कोई गॉल्फ़ कोर्स १८ होल्स का है तो वहाँ (कम से कम) अठारह Tee और ठीक अठारह Holes होंगे।
कम से कम इसलिये कहा है कि अठारह से अधिक भी tee हो सकती है। याने एक ही hole के लिये अलग अलग starting points भी हो सकते हैं, जो कि अलग अलग श्रेणी के खिलाडियों के लिये हो सकते हैं। श्रेणियाँ जैसे कि महिला खिलाड़ी, सीनियर (वेटरन) खिलाड़ी और प्रोफ़ेश्नल खिलाडी। बिलकुल मेराथन दौड़ की तरह। जहाँ बच्चों, वरिष्ठ, महिलाओं और पुरुषों के लिये अलग अलग start points होते हैं, पर finish point एक ही होता है।
गॉल्फ़ का एक खेल (ज्यादातर) १८ होल्स का ही होता है। जिसमें खिलाडी पहले tee से शुरु करते हैं, कम से कम शाट्स मार कर पहले होल में बाल डालने का प्रयास करते हैं, फ़िर दूसरे tee से शुरु कर के दूसरे होल में बाल पहुँचाते है, और इस तरह अठारह होल्स पुरे करते हैं। एक खेल के अंत में जिस खिलाड़ी ने सबसे कम शाट्स मारे होते हैं वह विजेता घोषित किया जाता है।
जैसे क्रिकेट में inning होती है वैसे ही गॉल्फ़ में "होल" होते हैं। फ़र्क यह होता है कि एक खिलाड़ी को एक-दो नहीं पुरे १८ होल्स खेलने होते हैं। और हर होल अपने आप में एक बड़ा सा मैदान होता है। हर होल में:
- tee और hole दोनो के बीच की दूरी अलग होती है
- tee से hole तक का रास्ता अलग होता है
- tee से hole के रास्ते में अड़चने अलग होती हैं
किसी का भी कोई मानक नहीं होता, यह उस कोर्स की रचना करने वाले पर या/और वहाँ मौजुद प्राकृतिक बाधाओं (वृक्ष, झाडियां इत्यादि) पर निर्भर होता है। और यही सब मिलकर गॉल्फ़ को एक कठीन खेल की श्रेणी में रखते हैं।
Tee का क्षेत्रफ़ल काफ़ी छोटा होता है, बिल्कुल समतल, और एक समान बारीक कटी हुई घास होती है। यहाँ दो मार्कर/चिन्ह होते हैं जिसके बीच में गेंद रख कर खेल आरंभ करना होता है। इस जगह के बाद गेंद को हाथ से छुना नियम विरुद्ध होता है।
Hole, यानि कि जहाँ गेंद डालनी होती है, के आस पास के क्षेत्र को ग्रीन/green कहते हैं। इस जगह की घास बिल्कुल महीन कटी होती है। बिलकुल एक समान। यह क्षेत्र समतल हो जरुरी नहीं। अधिकतर तो यह समतल नहीं होता कहीं एक-दो या किसी भी तरफ़ ढलान सा लिये हुये होता है।
Tee और hole के बीच जो सामान्य क्षेत्र होता है उसे फ़ेअरवे/fairway कहते हैं। यहाँ घास एक समान ही कटी होती है पर green से बड़ी होती है, और fairway में कुछ अड़चने हो सकती है। Fairway के आसपास उसकी सीमा दर्शाने के लिये झाड़ियाँ या पेड़ लगे हो सकते है। परंतु देखा जाये तो एक होल की कोई तय सीमा नहीं होती। मगर सही खेलने के लिये गेंद को tee से fairway होते हुये green और अंत में hole तक ले जाना होता है।
Fairway से बाहर के क्षेत्र को रफ़/rough कहते हैं।
अड़चनें: खेल को और रोचक और कठीन बनाने के लिये green के आस पास, और fairway में अड़चने होती/हो सकती हैं। यह झाड़ी, पेड़ के अलावा रेत से भरा गढ्ढा (बंकर) भी हो सकता है और पानी से भरी झील या पोखर भी हो सकता है। एक खिलाड़ी को इन सबसे बचते हुये अपनी गेंद hole तक पहुँचानी होती है।
अधिकतर गॉल्फ़ कोर्सेस में एक hole के नजदीक ही दूसरे होल का tee होता है ताकि दूसरे होल का खेल शुरु करने के लिये ज्यादा चलना ना पड़े। वैसे पुरे परीसर में एक पतला सा पक्का रास्ता भी बना होता है जहाँ बैटरी से चलने वाली कार, जिसे golf cart कहते है, चलती है। पर यह जरुरी नहीं कि हर गॉल्फ़ कोर्स में यह हो ही।
वैसे तो इस खेल के क्षेत्र/परीसर का कोई मानक माप या रचना नहीं होती है, मगर एक चीज होती है जो मानक होती है।
वह होता है हर hole में गेंद पहुँचाने के लिये लगने वाले शाट्स/स्ट्रोक की संख्या। हर hole को एक शब्द से मापा जाता है - Par/पार। एक tee से उसके होल में गेंद पहुँचाने में लगने वाले मानक शाट्स की संख्या को पार/par कहते हैं। यह निश्चित किया जाता है tee/green के बीच की दूरी को, उसकी अड़चनों को ध्यान में रखकर। यानि की अगर किसी एक होल का पार ४ है तो इसका मतलब एक औसत खिलाड़ी को tee से शुरु करके सिर्फ़ ४ शाट्स में गेंद को hole में डाल देना चाहिये। और इसी तरह से इस खेल में स्कोर रखा जाता है। 'पार' की तुलना में खिलाड़ी का स्कोर मापा जाता है। किसी होल का 'पार' कुछ भी हो सकता है - मगर एक बार तय होने के बाद सामान्यत: 'पार' बदलता नहीं है जब तक की कोर्स में ही कुछ बदलाव ना किया जाय।
इसे इस तरह से समझिये, एक गॉल्फ़ कोर्स में १८ होल्स हैं। हर hole के पार को जोड़ लें। फ़र्ज करें कि वह संख्या ७० आई, तो यह उस कोर्स का मानक हो गया। अब खिलाडियों को कम से कम ७० शाट्स में सारे holes पुरे करने चाहिये। स्कोर रखा जाता है पार से ज्यादा (+) या कम (-) । याने कि अगर किसी का अंतिम स्कोर +५ है तो इसका मतलब उसने ७५ शाट्स लगाये। अगर स्कोर -१० है तो उस खिलाड़ी ने ६० शाट्स में ही सारे holes पुरे कर लिये। जिसका स्कोर सबसे कम होता है वह खिलाड़ी जीतता है।
यह तो हुआ गॉल्फ़ कोर्स का विवरण। आगे ड्राईविंग रेंज और इसमें लगने वाली वस्तुओं (गेंद, स्टिक इत्यादि) की जानकारी लेंगे।
अगर ये विवरण पढकर आपको एक गॉल्फ़ कोर्स देखने का मन हो आया है तो इस लिंक (http://www.bantrygolf.com/courseTour/index.cfm) को देखें। मैने यह कड़ी इंटरनेट से ढुंढी है, इसमे वह सब है जो मैं बताना चाहता था।
१. किसी जानकार को कोई त्रुटी नजर आई हो तो बतायें। दुरुस्त कर ली जायेगी। हम तो अभी अमेच्योर के "अ" भी नहीं हैं।
ज्यादातर लोगों की गॉल्फ़ के बारे में यही सोच रहती होगी। देखने में तो काफ़ी सरल लगता है। मगर यकीन मानिये इतना भी सरल नहीं है। अभी हम इसके उपर जो टैग (अमीरों का खेल, बुढ्ढों का खेल इत्यादि) चिपका है उसे दरकिनार करते हुये समझते हैं कि आखिरकार यह खेल है क्या।
इस खेल का इतिहास वगैरह जानने के लिये तो कृपया गुगल देव की शरण में ही जायें। यहाँ हम सिर्फ़ इस खेल को सीधे साधे शब्दों में जानेंगे।
गॉल्फ़, एक बहुत बड़े परीसर में खेला जाता है। यह एक ऐसा खेल है जिसमें इसके परिसर का कोई मानक माप नहीं होता। इस परीसर को "कोर्स" कहा जाता है। एक गॉल्फ़ कोर्स को वहाँ मौजुद "होल्स" (कप्स/छेदों) की संख्या से मापा जाता है। ज्यादातर कोर्स नौ (९) या अठारह (१८) होल्स के होते हैं। इसका मतलब एक खिलाड़ी को उस गॉल्फ़ कोर्स में नौ/अठारह अलग अलग क्षेत्र मिलेंगे खेलने के लिए। जैसे किसी रेस में एक start और finish पाईंट होता है, वैसे ही एक "होल/कप" को खेलने के लिये भी एक start और एक finish पाईंट होते हैं। जो start पाईंट होता है उसे टी/Tee कहते हैं। और finish होल/कप पर होता है। इसका मतलब अगर कोई गॉल्फ़ कोर्स १८ होल्स का है तो वहाँ (कम से कम) अठारह Tee और ठीक अठारह Holes होंगे।
