आजकल टी.वी. प्रसारित होने वाले दो विज्ञापन मुझे थोड़े खटक रहे हैं। दरअसल उसमें बोली गई हिन्दी में मुझे लगता है कि थोड़ी गड़बड़ है। या तो वाक्य गलत बनाये हुये हैं या फ़िर बोलने में सही जगह विराम या सही जगह ज़ोर नहीं दिया गया है, इसलिये (मुझे) वे वाक्य गलत लगते हैं।
पहला:
एक शीतपेय का है, जिसमें एक कलाकार (डबल रोल में) तमाम तरह के स्टंट्स करता हुआ शीतपेय के फ़्रिज तक पहुँचता है। पर जाने से पहले एक वाक्य बोला जाता है -
...बिना पैर जमीं पर रख के....
यहाँ आशय यह है कि ..चलो शीतपेय की बोतल ले आते हैं, पर पैर जमींन पर रखे बिना।
बोलते समय कलाकार "बिना पैर" के बाद विराम लेता है और फ़िर आगे बोलता है "जमीं पर.."
यानि कि - ."बिना पैर, जमीं पर..."
जबकि मेरे ख्याल से होना ऐसा चहिये कि - "बिना, पैर जमीं पर...."
दूसरा:
किसी तो क्रिम का है शायद। एक अदाकारा अपनी नाक में नथ लगाते हुए दूसरी से कहती है -
...अगर हम ये पार्टी में पहनेंगे तो.....
आशय होता है - कि पार्टी में ये वाली नथ पहनेंगे तो....
मगर बिना विराम और गलत जगह जोर देने के कारण, (मुझे) सुनाई देता/लगता है - ..अगर हम, ये पार्टी में पहनेंगे तो...
इसकी जगह अगर वे ऐसा कहते - "...अगर हम पार्टी में ये पहनेंगे तो...." तो वाक्य एकदम साफ़ समझ में आता।
आप क्या कहते हैं?
मुझे मानवीय मस्तिष्क की एक बड़ी दिलचस्प करामात याद आ रही है। जिसमें इंसानी दिमाग़ किसी चीज़ को देख/सुन/पढ़ कर उससे जुड़ी या उससे संबंधित उसके आगे पीछे की चीज़ की कल्पना कर लेता है और आधी-अधुरी अथवा गलत सूचना को भी सही समझकर काम चला लेता है।
और शायद इसी के चलते हम शब्दों को जोड़कर, भले ही वे थोड़े गलत क्रमांक में हो, सही वाक्य की कल्पना कर लेते हैं, अथवा समझ लेते हैं।
चलिये एक/दो उदाहरण देता हूँ: नीचे लिखे अंग्रेजी के दो वाक्य हैं। बिना ज्यादा ध्यानकेंद्रीत किये हुये उन पर नज़र घुमाईये। और देखिये की क्या लिखा है।
- hlleo, my nmae is vjiay.
- We are paleesd wtih the Hnoorubale Baord's dcesioin and we arpeacpite the percoss bineg fllooewd.
मुझे उम्मीद है आपमे से अधिकतर (जिनके लिये अंग्रेजी पढना आम बात है) ने इन वाक्यों को पढ/समझ लिया होगा। यह जानते हुये भी कि सारे शब्दों के हिज्जे गलत हैं। बस हर शब्द का पहला और अंतिम अक्षर ही अपनी जगह पर है।
देखा आपने यही है हमारे दिमाग का कमाल।
परंतु जब मैने यही प्रयोग, हिन्दी के वाक्य के साथ बनाना चाहा तो बना ना पाया, क्योंकि, हिन्दी के अधिकतर शब्द २ या तीन अक्षरों के ही मि
अब एक प्रयोग करके देखते हैं जो मैं भी पहली बार ही करुंगा। यही उपर वाला प्रयोग, हिन्दी के शब्दों के साथ करते हैं:
- अक्रनुमांक
- अवांनुशिक
- अतधिकर
- हदमम
- यसंभथाव
क्या आप इन्हें पहली बार में सही पकड़ पाये?? ज्यादा ध्यान केंद्रित किये बिना?
बताईयेगा ज़रुर!!
अंत में: I tired to from a hnidi stncneee of taht nutrae, but condlut, as msot of the hndii wrods are trhee ltetered olny. :(
Monday, April 27, 2009
क्यों ना वे ऐसा करें?
क्यों ना वे ऐसा करें, कि अब से सिर्फ़ नाबालिगों को ही भर्ती करें?
वैसे भी, जिनके दिमाग में एक धर्मविशेष को मानना ही धर्म और उसे ना मानने वाले काफ़िर और काफ़िरों के खिलाफ़ ज़िहाद करना ही जन्नत का रास्ता है, यह बचपन से भरा गया हो, उनसे इस तरह के काम करवाना कुछ मुश्किल है क्या?
तो चित्र कुछ यूँ होगा, सीमा पार से १६-१७ साल के लड़कों का जत्था अब अक्सर यहाँ आता रहेगा। समुद्र, सड़क या फ़िर रेल के रास्ते। अपने साथ वे लायेंगे हथियारों का ज़खीरा। यहाँ आकर वे मचायेंगे कत्ल-ए-आम, अपने आप को बचाते हुए हर आते जाते को मारेंगे, जो दिखेगा उसे मारेंगे, हर पुलिसवाले को शहीद करते हुये वे तब तक गोलियाँ चलायेंगे, जब तक कि उनकी बंदुकों में एक गोली भी शेष रहेगी।
जैसे ही गोलियाँ खत्म होंगी, वे अपनी भोली सुरत दिखाते हुये आत्मसमर्पण कर देंगे। बस उनका काम खत्म।
या यह कहना ज्यादा बेहतर होगा कि - उनका मुश्किल काम खत्म।
यानि दुख भरे दिन बीते रे भैय्या, अब सुख आयो रेऽऽऽऽ!!