कम से कम इसलिये कहा है कि अठारह से अधिक भी tee हो सकती है। याने एक ही hole के लिये अलग अलग starting points भी हो सकते हैं, जो कि अलग अलग श्रेणी के खिलाडियों के लिये हो सकते हैं। श्रेणियाँ जैसे कि महिला खिलाड़ी, सीनियर (वेटरन) खिलाड़ी और प्रोफ़ेश्नल खिलाडी। बिलकुल मेराथन दौड़ की तरह। जहाँ बच्चों, वरिष्ठ, महिलाओं और पुरुषों के लिये अलग अलग start points होते हैं, पर finish point एक ही होता है।
गॉल्फ़ का एक खेल (ज्यादातर) १८ होल्स का ही होता है। जिसमें खिलाडी पहले tee से शुरु करते हैं, कम से कम शाट्स मार कर पहले होल में बाल डालने का प्रयास करते हैं, फ़िर दूसरे tee से शुरु कर के दूसरे होल में बाल पहुँचाते है, और इस तरह अठारह होल्स पुरे करते हैं। एक खेल के अंत में जिस खिलाड़ी ने सबसे कम शाट्स मारे होते हैं वह विजेता घोषित किया जाता है।
जैसे क्रिकेट में inning होती है वैसे ही गॉल्फ़ में "होल" होते हैं। फ़र्क यह होता है कि एक खिलाड़ी को एक-दो नहीं पुरे १८ होल्स खेलने होते हैं। और हर होल अपने आप में एक बड़ा सा मैदान होता है। हर होल में:
- tee और hole दोनो के बीच की दूरी अलग होती है
- tee से hole तक का रास्ता अलग होता है
- tee से hole के रास्ते में अड़चने अलग होती हैं
किसी का भी कोई मानक नहीं होता, यह उस कोर्स की रचना करने वाले पर या/और वहाँ मौजुद प्राकृतिक बाधाओं (वृक्ष, झाडियां इत्यादि) पर निर्भर होता है। और यही सब मिलकर गॉल्फ़ को एक कठीन खेल की श्रेणी में रखते हैं।
Tee का क्षेत्रफ़ल काफ़ी छोटा होता है, बिल्कुल समतल, और एक समान बारीक कटी हुई घास होती है। यहाँ दो मार्कर/चिन्ह होते हैं जिसके बीच में गेंद रख कर खेल आरंभ करना होता है। इस जगह के बाद गेंद को हाथ से छुना नियम विरुद्ध होता है।
Hole, यानि कि जहाँ गेंद डालनी होती है, के आस पास के क्षेत्र को ग्रीन/green कहते हैं। इस जगह की घास बिल्कुल महीन कटी होती है। बिलकुल एक समान। यह क्षेत्र समतल हो जरुरी नहीं। अधिकतर तो यह समतल नहीं होता कहीं एक-दो या किसी भी तरफ़ ढलान सा लिये हुये होता है।
Tee और hole के बीच जो सामान्य क्षेत्र होता है उसे फ़ेअरवे/fairway कहते हैं। यहाँ घास एक समान ही कटी होती है पर green से बड़ी होती है, और fairway में कुछ अड़चने हो सकती है। Fairway के आसपास उसकी सीमा दर्शाने के लिये झाड़ियाँ या पेड़ लगे हो सकते है। परंतु देखा जाये तो एक होल की कोई तय सीमा नहीं होती। मगर सही खेलने के लिये गेंद को tee से fairway होते हुये green और अंत में hole तक ले जाना होता है।
Fairway से बाहर के क्षेत्र को रफ़/rough कहते हैं।
अड़चनें: खेल को और रोचक और कठीन बनाने के लिये green के आस पास, और fairway में अड़चने होती/हो सकती हैं। यह झाड़ी, पेड़ के अलावा रेत से भरा गढ्ढा (बंकर) भी हो सकता है और पानी से भरी झील या पोखर भी हो सकता है। एक खिलाड़ी को इन सबसे बचते हुये अपनी गेंद hole तक पहुँचानी होती है।
अधिकतर गॉल्फ़ कोर्सेस में एक hole के नजदीक ही दूसरे होल का tee होता है ताकि दूसरे होल का खेल शुरु करने के लिये ज्यादा चलना ना पड़े। वैसे पुरे परीसर में एक पतला सा पक्का रास्ता भी बना होता है जहाँ बैटरी से चलने वाली कार, जिसे golf cart कहते है, चलती है। पर यह जरुरी नहीं कि हर गॉल्फ़ कोर्स में यह हो ही।
वैसे तो इस खेल के क्षेत्र/परीसर का कोई मानक माप या रचना नहीं होती है, मगर एक चीज होती है जो मानक होती है।
वह होता है हर hole में गेंद पहुँचाने के लिये लगने वाले शाट्स/स्ट्रोक की संख्या। हर hole को एक शब्द से मापा जाता है - Par/पार। एक tee से उसके होल में गेंद पहुँचाने में लगने वाले मानक शाट्स की संख्या को पार/par कहते हैं। यह निश्चित किया जाता है tee/green के बीच की दूरी को, उसकी अड़चनों को ध्यान में रखकर। यानि की अगर किसी एक होल का पार ४ है तो इसका मतलब एक औसत खिलाड़ी को tee से शुरु करके सिर्फ़ ४ शाट्स में गेंद को hole में डाल देना चाहिये। और इसी तरह से इस खेल में स्कोर रखा जाता है। 'पार' की तुलना में खिलाड़ी का स्कोर मापा जाता है। किसी होल का 'पार' कुछ भी हो सकता है - मगर एक बार तय होने के बाद सामान्यत: 'पार' बदलता नहीं है जब तक की कोर्स में ही कुछ बदलाव ना किया जाय।
इसे इस तरह से समझिये, एक गॉल्फ़ कोर्स में १८ होल्स हैं। हर hole के पार को जोड़ लें। फ़र्ज करें कि वह संख्या ७० आई, तो यह उस कोर्स का मानक हो गया। अब खिलाडियों को कम से कम ७० शाट्स में सारे holes पुरे करने चाहिये। स्कोर रखा जाता है पार से ज्यादा (+) या कम (-) । याने कि अगर किसी का अंतिम स्कोर +५ है तो इसका मतलब उसने ७५ शाट्स लगाये। अगर स्कोर -१० है तो उस खिलाड़ी ने ६० शाट्स में ही सारे holes पुरे कर लिये। जिसका स्कोर सबसे कम होता है वह खिलाड़ी जीतता है।
यह तो हुआ गॉल्फ़ कोर्स का विवरण। आगे ड्राईविंग रेंज और इसमें लगने वाली वस्तुओं (गेंद, स्टिक इत्यादि) की जानकारी लेंगे।
अगर ये विवरण पढकर आपको एक गॉल्फ़ कोर्स देखने का मन हो आया है तो इस लिंक (http://www.bantrygolf.com/courseTour/index.cfm) को देखें। मैने यह कड़ी इंटरनेट से ढुंढी है, इसमे वह सब है जो मैं बताना चाहता था।
१. किसी जानकार को कोई त्रुटी नजर आई हो तो बतायें। दुरुस्त कर ली जायेगी। हम तो अभी अमेच्योर के "अ" भी नहीं हैं।
आगे:
मैं अब कर लुँ क्या?
"डाक'साब, नमस्ते"
नमस्ते, नमस्ते। आईये, बैठिये।
"डाक'साब, लगता है आपने मुझे पहचाना नहीं"
ह्म्म्म...याद तो नहीं आ रहा। आप पहले भी क्लीनिक में आ चुके हैं क्या?
"अरे डाक'साब, मैं पिछले साल आया था ना आपके पास, इलाज के लिये"
अच्छा, क्या हुआ था?
"मुझे हल्का सा बुखार नहीं था? जिसका इलाज आपने किया था"
अच्छा, बिल्कुल भी याद नहीं आ रहा। खैर बताईये, अब कैसे आना हुआ? फ़िर कोई तकलीफ़ है क्या?
"नहीं नहीं डाक'साब, अब तकलीफ़ तो बिलकुल नहीं है।"
फ़िर?
"आपने तब स्नान करने को मना किया था, बस यही पुछना था कि मै अब कर लुँ क्या??"
.........!!!
नमस्ते, नमस्ते। आईये, बैठिये।
"डाक'साब, लगता है आपने मुझे पहचाना नहीं"
ह्म्म्म...याद तो नहीं आ रहा। आप पहले भी क्लीनिक में आ चुके हैं क्या?
"अरे डाक'साब, मैं पिछले साल आया था ना आपके पास, इलाज के लिये"
अच्छा, क्या हुआ था?
"मुझे हल्का सा बुखार नहीं था? जिसका इलाज आपने किया था"
अच्छा, बिल्कुल भी याद नहीं आ रहा। खैर बताईये, अब कैसे आना हुआ? फ़िर कोई तकलीफ़ है क्या?
"नहीं नहीं डाक'साब, अब तकलीफ़ तो बिलकुल नहीं है।"
फ़िर?
"आपने तब स्नान करने को मना किया था, बस यही पुछना था कि मै अब कर लुँ क्या??"
.........!!!
Wednesday, July 08, 2009
लाईफ़ में नया-१
"...मैं आगे आया, मैने देखा, बॉल खसकाई, एंगल सेट किया, और जोर से शॉट मारा। ये क्या, मेरा क्लब बॉल को छुआ तक नहीं। उपर से निकल गया। थोड़ी देर बाद फ़िर ट्राय किया, अबकी बार बॉल हिली और कुछ गज तक गई। तीसरी बार और जोर लगाया, धत्त तेरे कि, इस बार बॉल तो कुछ खास बढी नहीं, हाँ, घास और मिट्टी जरुर काफ़ी दूर तक उड़ गई।"
जी हाँ, दोस्तों, आप सही समझे, मैं गॉल्फ़ सीख रहा हूँ।
मेरी बहुत समय से इच्छा थी, और मौका ही ढुँढ रहा था। मौका भी मिल गया। एक नया गॉल्फ़ कोर्स शुरु हुआ है जहाँ गॉल्फ़ एकेडमी भी है। तो वहाँ पर एक ६ दिन का आरंभिक कोर्स शुरु किया गया है। ऑस्ट्रेलिया से एक प्रोफ़ेश्नल गोल्फ़र आये हैं सिखाने के लिये, नाम है क्लाईव्ह बार्डस्ले। सिखाने के लिये उनके सहायक हैं भारत के नौजवान गॉल्फ़र अनिरबन लाहिरी। मन तो था ही, फ़िर सीनियर प्रोफ़ेश्नल खिलाड़ी (खिलाडियों) से सीखने का मौका। और कहते हैं ना, अच्छे मौके बार बार नहीं मिलते।
बस एक दिक्कत थी, मैडम जी की इच्छा थी कि जब "वो लोग" पुणे आ जायें उसके बाद ही मैं कुछ नया शुरु करूँ। तो कुछ ऐसा मामला जमा कि कोर्स शुरु होने के एक दिन पहले ही मैडम और प्रांजय पुणे पहुँच रहे थे। दूसरी बात थी कि कोर्स के लिये मुझे रोज २ से ढाई घंटे देने पड़ते। तो लग रहा था कि मैडम मना कर देंगी। मगर नहीं, उन्होने सुना, समझा और पुरा सहयोग दिया। और बोलीं कि जाओ अच्छे से सीखना (ताकि बाद में मैं उन्हे सीखा सकूँ)।
अब तीसरी दिक्कत - कोर्स का समय सुबह ७:३० से ९:३०। कोर्स, घर से १६ किमी दूर। ऑफ़ीस का टाईम ९:३०, पर चलो वह तो मैनेज हो जाता है। इतनी फ़्लेक्सिबिलिटी तो है भई हमारे ऑफ़ीस में।
सो ले ही लिया, कोर्स में दाखिला।
तो होता यह है कि सुबह १६ किमी जाना, फ़िर १६ किमी आना और फ़िर ६ किमी पर ऑफ़ीस। उफ़्फ़...!! अपनी गड़्डी की, बोले तो, वाट लग रेली है। गड्डी बोले तो, कार-शार नहीं जी, अपनी दुचाकी, बाईक। तो बाईक की अब कहीं जाके परीक्षा हो रही है। (ये मुये पेट्रोल के दाम भी अभी ही बढने थे)।
इतना तो अच्छा है कि १० किमी हाईवे पर है। सो वह तो ५ से १० मि. में पार हो जाते हैं। बचे ६ किमी हाईवे से अंदर हैं और बुरी बात कि रोड भी पुरी तरह से पक्की नहीं बनी हुई है। बेचारी बाईक, पहले तो ८०-९० फ़िर एकदम से २०-२५।
मेरे साथ उस कोर्स में सीखने वाले, एक तो महाराष्ट्र पुलिस के पीली बत्ती वाले सी.आई.डी. अफ़सर हैं, एक साहब रीयल स्टेट बिल्डर हैं। अपने लड़के (१२-१५ वर्ष का होगा) के साथ सीखते हैं। और बाकि लोग भी किसी ना किसी बड़े व्यवसायी के पुत्र/पुत्री/पत्नी।
यानी कि नौकरी करने वाला और बाईक पर आने वाला - सिर्फ़ अपुनईच्च है। वो क्या है ना कि अपुन तो आलरेडी हज़ारों में एक हूँ ना।
खैर हमे क्या? अपन तो सीखने आये हैं, पुरा पैसा वसूल करते हैं, मन लगा कर सीखते हैं।
अब क्या क्या सीखा कैसे कैसे सीखा यह भी सब बताउंगा।
अपनी अगली कुछ पोस्ट्स में मैं गॉल्फ़ की बातें करूंगा और यह भी बताउंगा कि कोर्स कैसा चल रहा है।
क्या आप कभी खेले हैं गॉल्फ़? अपना अनुभव जरुर बताईयेगा।
वैसे लाईफ़ में इससे भी नया (और अच्छा) बहुत कुछ हुआ है और चल ही रहा है।
वो अंग्रेजी में कहते हैं ना? रीड बिटविन द लाइन्स। तो अगर आपने उपर की लाईन्स अच्छे से पढी होंगी तो समझ ही जायेंगे। :)
जी हाँ, दोस्तों, आप सही समझे, मैं गॉल्फ़ सीख रहा हूँ।
मेरी बहुत समय से इच्छा थी, और मौका ही ढुँढ रहा था। मौका भी मिल गया। एक नया गॉल्फ़ कोर्स शुरु हुआ है जहाँ गॉल्फ़ एकेडमी भी है। तो वहाँ पर एक ६ दिन का आरंभिक कोर्स शुरु किया गया है। ऑस्ट्रेलिया से एक प्रोफ़ेश्नल गोल्फ़र आये हैं सिखाने के लिये, नाम है क्लाईव्ह बार्डस्ले। सिखाने के लिये उनके सहायक हैं भारत के नौजवान गॉल्फ़र अनिरबन लाहिरी। मन तो था ही, फ़िर सीनियर प्रोफ़ेश्नल खिलाड़ी (खिलाडियों) से सीखने का मौका। और कहते हैं ना, अच्छे मौके बार बार नहीं मिलते।
बस एक दिक्कत थी, मैडम जी की इच्छा थी कि जब "वो लोग" पुणे आ जायें उसके बाद ही मैं कुछ नया शुरु करूँ। तो कुछ ऐसा मामला जमा कि कोर्स शुरु होने के एक दिन पहले ही मैडम और प्रांजय पुणे पहुँच रहे थे। दूसरी बात थी कि कोर्स के लिये मुझे रोज २ से ढाई घंटे देने पड़ते। तो लग रहा था कि मैडम मना कर देंगी। मगर नहीं, उन्होने सुना, समझा और पुरा सहयोग दिया। और बोलीं कि जाओ अच्छे से सीखना (ताकि बाद में मैं उन्हे सीखा सकूँ)।
अब तीसरी दिक्कत - कोर्स का समय सुबह ७:३० से ९:३०। कोर्स, घर से १६ किमी दूर। ऑफ़ीस का टाईम ९:३०, पर चलो वह तो मैनेज हो जाता है। इतनी फ़्लेक्सिबिलिटी तो है भई हमारे ऑफ़ीस में।
सो ले ही लिया, कोर्स में दाखिला।
तो होता यह है कि सुबह १६ किमी जाना, फ़िर १६ किमी आना और फ़िर ६ किमी पर ऑफ़ीस। उफ़्फ़...!! अपनी गड़्डी की, बोले तो, वाट लग रेली है। गड्डी बोले तो, कार-शार नहीं जी, अपनी दुचाकी, बाईक। तो बाईक की अब कहीं जाके परीक्षा हो रही है। (ये मुये पेट्रोल के दाम भी अभी ही बढने थे)।
इतना तो अच्छा है कि १० किमी हाईवे पर है। सो वह तो ५ से १० मि. में पार हो जाते हैं। बचे ६ किमी हाईवे से अंदर हैं और बुरी बात कि रोड भी पुरी तरह से पक्की नहीं बनी हुई है। बेचारी बाईक, पहले तो ८०-९० फ़िर एकदम से २०-२५।
मेरे साथ उस कोर्स में सीखने वाले, एक तो महाराष्ट्र पुलिस के पीली बत्ती वाले सी.आई.डी. अफ़सर हैं, एक साहब रीयल स्टेट बिल्डर हैं। अपने लड़के (१२-१५ वर्ष का होगा) के साथ सीखते हैं। और बाकि लोग भी किसी ना किसी बड़े व्यवसायी के पुत्र/पुत्री/पत्नी।
यानी कि नौकरी करने वाला और बाईक पर आने वाला - सिर्फ़ अपुनईच्च है। वो क्या है ना कि अपुन तो आलरेडी हज़ारों में एक हूँ ना।
खैर हमे क्या? अपन तो सीखने आये हैं, पुरा पैसा वसूल करते हैं, मन लगा कर सीखते हैं।
अब क्या क्या सीखा कैसे कैसे सीखा यह भी सब बताउंगा।
अपनी अगली कुछ पोस्ट्स में मैं गॉल्फ़ की बातें करूंगा और यह भी बताउंगा कि कोर्स कैसा चल रहा है।
क्या आप कभी खेले हैं गॉल्फ़? अपना अनुभव जरुर बताईयेगा।
वैसे लाईफ़ में इससे भी नया (और अच्छा) बहुत कुछ हुआ है और चल ही रहा है।
वो अंग्रेजी में कहते हैं ना? रीड बिटविन द लाइन्स। तो अगर आपने उपर की लाईन्स अच्छे से पढी होंगी तो समझ ही जायेंगे। :)
Tuesday, July 07, 2009
क्या आपने कहीं ऐसा होते देखा है? - जवाब
वैसे तो वह कोई पहेली नहीं थी, और ना ही कोई इनाम-शिनाम मिलने वाला था।
पिछली पोस्ट में तो सिर्फ़ इनाम कि घोषणा के बारे में ही लिखा था। :)
इस कहानी की प्रेरणा मुझे अपने देश पर बारंबार आतंकवादी हमले होते हुये, भारत सरकार के रवैये, पाकिस्तान के जवाब, भारत की अमेरिका से शिकायत/मदद की गुहार और उस पर मिलते हुये आश्वासन और निर्देशों को देख कर मिली।
खैर इस विषय पर क्या कहें और कितना कहें?
जो हो रहा है, जैसा चल रहा है उसे देख सुन कर मन थक सा गया है।
चलो, आप लोगों को अब तो उस कहानी के पात्र समझ आ गये ना?
पिछली पोस्ट में तो सिर्फ़ इनाम कि घोषणा के बारे में ही लिखा था। :)
इस कहानी की प्रेरणा मुझे अपने देश पर बारंबार आतंकवादी हमले होते हुये, भारत सरकार के रवैये, पाकिस्तान के जवाब, भारत की अमेरिका से शिकायत/मदद की गुहार और उस पर मिलते हुये आश्वासन और निर्देशों को देख कर मिली।
खैर इस विषय पर क्या कहें और कितना कहें?
जो हो रहा है, जैसा चल रहा है उसे देख सुन कर मन थक सा गया है।
चलो, आप लोगों को अब तो उस कहानी के पात्र समझ आ गये ना?
Thursday, July 02, 2009
क्या आपने कहीं ऐसा होते देखा है?
[उंगली]
...उँ...
[चिमटी]
...ऐ...
[चिमटी]
...ऐ...ऐ...
[चिमटी]
...ओए..अब मत करियो...
[चिमटी]
...अबे...अब करेगा तो देख लेना...
[चिमटी]
...अरे! फ़िर?...अब मत करना...
[चिमटी]
...अब मैं इधर ही देख रहा हूँ, अब कर के दिखा...
[चटाक्]
...अब तो हद हो गई...ये लास्ट वार्निंग है...
[चटाक्][चिमटी]
...अब तो बहुत हो गया...ले मैं इधर तकिया लगा देता हूँ...
[पापा...देखो बडके ने मेरी जगह में तकिया लगा लिया]
पापा: बेटा बड़के, देखो ऐसा नहीं करते, हटाओ तकिया वहाँ से...और सरको वहाँ से...
[चिमटी][चटाक्][चिमटी]
...पापा, देखो छुटका मुझे तंग कर रहा है...इसे बोलो ना कुछ...
पापा: बेटा बड़के, तुम बड़े हो, ऐसे नहीं रोते...
[चिमटी][चटाक्][चिमटी]
...चल अब तक जो किया सो किया, अब आगे मत करना...वर्ना बहुत बुरा होगा...
[चटाक्][चिमटी][चटाक्][चिमटी]
...
... ...
... ... ...
... ... ... ... (ये तो यूँ ही जारी रहेगा)
नोट: पात्र पहचानने वालों को शानदार इनाम दिये जाने की घोषणा की जायेगी।
...उँ...
[चिमटी]
...ऐ...
[चिमटी]
...ऐ...ऐ...
[चिमटी]
...ओए..अब मत करियो...
[चिमटी]
...अबे...अब करेगा तो देख लेना...
[चिमटी]
...अरे! फ़िर?...अब मत करना...
[चिमटी]
...अब मैं इधर ही देख रहा हूँ, अब कर के दिखा...
[चटाक्]
...अब तो हद हो गई...ये लास्ट वार्निंग है...
[चटाक्][चिमटी]
...अब तो बहुत हो गया...ले मैं इधर तकिया लगा देता हूँ...
[पापा...देखो बडके ने मेरी जगह में तकिया लगा लिया]
पापा: बेटा बड़के, देखो ऐसा नहीं करते, हटाओ तकिया वहाँ से...और सरको वहाँ से...
[चिमटी][चटाक्][चिमटी]
...पापा, देखो छुटका मुझे तंग कर रहा है...इसे बोलो ना कुछ...
पापा: बेटा बड़के, तुम बड़े हो, ऐसे नहीं रोते...
[चिमटी][चटाक्][चिमटी]
...चल अब तक जो किया सो किया, अब आगे मत करना...वर्ना बहुत बुरा होगा...
[चटाक्][चिमटी][चटाक्][चिमटी]
...
... ...
... ... ...
... ... ... ... (ये तो यूँ ही जारी रहेगा)
नोट: पात्र पहचानने वालों को शानदार इनाम दिये जाने की घोषणा की जायेगी।
Wednesday, July 01, 2009
स्वयंवर
तो जनाब आखिरकार शुरु हो ही गया, स्वयंवर, वो भी राखी सावंत का।
मैने दोनो ही एपीसोड देखे हैं, और मुझे तो रुचि जाग रही है। अरे यार, राखी में नहीं, उसके स्वयंवर के कार्यक्रम में। आप लोग भी ना, कुछ भी सोचने लगते हो।
टीवी कार्यक्रम है तो, स्क्रिप्ट भी है ही और डायलाग्स, टेक-रीटेक भी होंगे ही, पर बीच में कभी कभी अचानक ही राखी को शब्द ढुँढते हुये, थोड़ा शर्माते हुए देखना अच्छा लग रहा है।
दूसरे ही एपीसोड में ३ लोगों की रवानगी हो गई। जो गए उन्हे राखी और रवि किशन ने राखी के लिये मुनासिब नहीं समझा।
रवि किशन जी आये थे राखी के भाई की हैसियत से अपने होने वाले बहनोई से कुछ सवाल जवाब करने।
कुछ जवाब तो मजेदार थे - एक ने कहा कि शादी के बाद वो राखी के लिये खाना बनाया करेगा, जब यह पुछा गया कि बनाना आता है तो जवाब आया कि सीख लुंगा। एक ने शादी के बारे में बड़ी अपरिपक्व बात की। उसे लगा शादी जैसा कि सिनेमा में होता है उसी तरह से होती होगी।
एक बात जो मैं ढुँढ रहा था और सुनना चाहता था वो किसी ने नहीं कही। जितने आये हैं, सभी ही राखी से बेइंतहा मोहब्बत करने वाले। कोई भी यह नहीं बोला कि - मैं तो शादी करने आया हूँ, शादी के बाद -हौले हौले से हो जायेगा प्यार सजना....!!
कुछ, जो अच्छे से स्थापित हैं, अपने अपने व्यवसाय में या फ़िर मॉडलिंग, एक्टिंग में उनके तो कुछ चांसेस दिखते हैं, परंतु कई ऐसे भी हैं जो अभी तक नौकरी-व्यवसाय में स्थायित्व से काफ़ी दूर हैं। शायद उनका सोचना हो कि अगर राखी से शादी हो गई तो उनका कैरियर भी सँवर जायेगा। मेरे खयाल से ऐसी सोच में कुछ बुरा नहीं है, जब तक कि आप इमानदार और साफ़ दिल के रहें।
यह स्वयंवर अच्छे से निपटे तो अच्छा है, वर्ना लोगों (प्रतियोगियों) को कीचड़ में उतरते देर नहीं लगती।
अभी तक तो प्रतियोगी (?) होने वाले दुल्हे एक दूसरे के लिये शालीन भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, देखते हैं ऐसा कब तक रह पायेगा।
एक दूसरे के लिये अमर्यादित भाषा, निजी बातों को उजागर करना जिस दिन शुरु हो जायेगा, उस दिन राखी क्या करेगी, पता नहीं।
क्या वो फ़िर भी उनमें से जो अंतिम बचेगा उसी के साथ शादी करेगी?
आपको क्या लगता है?
मैने दोनो ही एपीसोड देखे हैं, और मुझे तो रुचि जाग रही है। अरे यार, राखी में नहीं, उसके स्वयंवर के कार्यक्रम में। आप लोग भी ना, कुछ भी सोचने लगते हो।
टीवी कार्यक्रम है तो, स्क्रिप्ट भी है ही और डायलाग्स, टेक-रीटेक भी होंगे ही, पर बीच में कभी कभी अचानक ही राखी को शब्द ढुँढते हुये, थोड़ा शर्माते हुए देखना अच्छा लग रहा है।
दूसरे ही एपीसोड में ३ लोगों की रवानगी हो गई। जो गए उन्हे राखी और रवि किशन ने राखी के लिये मुनासिब नहीं समझा।
रवि किशन जी आये थे राखी के भाई की हैसियत से अपने होने वाले बहनोई से कुछ सवाल जवाब करने।
कुछ जवाब तो मजेदार थे - एक ने कहा कि शादी के बाद वो राखी के लिये खाना बनाया करेगा, जब यह पुछा गया कि बनाना आता है तो जवाब आया कि सीख लुंगा। एक ने शादी के बारे में बड़ी अपरिपक्व बात की। उसे लगा शादी जैसा कि सिनेमा में होता है उसी तरह से होती होगी।
एक बात जो मैं ढुँढ रहा था और सुनना चाहता था वो किसी ने नहीं कही। जितने आये हैं, सभी ही राखी से बेइंतहा मोहब्बत करने वाले। कोई भी यह नहीं बोला कि - मैं तो शादी करने आया हूँ, शादी के बाद -हौले हौले से हो जायेगा प्यार सजना....!!
कुछ, जो अच्छे से स्थापित हैं, अपने अपने व्यवसाय में या फ़िर मॉडलिंग, एक्टिंग में उनके तो कुछ चांसेस दिखते हैं, परंतु कई ऐसे भी हैं जो अभी तक नौकरी-व्यवसाय में स्थायित्व से काफ़ी दूर हैं। शायद उनका सोचना हो कि अगर राखी से शादी हो गई तो उनका कैरियर भी सँवर जायेगा। मेरे खयाल से ऐसी सोच में कुछ बुरा नहीं है, जब तक कि आप इमानदार और साफ़ दिल के रहें।
यह स्वयंवर अच्छे से निपटे तो अच्छा है, वर्ना लोगों (प्रतियोगियों) को कीचड़ में उतरते देर नहीं लगती।
अभी तक तो प्रतियोगी (?) होने वाले दुल्हे एक दूसरे के लिये शालीन भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, देखते हैं ऐसा कब तक रह पायेगा।
एक दूसरे के लिये अमर्यादित भाषा, निजी बातों को उजागर करना जिस दिन शुरु हो जायेगा, उस दिन राखी क्या करेगी, पता नहीं।
क्या वो फ़िर भी उनमें से जो अंतिम बचेगा उसी के साथ शादी करेगी?
आपको क्या लगता है?
Thursday, June 25, 2009
एक नॉनवेज जोक
एक बार एक हैण्डसम, उँचे कद का हष्टपुष्ट जवान अपनी कार से घुमते हुए एक कस्बे में आ पहुँचा।
वह युवक उस कस्बे के एकमात्र पब-रेस्त्रां में जा पहुँचा।
वहाँ एक टेबल पर बैठने के बाद उसने देखा कि रेस्त्रां में सिर्फ़ महिलाएं ही महिलाएं हैं।
और वह थोड़ा परेशान हो गया क्योंकि सब उसे ही घूर घूर करे देख रहीं थीं।
उसे थोड़ा अजीब लगा। फ़िर उसने वेटर को आवाज़ लगाई। जो वेटर आया उसे देखकर उसकी आँखे फ़टी की फ़टी रह गई।
इतनी बला की खुबसूरत और परफ़ेक्ट फ़िगर वाली लड़की उसने आज तक नहीं देखी थी।
उस युवक से रहा नहीं गया, उसने वेटर से इशारों में ही पुछ लिया कि "यहाँ और क्या मिलेगा?"
वो लड़की अपनी मदभरी चाल से युवक के पास आई, और नीचे झुकी और उसके कानों फ़ुसफ़ुसाई-
:
:
चिकन मसाला
चिकन टिक्का मसाला
चिकन दो प्याज़ा
चिकन हैदराबादी
चिकन पटियाला
चिकन सागवाला
मुर्ग मुस्सलम
बटर चिकन मसाला
चिकन मंचुरियन
चिकन शामीकबाब
तंदूरी चिकन
चिकन टंगड़ी कबाब
चिकन बिरयानी
चिली चिकन
चिकन लालीपॉप
:
:
:
:
इतना ही नहीं, वेटर ने युवक को मटन और फ़िश की भी डिशेज़ बताई।
(सच सच बताना - किस किस के मुँह में पानी आया?)
(अभी खाना खाते खाते ही बनाया हैं)
वह युवक उस कस्बे के एकमात्र पब-रेस्त्रां में जा पहुँचा।
वहाँ एक टेबल पर बैठने के बाद उसने देखा कि रेस्त्रां में सिर्फ़ महिलाएं ही महिलाएं हैं।
और वह थोड़ा परेशान हो गया क्योंकि सब उसे ही घूर घूर करे देख रहीं थीं।
उसे थोड़ा अजीब लगा। फ़िर उसने वेटर को आवाज़ लगाई। जो वेटर आया उसे देखकर उसकी आँखे फ़टी की फ़टी रह गई।
इतनी बला की खुबसूरत और परफ़ेक्ट फ़िगर वाली लड़की उसने आज तक नहीं देखी थी।
उस युवक से रहा नहीं गया, उसने वेटर से इशारों में ही पुछ लिया कि "यहाँ और क्या मिलेगा?"
वो लड़की अपनी मदभरी चाल से युवक के पास आई, और नीचे झुकी और उसके कानों फ़ुसफ़ुसाई-
:
:
चिकन मसाला
चिकन टिक्का मसाला
चिकन दो प्याज़ा
चिकन हैदराबादी
चिकन पटियाला
चिकन सागवाला
मुर्ग मुस्सलम
बटर चिकन मसाला
चिकन मंचुरियन
चिकन शामीकबाब
तंदूरी चिकन
चिकन टंगड़ी कबाब
चिकन बिरयानी
चिली चिकन
चिकन लालीपॉप
:
:
:
:
इतना ही नहीं, वेटर ने युवक को मटन और फ़िश की भी डिशेज़ बताई।
(सच सच बताना - किस किस के मुँह में पानी आया?)
(अभी खाना खाते खाते ही बनाया हैं)
Thursday, June 18, 2009
Tuesday, June 09, 2009
पार्टी लो? या पार्टी दो?
फ़र्ज किया जाय:
- एक १००० लोगों का ग्रुप है।
- उन १००० लोगों के लिये एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।
- उन १००० लोगों में से सिर्फ़ ५० लोग उस प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं।
- उन ५० लोगों में से सिर्फ़ ३ जीतते हैं।
- परिणाम सारे १००० लोगों तक पहुँचाये जाते हैं।
- बाकी लोग उन जीते हुए ३ लोगों को बधाईयाँ देते हैं।
यहाँ तक तो सब सामान्य दिख रहा है। है ना?
अब, जैसा कि हमारे यहाँ चलन है, यार-दोस्त जीतने वालों से पार्टी की मांग करते हैं। जीतने वाला भी खुशी खुशी पार्टी देता है। सही है ना? आपने भी कभी ना कभी ऐसी पार्टी दी ही होगी। या फ़िर जैसे ही आपने किसी को अपना परिणाम बताया, सामने वाला फ़टाक से बोला - पार्टी?
- खुशियाँ बाँटने से बढती हैं।
- अपनी खुशियों में सबको शामिल करना चाहिये।
- खुशी के मौके पर पार्टी देना बनता ही है। यह तो रीत है।
इत्यादि इत्यादि तर्क दिये जाते हैं।
ऐसी बात नहीं है कि हम इससे कुछ अलग हैं, ऐसी पार्टियाँ तो हमने भी खुब मांगी है और खुब उड़ाई हैं। मगर क्या कभी किसी ने यह भी सोचा है कि वाकई जीतने वालों से ही पार्टी लेना ? याकि फ़िर बाकी लोगों ने मिल कर जीतने वालों को पार्टी देना चाहिये?
मैने हाल ही में इसपर गौर किया और मुझे यह ज्यादा तर्कसंगत लगा कि बाकी लोगों ने मिलकर जीतने वालों को पार्टी देना चाहिये।
मेरे तर्क/विचार हैं कि-
- चुँकि प्रतियोगिता सभी लोगों के लिये थी, तो वे लोग कैसे पार्टी मांग सकते हैं जिन्होने प्रतियोगिता में हिस्सा ही नहीं लिया?(१)
- जीतने वाले ने प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की हिम्मत दिखाई, जीतने के लिये मेहनत की, उसका समय दिया, और जब वो जीत गया तो बाकी लोग किस तरह से उसी से पार्टी लेने के हकदार हो गये?
- अगर जीतने वाला पार्टी देता है तो लेने वाले तो हमेशा तैयार ही रहेंगे, और जिनको वह नहीं बुला पायेगा वे लोग उससे नारज नहीं हो जायेंगे? और इस तरह से अगर जीतने वाला पार्टी देता रहे तो लेने वाले तो खतम ही नहीं होंगे।
- ऐसा क्यों ना हो कि जीतने वाले के निकटगण ही उसे पार्टी दे। इस तरह से पार्टी में ज्यादा (फ़ालतु) लोग भी जमा नहीं होंगे।, क्योंकि जो जीतने वाले के जीतने से सचमुच ही खुश हो, वही उसे पार्टी देने आयेंगे।
अब जीतने वाले को कुछ ना कुछ इनाम भी मिलता है। भले ही वह सिर्फ़ एक प्रमाणपत्र, या एक मेडल या फ़िर कुछ नकद पुरुस्कार, या फ़िर सिर्फ़ उसके नाम की घोषणा ही हुई हो, कभी कभी कोई पुरुस्कार नहीं भी रहता है, सिर्फ़ जीतने वाले का नाम सबको बताया जाता है।
अब इसपर लोग एक तर्क देते हैं कि जीतने वाले को तो वैसे ही इनाम मिल गया है तो उसे हम (बाकी) लोग फ़िर से क्यों इनाम (पार्टी) दें? अगर इनाम नहीं भी मिला तो भी लोग कहते हैं कि 'जीतने वाले का नाम तो हुआ'। इसी खुशी में उसे पार्टी देना चाहिये।
यह तर्क मुझे ऐसा लगता है मानो जब अभिनव बिन्द्रा सोने का तमगा जीत कर आये तो लोग उन्हें ही कहे कि 'पार्टी दो', जबकि उन्हें (और वैसे ही कई खिलाडियों को) तो सम्मान समारोह आयोजित कर के सम्मानित किया जाता है।
तो फ़िर यही बात बाकी जगह पर क्यों ना लागू की जाये। दरअसल यह पार्टी एक तरह का सम्मान समारोह ही तो है, जिसमें जीतने वाले के बारे में कुछ अच्छी बातें की जाती है, लोगों को यह पता चलता है कि जीतने वाले ने जीतने के लिये कितनी मेहनत की। नहीं क्या?
और एक अंतिम तर्क - जब जीतने वालो को ही पार्टी मिला करेगी तो क्या बाकी लोग इस बात से प्रोत्साहित नहीं होंगे और ज्यादा से ज्यादा लोग अगली बार जीतने की ज्यादा कोशिश नहीं करेंगे? इससे एक (स्वस्थ) प्रतिस्पर्धा की भावना सब लोगों में आयेगी, और हमे ज्यादा "विजेता" मिलेंगे।
क्या ऐसा कभी हो सकता है कि हमारा कोई मित्र (किसी भी प्रकार की) कोई प्रतियोगिता जीतकर हमारे सामने आये और हम उसे "पार्टी दो" के बजाय ये कहें कि "अरे वाह! तुमने अच्छा काम किया, चलो आज हम तुम्हें पार्टी देते हैं"।
तो बताईये, आप किसकी तरफ़ होना चाहेंगे?
जीतने वाले से पार्टी लेने वालों में??
या जीतने वाले को पार्टी देने वालों में??
(१) यह बिन्दू सिर्फ़ उपर दिये गये उदाहरण पर आधारित है, क्योंकि यह तो जरुरी नहीं कि पार्टी मांगने वाले भी उसी ग्रुप के हों।
- एक १००० लोगों का ग्रुप है।
- उन १००० लोगों के लिये एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।
- उन १००० लोगों में से सिर्फ़ ५० लोग उस प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं।
- उन ५० लोगों में से सिर्फ़ ३ जीतते हैं।
- परिणाम सारे १००० लोगों तक पहुँचाये जाते हैं।
- बाकी लोग उन जीते हुए ३ लोगों को बधाईयाँ देते हैं।
यहाँ तक तो सब सामान्य दिख रहा है। है ना?
अब, जैसा कि हमारे यहाँ चलन है, यार-दोस्त जीतने वालों से पार्टी की मांग करते हैं। जीतने वाला भी खुशी खुशी पार्टी देता है। सही है ना? आपने भी कभी ना कभी ऐसी पार्टी दी ही होगी। या फ़िर जैसे ही आपने किसी को अपना परिणाम बताया, सामने वाला फ़टाक से बोला - पार्टी?
- खुशियाँ बाँटने से बढती हैं।
- अपनी खुशियों में सबको शामिल करना चाहिये।
- खुशी के मौके पर पार्टी देना बनता ही है। यह तो रीत है।
इत्यादि इत्यादि तर्क दिये जाते हैं।
ऐसी बात नहीं है कि हम इससे कुछ अलग हैं, ऐसी पार्टियाँ तो हमने भी खुब मांगी है और खुब उड़ाई हैं। मगर क्या कभी किसी ने यह भी सोचा है कि वाकई जीतने वालों से ही पार्टी लेना ? याकि फ़िर बाकी लोगों ने मिल कर जीतने वालों को पार्टी देना चाहिये?
मैने हाल ही में इसपर गौर किया और मुझे यह ज्यादा तर्कसंगत लगा कि बाकी लोगों ने मिलकर जीतने वालों को पार्टी देना चाहिये।
मेरे तर्क/विचार हैं कि-
- चुँकि प्रतियोगिता सभी लोगों के लिये थी, तो वे लोग कैसे पार्टी मांग सकते हैं जिन्होने प्रतियोगिता में हिस्सा ही नहीं लिया?(१)
- जीतने वाले ने प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की हिम्मत दिखाई, जीतने के लिये मेहनत की, उसका समय दिया, और जब वो जीत गया तो बाकी लोग किस तरह से उसी से पार्टी लेने के हकदार हो गये?
- अगर जीतने वाला पार्टी देता है तो लेने वाले तो हमेशा तैयार ही रहेंगे, और जिनको वह नहीं बुला पायेगा वे लोग उससे नारज नहीं हो जायेंगे? और इस तरह से अगर जीतने वाला पार्टी देता रहे तो लेने वाले तो खतम ही नहीं होंगे।
- ऐसा क्यों ना हो कि जीतने वाले के निकटगण ही उसे पार्टी दे। इस तरह से पार्टी में ज्यादा (फ़ालतु) लोग भी जमा नहीं होंगे।, क्योंकि जो जीतने वाले के जीतने से सचमुच ही खुश हो, वही उसे पार्टी देने आयेंगे।
अब जीतने वाले को कुछ ना कुछ इनाम भी मिलता है। भले ही वह सिर्फ़ एक प्रमाणपत्र, या एक मेडल या फ़िर कुछ नकद पुरुस्कार, या फ़िर सिर्फ़ उसके नाम की घोषणा ही हुई हो, कभी कभी कोई पुरुस्कार नहीं भी रहता है, सिर्फ़ जीतने वाले का नाम सबको बताया जाता है।
अब इसपर लोग एक तर्क देते हैं कि जीतने वाले को तो वैसे ही इनाम मिल गया है तो उसे हम (बाकी) लोग फ़िर से क्यों इनाम (पार्टी) दें? अगर इनाम नहीं भी मिला तो भी लोग कहते हैं कि 'जीतने वाले का नाम तो हुआ'। इसी खुशी में उसे पार्टी देना चाहिये।
यह तर्क मुझे ऐसा लगता है मानो जब अभिनव बिन्द्रा सोने का तमगा जीत कर आये तो लोग उन्हें ही कहे कि 'पार्टी दो', जबकि उन्हें (और वैसे ही कई खिलाडियों को) तो सम्मान समारोह आयोजित कर के सम्मानित किया जाता है।
तो फ़िर यही बात बाकी जगह पर क्यों ना लागू की जाये। दरअसल यह पार्टी एक तरह का सम्मान समारोह ही तो है, जिसमें जीतने वाले के बारे में कुछ अच्छी बातें की जाती है, लोगों को यह पता चलता है कि जीतने वाले ने जीतने के लिये कितनी मेहनत की। नहीं क्या?
और एक अंतिम तर्क - जब जीतने वालो को ही पार्टी मिला करेगी तो क्या बाकी लोग इस बात से प्रोत्साहित नहीं होंगे और ज्यादा से ज्यादा लोग अगली बार जीतने की ज्यादा कोशिश नहीं करेंगे? इससे एक (स्वस्थ) प्रतिस्पर्धा की भावना सब लोगों में आयेगी, और हमे ज्यादा "विजेता" मिलेंगे।
क्या ऐसा कभी हो सकता है कि हमारा कोई मित्र (किसी भी प्रकार की) कोई प्रतियोगिता जीतकर हमारे सामने आये और हम उसे "पार्टी दो" के बजाय ये कहें कि "अरे वाह! तुमने अच्छा काम किया, चलो आज हम तुम्हें पार्टी देते हैं"।
तो बताईये, आप किसकी तरफ़ होना चाहेंगे?
जीतने वाले से पार्टी लेने वालों में??
या जीतने वाले को पार्टी देने वालों में??
(१) यह बिन्दू सिर्फ़ उपर दिये गये उदाहरण पर आधारित है, क्योंकि यह तो जरुरी नहीं कि पार्टी मांगने वाले भी उसी ग्रुप के हों।
Saturday, June 06, 2009
कृपया महिलायें इसे ना पढें
दोस्तों,
अगर आप अपने ब्लाग या अपनी वेबसाईट पर अपनी "उम्र" बताना चाहते हैं, जो कि हर रोज, खुद-ब-खुद "अपडेट" होती रहे, अरे बिल्कुल वैसे ही जैसे मैने अपने ब्लाग पर लगाई है, अरे॥!! देखो ना, सीधे हाथ की पट्टी में। दिखा??
तो फ़िर देर किस बात की ये लो छोटी सी जावास्क्रिप्ट (जावास्क्रिप्ट) जिसे कि आप किसी भी वेब पेज पर लगा सकते हैं।
----------------------------------------------------
<div id="vkwage"></div>
<script type="text/javascript"><!--
function daysInLastMonth(m,y) {
m-=2;
if(m<0){m=11;y-=1;}
return 32-new Date(y,m,32).getDate();
}
function getAge(y,m,d) {
var todaysDate = new Date();
var ty = todaysDate.getFullYear();
var tm = todaysDate.getMonth() + 1;
var td = todaysDate.getDate();
var dilm = daysInLastMonth(tm,ty);
var age = "";
var yd = ty - y;
var md = tm - m;
if(md<0) {
yd -= 1;
md = (12 - m) + tm;
}
var dd = td - d;
if(dd<0) {
md-=1;
dd = (dilm - d) + td;
}
if(yd > 0) {
age += yd + " वर्ष";
}
if(md>0) {
age += " " + md + " माह";
}
if(dd>0) {
age += " " + dd + " दिन";
}
return age;
}
var o=document.getElementById("vkwage");
o.innerHTML="जन्म हुये: "+ getAge(1977,3,29);
//--></script>
----------------------------------------------------
तो बस, आपको करना यह है कि ये उपर दी गई स्क्रिप्ट कॉपी करके अपने वेबपेज में पेस्ट करना है और हाँ यह जो लाल रंग में है वह आपका जन्म दिनांक है (वर्ष, माह, दिन)।
माह - जनवरी-१,फ़रवरी-२...
थोड़ा बहुत फ़ेरबदल करके इसे आप अपने पेज जैसा, और जैसा चाहिये वैसा आउटपुट ले सकते हैं (बशर्ते आपको थोड़ी बहुत जावास्क्रिप्ट आती हो)। script tag में चाहे जितनी बार आप वो document.write... लाईन लिख सकते हैं, अलग अलग dates के साथ।
हाँ, और आप महिलायें, आप अपने बजाये अपने किसी भी निकटतम का जन्मदिनाँक या फ़िर कोई महत्वपूर्ण दिनाँक इस्तेमाल कर सकती हैं।
बड़ा नोट: मैने पोस्ट का शीर्षक यूँ ही महिलाओं को भी यहाँ तक लाने के लिये ही दिया था।
ही...ही...ही
छोटा नोट: इस पोस्ट के टाईटल को महिलाओं के उम्र-छिपाओ-स्वभाव को लेकर किया गया स्वस्थ मजाक ही समझा जाय।
अगर आप अपने ब्लाग या अपनी वेबसाईट पर अपनी "उम्र" बताना चाहते हैं, जो कि हर रोज, खुद-ब-खुद "अपडेट" होती रहे, अरे बिल्कुल वैसे ही जैसे मैने अपने ब्लाग पर लगाई है, अरे॥!! देखो ना, सीधे हाथ की पट्टी में। दिखा??
तो फ़िर देर किस बात की ये लो छोटी सी जावास्क्रिप्ट (जावास्क्रिप्ट) जिसे कि आप किसी भी वेब पेज पर लगा सकते हैं।
----------------------------------------------------
<div id="vkwage"></div>
<script type="text/javascript"><!--
function daysInLastMonth(m,y) {
m-=2;
if(m<0){m=11;y-=1;}
return 32-new Date(y,m,32).getDate();
}
function getAge(y,m,d) {
var todaysDate = new Date();
var ty = todaysDate.getFullYear();
var tm = todaysDate.getMonth() + 1;
var td = todaysDate.getDate();
var dilm = daysInLastMonth(tm,ty);
var age = "";
var yd = ty - y;
var md = tm - m;
if(md<0) {
yd -= 1;
md = (12 - m) + tm;
}
var dd = td - d;
if(dd<0) {
md-=1;
dd = (dilm - d) + td;
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if(yd > 0) {
age += yd + " वर्ष";
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if(md>0) {
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age += " " + dd + " दिन";
}
return age;
}
var o=document.getElementById("vkwage");
o.innerHTML="जन्म हुये: "+ getAge(1977,3,29);
//--></script>
----------------------------------------------------
तो बस, आपको करना यह है कि ये उपर दी गई स्क्रिप्ट कॉपी करके अपने वेबपेज में पेस्ट करना है और हाँ यह जो लाल रंग में है वह आपका जन्म दिनांक है (वर्ष, माह, दिन)।
माह - जनवरी-१,फ़रवरी-२...
थोड़ा बहुत फ़ेरबदल करके इसे आप अपने पेज जैसा, और जैसा चाहिये वैसा आउटपुट ले सकते हैं (बशर्ते आपको थोड़ी बहुत जावास्क्रिप्ट आती हो)। script tag में चाहे जितनी बार आप वो document.write... लाईन लिख सकते हैं, अलग अलग dates के साथ।
हाँ, और आप महिलायें, आप अपने बजाये अपने किसी भी निकटतम का जन्मदिनाँक या फ़िर कोई महत्वपूर्ण दिनाँक इस्तेमाल कर सकती हैं।
बड़ा नोट: मैने पोस्ट का शीर्षक यूँ ही महिलाओं को भी यहाँ तक लाने के लिये ही दिया था।
ही...ही...ही
छोटा नोट: इस पोस्ट के टाईटल को महिलाओं के उम्र-छिपाओ-स्वभाव को लेकर किया गया स्वस्थ मजाक ही समझा जाय।
Wednesday, June 03, 2009
ऑनलाईन फ़ाईल कन्वर्टर
आपने मेरी पिछली पोस्ट में वीडियो देखा ही होगा, क्या कहा? नहीं देखा, कोई बात नही यहाँ से देख लो। यह मेरा पहला वीडियो है मेरे ब्लाग पर। अब उस वीडियो के ब्लाग पर आने की दास्तान भी पढ़ लो।
हाँ तो हुआ ऐसा था कि मैने अपने मोबाईल से वीडियो लिया था जो कि 3GP फ़ार्मेट में था, उसे मुझे यहाँ पोस्ट करना था। ब्लागर के ही टुलबार में "Add Video" बटन दिया गया है, जिससे कि ब्लाग पोस्ट में ही वीडियो लगा सकते है। ये uploaded वीडियो शायद गुगल वीडियोज़ में स्टोर हो जाते हैं। अब इसमें limitation यही थी कि ब्लागर सिर्फ़ AVI, MPEG जैसे १-२ फ़ार्मेट ही स्वीकार करता है।
अब आई मुसीबत फ़ार्मेट बदलने की।
पहले तो मैने सोचा कि कोई मुफ़्त का सॉफ़्टवेअर मिल जाये तो इंस्टाल कर लूँ, पर आजकल अपने लैपटाप पर कोई भी सॉफ़्टवेअर इंस्टाल करने से पहले १० बार सोचता हूँ।
फ़िर इंटर्नेट पर ही ढुँढ रहा था कि मेरा एक (कजिन) भाई (आशीष) ऑनलाईन नजर आया। मैने यों ही उससे पुछ लिया। उसने दो मिनिट में ही दो हल बता दिये। पहला तो कोई टूल इंस्टाल करने का था। दूसरा ऑनलाईन था। जाहिर है मैने दूसरा ही पहले (और आखिरी) देखा।
आप भी देखिये: www.media-convert.com
जाने कितनी तरह के तो फ़ार्मेट से कितनी ही तरह के फ़ार्मेट में कन्वर्शन की सुविधा दी गई है। बीसीयों advanced options भी हैं। मुझे तो कुछ जरुरत नहीं पड़ी। default settings से ही मेरा काम हो गया। युजर इंटरफ़ेस एकदम सीधा-सच्चा, सरल सा। बिलकुल १-२-३ की तरह आसान।
१- पहले अपने सिस्टम से जिस फ़ाईल को कन्वर्ट करना है उसे select करें।
२- source फाइल का फ़ार्मेट अपने आप select हो जायेगा, बस एक बार check कर लें।
३- जिस फ़ार्मेट में फ़ाईल वापस चाहिये उसे select करें।
बस, OK बटन दबायें।
फ़्री साईट होने की वजह से हो सकता है कि कन्वर्ज़न में थोड़ी देर लगेगी, पर काम एकदम चोखा होगा।
चाहें तो उसी वक्त download करें, या फ़िर ईमेल के द्वारा मंगवा लें, और तो और, चाहें तो सीधे मोबाईल पर download करें।
कुल मिला कर - एक बढिया ऑनलाईन टूल। (वो भी फ़ोकट) यानि कि सोने पे सुहागा!!
तो फ़िर देर किस बात की? हो जाईये शुरु, और दनादन घरभर के बदल डालिये -- फ़ार्मेट! :)
हाँ तो हुआ ऐसा था कि मैने अपने मोबाईल से वीडियो लिया था जो कि 3GP फ़ार्मेट में था, उसे मुझे यहाँ पोस्ट करना था। ब्लागर के ही टुलबार में "Add Video" बटन दिया गया है, जिससे कि ब्लाग पोस्ट में ही वीडियो लगा सकते है। ये uploaded वीडियो शायद गुगल वीडियोज़ में स्टोर हो जाते हैं। अब इसमें limitation यही थी कि ब्लागर सिर्फ़ AVI, MPEG जैसे १-२ फ़ार्मेट ही स्वीकार करता है।
अब आई मुसीबत फ़ार्मेट बदलने की।
पहले तो मैने सोचा कि कोई मुफ़्त का सॉफ़्टवेअर मिल जाये तो इंस्टाल कर लूँ, पर आजकल अपने लैपटाप पर कोई भी सॉफ़्टवेअर इंस्टाल करने से पहले १० बार सोचता हूँ।
फ़िर इंटर्नेट पर ही ढुँढ रहा था कि मेरा एक (कजिन) भाई (आशीष) ऑनलाईन नजर आया। मैने यों ही उससे पुछ लिया। उसने दो मिनिट में ही दो हल बता दिये। पहला तो कोई टूल इंस्टाल करने का था। दूसरा ऑनलाईन था। जाहिर है मैने दूसरा ही पहले (और आखिरी) देखा।
आप भी देखिये: www.media-convert.com
जाने कितनी तरह के तो फ़ार्मेट से कितनी ही तरह के फ़ार्मेट में कन्वर्शन की सुविधा दी गई है। बीसीयों advanced options भी हैं। मुझे तो कुछ जरुरत नहीं पड़ी। default settings से ही मेरा काम हो गया। युजर इंटरफ़ेस एकदम सीधा-सच्चा, सरल सा। बिलकुल १-२-३ की तरह आसान।
१- पहले अपने सिस्टम से जिस फ़ाईल को कन्वर्ट करना है उसे select करें।
२- source फाइल का फ़ार्मेट अपने आप select हो जायेगा, बस एक बार check कर लें।
३- जिस फ़ार्मेट में फ़ाईल वापस चाहिये उसे select करें।
बस, OK बटन दबायें।
फ़्री साईट होने की वजह से हो सकता है कि कन्वर्ज़न में थोड़ी देर लगेगी, पर काम एकदम चोखा होगा।
चाहें तो उसी वक्त download करें, या फ़िर ईमेल के द्वारा मंगवा लें, और तो और, चाहें तो सीधे मोबाईल पर download करें।
कुल मिला कर - एक बढिया ऑनलाईन टूल। (वो भी फ़ोकट) यानि कि सोने पे सुहागा!!
तो फ़िर देर किस बात की? हो जाईये शुरु, और दनादन घरभर के बदल डालिये -- फ़ार्मेट! :)
पानी की दीवार
मेरे पिछले पोस्ट में जिस पानी की दीवार का जिक्र था उसका वीडियो:
यह वीडियो मैने अपने मोबाईल से लिया हुआ है। वास्तविक फ़ाईल 3GP फ़ार्मेट में थी, जिसे AVI में बदल कर यहाँ पोस्ट किया है।
Monday, June 01, 2009
काश मैने कुछ और मांगा होता
मैं कल इन्दौर से पुणे के लिये बस में बैठा था। अल सुबह ही नींद खुल गई थी। बस अभी अहमदनगर भी नहीं पहुँची थी। मैं काफ़ी देर से अपनी ही सीट पर बैठा खिड़की के बाहर देखता रहा। फ़िर उकता कर आगे केबिन में चला गया। ड्रायवर, कंडक्टर से बात करते हुए आगे का ट्राफ़िक देखना भी अपने आप में एक बढिया शगल है।
सड़क से दाहिनी तरफ़ पानी की दो पाईपलाईन सड़क के समानांतर चल रही थी। सड़क से करीब ३०-४० फ़ुट की दूरी पर तो होगी ही। एक जगह पाईप पर एक बड़ा-सा जोड़ (या वाल्व) सा कुछ लगा था, जहाँ से पानी थोड़ा थोड़ा रिस रहा था। अमुनन ऐसे जोड़ो से पानी रिसता ही रहता है।
मेरे मन में युहीं एक दो ख्याल आ गये कि - इस पाईप में पानी कितने दाब से बहता होगा? अगर पाईप फ़ुट जाए तो पानी कैसे बहेगा? शायद वैसा ही जैसा कि हम लोग अक्सर हॉलिवुड की फ़िल्मों में देखते हैं - गलियों, चौराहों पर लगे हुये पानी के पाईप (हाईड्रेंट्स) हिरो या विलेन की गाड़ियों से टकराकर बड़े प्रेशर से पानी उपर को छोड़ते हुये।
यह सोच ही रहा था कि अचानक ड्राईवर ने कुछ कहा और गाड़ी धीरे कर ली, सामने देखा तो गाड़ियों की कतार नज़र आई। कारण जानने के लिये और आगे देखा तो कुछ समझा ही नहीं - दो चार गाडियों से आगे का कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, मानो धुँध सी छाई हुई हो।
थोड़ा और गौर किया तो तब जाकर मामला समझ में आया।
दरअसल, हुआ यह था कि वही पाईपलाईन आगे से फ़ुट गई थी, और पानी बड़े ही प्रेशर से हमारी दाईं तरफ़ से निकल कर करीब १०-१५ फ़िट उंची पानी की दीवार सी बनाता हुआ सड़क के बाईं तरफ़ तक पहुँच रहा था। मेरा मुँह खुला का खुला ही रह गया।
तत्काल मेरे मन में यह ख्याल आया कि "काश उस वक्त मैने कुछ और मांगा होता"।
बड़े फ़ोर्स से बहते हुये पानी के कारण सड़क तक थोड़ी सी कट गई थी। और गाड़िया एक ही लाईन में चल रही थी। हमारे आगे दो कार थी और उनके आगे एक ट्रक था, जो कि पानी की धार के बिल्कुल मुहाने पर खड़ा हुआ था। हमें लगा कि शायद वो पानी में जाने से डर रहा होगा। मगर देखा तो पानी की दीवार में एक पहले तो २ हलके हलके रोशनी के बिन्दु नज़र आये, फ़िर धीरे धीरे एक ट्रक हमारी ओर आया। पुरा भीगा हुआ।
कंडक्टर ने तुरंत बस में चक्कर लगाकर दाईं तरफ़ की सभी खिड़किया बंद करवाई। अब तक अधिकतर लोग उठ चुके थे, हो-हल्ला सुन कर। जैसे तैसे कर के हमारी आगे वाली गाड़ियाँ निकली, फ़िर हम चले पानी की दीवार पार करने। जैसे ही पानी की पहली बौछार ने हमारी बस को छुआ, लगा बस कुछ हिल सी गई। अचानक धड़ाक सी आवाज़ आई और ढेर सारा पानी बस की छत से अंदर आया। केबिन की छत में एक झरोखा सा था, वो पानी की धार से बंद हो चुका था। जैसे जैसे हम आगे बढते जा रहे थे, हमारी पीछे वाली सीटों से उह-आह-आई-ओए...आवाज़ें आ रही थी। यानी कि पानी बंद खिडकियों (झिर्रीयों) से भी अंदर आ रहा था। राम-राम करते हमारी बस ने पानी की दीवार को पार कर ही लिया।
फ़िर अपनी सीट पर आकर देखा तो मेरे उपर वाली बर्थ तक गीली हो चुकी थी जबकि मैं तो बस के बाईं तरफ़ ही बैठा था।
बस में अंदर पानी ही पानी हो रहा था, जाने कहाँ से घुस गया। सीट के नीचे रखे हुये सामान सारे भीग चुके थे।
बस एक फ़ायदा हुआ कि -अगले कुछ घंटो तक बस थोड़ी ठंडी बनी रही -वरना गरमी में बुरा हाल हो जाता।
पता नहीं कैसे फूटा होगा? अभी तक पाईप दुरस्त हो पाया होगा कि नहीं? जाने कितना पानी बेकार ही बह गया।
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वैसे मैंने मोबाइल से वीडियो भी लिया है, पर 3GP फ़ाईल को कैसे/कहाँ अपलोड करूँ -नहीं समझ पाया। कोई बता सके तो लगा दूंगा|
सड़क से दाहिनी तरफ़ पानी की दो पाईपलाईन सड़क के समानांतर चल रही थी। सड़क से करीब ३०-४० फ़ुट की दूरी पर तो होगी ही। एक जगह पाईप पर एक बड़ा-सा जोड़ (या वाल्व) सा कुछ लगा था, जहाँ से पानी थोड़ा थोड़ा रिस रहा था। अमुनन ऐसे जोड़ो से पानी रिसता ही रहता है।
मेरे मन में युहीं एक दो ख्याल आ गये कि - इस पाईप में पानी कितने दाब से बहता होगा? अगर पाईप फ़ुट जाए तो पानी कैसे बहेगा? शायद वैसा ही जैसा कि हम लोग अक्सर हॉलिवुड की फ़िल्मों में देखते हैं - गलियों, चौराहों पर लगे हुये पानी के पाईप (हाईड्रेंट्स) हिरो या विलेन की गाड़ियों से टकराकर बड़े प्रेशर से पानी उपर को छोड़ते हुये।
यह सोच ही रहा था कि अचानक ड्राईवर ने कुछ कहा और गाड़ी धीरे कर ली, सामने देखा तो गाड़ियों की कतार नज़र आई। कारण जानने के लिये और आगे देखा तो कुछ समझा ही नहीं - दो चार गाडियों से आगे का कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, मानो धुँध सी छाई हुई हो।
थोड़ा और गौर किया तो तब जाकर मामला समझ में आया।
दरअसल, हुआ यह था कि वही पाईपलाईन आगे से फ़ुट गई थी, और पानी बड़े ही प्रेशर से हमारी दाईं तरफ़ से निकल कर करीब १०-१५ फ़िट उंची पानी की दीवार सी बनाता हुआ सड़क के बाईं तरफ़ तक पहुँच रहा था। मेरा मुँह खुला का खुला ही रह गया।
तत्काल मेरे मन में यह ख्याल आया कि "काश उस वक्त मैने कुछ और मांगा होता"।
बड़े फ़ोर्स से बहते हुये पानी के कारण सड़क तक थोड़ी सी कट गई थी। और गाड़िया एक ही लाईन में चल रही थी। हमारे आगे दो कार थी और उनके आगे एक ट्रक था, जो कि पानी की धार के बिल्कुल मुहाने पर खड़ा हुआ था। हमें लगा कि शायद वो पानी में जाने से डर रहा होगा। मगर देखा तो पानी की दीवार में एक पहले तो २ हलके हलके रोशनी के बिन्दु नज़र आये, फ़िर धीरे धीरे एक ट्रक हमारी ओर आया। पुरा भीगा हुआ।
कंडक्टर ने तुरंत बस में चक्कर लगाकर दाईं तरफ़ की सभी खिड़किया बंद करवाई। अब तक अधिकतर लोग उठ चुके थे, हो-हल्ला सुन कर। जैसे तैसे कर के हमारी आगे वाली गाड़ियाँ निकली, फ़िर हम चले पानी की दीवार पार करने। जैसे ही पानी की पहली बौछार ने हमारी बस को छुआ, लगा बस कुछ हिल सी गई। अचानक धड़ाक सी आवाज़ आई और ढेर सारा पानी बस की छत से अंदर आया। केबिन की छत में एक झरोखा सा था, वो पानी की धार से बंद हो चुका था। जैसे जैसे हम आगे बढते जा रहे थे, हमारी पीछे वाली सीटों से उह-आह-आई-ओए...आवाज़ें आ रही थी। यानी कि पानी बंद खिडकियों (झिर्रीयों) से भी अंदर आ रहा था। राम-राम करते हमारी बस ने पानी की दीवार को पार कर ही लिया।
फ़िर अपनी सीट पर आकर देखा तो मेरे उपर वाली बर्थ तक गीली हो चुकी थी जबकि मैं तो बस के बाईं तरफ़ ही बैठा था।
बस में अंदर पानी ही पानी हो रहा था, जाने कहाँ से घुस गया। सीट के नीचे रखे हुये सामान सारे भीग चुके थे।
बस एक फ़ायदा हुआ कि -अगले कुछ घंटो तक बस थोड़ी ठंडी बनी रही -वरना गरमी में बुरा हाल हो जाता।
पता नहीं कैसे फूटा होगा? अभी तक पाईप दुरस्त हो पाया होगा कि नहीं? जाने कितना पानी बेकार ही बह गया।
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वैसे मैंने मोबाइल से वीडियो भी लिया है, पर 3GP फ़ाईल को कैसे/कहाँ अपलोड करूँ -नहीं समझ पाया। कोई बता सके तो लगा दूंगा|
Friday, May 29, 2009
समझ का फ़ेर: चुटकुला
एक आदमी डॉक्टर के पास पहुँचा और बोला -
आदमी: डॉक्टर डॉक्टर, मेरी मदद कीजिये, मेरी आवाज में थोड़ी प्राब्लम है।
डॉ.: बताओ, क्या बात है?
आदमी: डॉक्टर, बात ये है कि मैं फ़ को फ़ बोलता हूँ।
डॉ.: अरे! यह कैसी परेशानी हुई? सभी लोग तो फ़ को फ़ बोलते हैं।
आदमी: अरे डॉक्टर, औरों का मुझे क्या पता, पर मैं तो फ़ को फ़ बोलता हूँ।
डॉ.: अरे! अजीब आदमी हो, मैं बोल तो रहा हूँ कि हर कोई फ़ को फ़ ही बोलता है।
आदमी: अरे ओ डॉक्टर, मैं बोल रहा हूँ कि मैं-फ़-को-फ़ बोलता हूँ।
डॉ.: हे भगवान, इसे कैसे समझाउँ? अरे! भले मानस, सब लोग फ़ को फ़ बोलते हैं, मैं फ़ को फ़ बोलता हूँ, और तो और तुम भी फ़ को फ़ ही बोल रहे हो।
:
:
आदमी: अरे डॉक्टर फ़ाहब, मैं कब फ़े फ़मझा रहा हूँ, आप तो फ़मझने का नाम ही नहीं ले रहे। अरे माना फ़ब लोग फ़ को फ़ बोलते हैं, आप फ़ को फ़ बोलते हो...पर मैं तो फ़ को फ़ बोल रहा हूँ ना। और कैफ़े फ़मझाउँ?? आपको फ़ुनाई दे रहा होगा कि मैं फ़ को फ़ बोलता हूँ, पर मुझे तो पता है ना कि मैं फ़ को फ़ नहीं, फ़ बोलता हूँ, और ये मैं फ़मझ रहा हूँ कि मैं फ़ही नहीं बोल रहा हूँ। और ये इत्ती फ़ी बात आपकी फ़मझ में ही नहीं आ रही है। मैंने इतना फ़मझाया, लगता है आपकी फ़मझ में फ़िर भी नहीं आया, फ़िर फ़े फ़मझाउँ क्या??
डॉ.: @#$%$!$!$!!$!!@@#@!@!@&^*^&*!!!!
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कुछ आपकी फ़मझ में आया???
आदमी: डॉक्टर डॉक्टर, मेरी मदद कीजिये, मेरी आवाज में थोड़ी प्राब्लम है।
डॉ.: बताओ, क्या बात है?
आदमी: डॉक्टर, बात ये है कि मैं फ़ को फ़ बोलता हूँ।
डॉ.: अरे! यह कैसी परेशानी हुई? सभी लोग तो फ़ को फ़ बोलते हैं।
आदमी: अरे डॉक्टर, औरों का मुझे क्या पता, पर मैं तो फ़ को फ़ बोलता हूँ।
डॉ.: अरे! अजीब आदमी हो, मैं बोल तो रहा हूँ कि हर कोई फ़ को फ़ ही बोलता है।
आदमी: अरे ओ डॉक्टर, मैं बोल रहा हूँ कि मैं-फ़-को-फ़ बोलता हूँ।
डॉ.: हे भगवान, इसे कैसे समझाउँ? अरे! भले मानस, सब लोग फ़ को फ़ बोलते हैं, मैं फ़ को फ़ बोलता हूँ, और तो और तुम भी फ़ को फ़ ही बोल रहे हो।
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आदमी: अरे डॉक्टर फ़ाहब, मैं कब फ़े फ़मझा रहा हूँ, आप तो फ़मझने का नाम ही नहीं ले रहे। अरे माना फ़ब लोग फ़ को फ़ बोलते हैं, आप फ़ को फ़ बोलते हो...पर मैं तो फ़ को फ़ बोल रहा हूँ ना। और कैफ़े फ़मझाउँ?? आपको फ़ुनाई दे रहा होगा कि मैं फ़ को फ़ बोलता हूँ, पर मुझे तो पता है ना कि मैं फ़ को फ़ नहीं, फ़ बोलता हूँ, और ये मैं फ़मझ रहा हूँ कि मैं फ़ही नहीं बोल रहा हूँ। और ये इत्ती फ़ी बात आपकी फ़मझ में ही नहीं आ रही है। मैंने इतना फ़मझाया, लगता है आपकी फ़मझ में फ़िर भी नहीं आया, फ़िर फ़े फ़मझाउँ क्या??
डॉ.: @#$%$!$!$!!$!!@@#@!@!@&^*^&*!!!!
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कुछ आपकी फ़मझ में आया???
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