अब वे हमारी सरकार के शाही मेहमान बन कर रहेंगे। उन्हें सारी सुख सुविधायें मुहैय्या करवाई जाएंगी। जेल में उनके लिये खास सहुलियतें होगी। उनकी मदद करने के लिये हमारे ही यहाँ से कुछ 'खास वकील' तो रहेंगे ही, साथ ही साथ, कुछ 'खास मानवाधिकार संगठन' भी आ जायेंगे। जो 'उन' लड़ाकों, मेरा मतलब, उन लड़कों के नाबालिग होने की दुहाई दे दे कर सारी दुनियाँ को सर पर उठा लेंगे जिससे कि सरकार को मजबुर होकर उन 'मेहमानों' को 'बाल सुधारगृह' भिजवाना पडेगा। जहाँ से वे एक, दो या ज्यादा से ज्यादा तीन सालों में ही निकल कर वापस अपने देश जा सकें या फ़िर, उनके बाल सुधारगृह में किये गये 'अच्छे आचरण' को देखते हुए, अपने यहाँ की एक 'खास सेक्यूलर पार्टी' उन्हें यहीं बसने का आमंत्रण दे दें और राशनकार्ड/वोटरकार्ड इत्यादि भी बनवा दें। अरे भई, आखिर ये पार्टी वाले अपने वोट बैंक का खयाल नहीं रखेंगे तो इनको चुनाव कौन जितवाएगा??
एक एपीसोड खतम। कुछ समय बाद फ़िर यही कहानी दोहराई जायेगी - और बार-बार दोहराई जायेगी।
क्यों? कैसा लगा यह पढ कर?? अरे ज्यादा मत सोचिये, यदि हमारी 'सरकार' ऐसी ही * रहेगी तो कोई आश्चर्य नहीं, कि हमें ऐसे दिन भी देखने को मिलेंगे, वह भी जल्द ही।
* - लुंजपुंज, ढीली, नपुंसक, रीढविहीन, 'सेक्यूलर' - जो चाहिये वो लगाईये।
(पुन:प्रेषित)
वैसे भी, जिनके दिमाग में एक धर्मविशेष को मानना ही धर्म और उसे ना मानने वाले काफ़िर और काफ़िरों के खिलाफ़ ज़िहाद करना ही जन्नत का रास्ता है, यह बचपन से भरा गया हो, उनसे इस तरह के काम करवाना कुछ मुश्किल है क्या?
तो चित्र कुछ यूँ होगा, सीमा पार से १६-१७ साल के लड़कों का जत्था अब अक्सर यहाँ आता रहेगा। समुद्र, सड़क या फ़िर रेल के रास्ते। अपने साथ वे लायेंगे हथियारों का ज़खीरा। यहाँ आकर वे मचायेंगे कत्ल-ए-आम, अपने आप को बचाते हुए हर आते जाते को मारेंगे, जो दिखेगा उसे मारेंगे, हर पुलिसवाले को शहीद करते हुये वे तब तक गोलियाँ चलायेंगे, जब तक कि उनकी बंदुकों में एक गोली भी शेष रहेगी।
जैसे ही गोलियाँ खत्म होंगी, वे अपनी भोली सुरत दिखाते हुये आत्मसमर्पण कर देंगे। बस उनका काम खत्म।
या यह कहना ज्यादा बेहतर होगा कि - उनका मुश्किल काम खत्म।
यानि दुख भरे दिन बीते रे भैय्या, अब सुख आयो रेऽऽऽऽ!!
अब वे हमारी सरकार के शाही मेहमान बन कर रहेंगे। उन्हें सारी सुख सुविधायें मुहैय्या करवाई जाएंगी। जेल में उनके लिये खास सहुलियतें होगी। उनकी मदद करने के लिये हमारे ही यहाँ से कुछ 'खास वकील' तो रहेंगे ही, साथ ही साथ, कुछ 'खास मानवाधिकार संगठन' भी आ जायेंगे। जो 'उन' लड़ाकों, मेरा मतलब, उन लड़कों के नाबालिग होने की दुहाई दे दे कर सारी दुनियाँ को सर पर उठा लेंगे जिससे कि सरकार को मजबुर होकर उन 'मेहमानों' को 'बाल सुधारगृह' भिजवाना पडेगा। जहाँ से वे एक, दो या ज्यादा से ज्यादा तीन सालों में ही निकल कर वापस अपने देश जा सकें या फ़िर, उनके बाल सुधारगृह में किये गये 'अच्छे आचरण' को देखते हुए, अपने यहाँ की एक 'खास सेक्यूलर पार्टी' उन्हें यहीं बसने का आमंत्रण दे दें और राशनकार्ड/वोटरकार्ड इत्यादि भी बनवा दें। अरे भई, आखिर ये पार्टी वाले अपने वोट बैंक का खयाल नहीं रखेंगे तो इनको चुनाव कौन जितवाएगा??
एक एपीसोड खतम। कुछ समय बाद फ़िर यही कहानी दोहराई जायेगी - और बार-बार दोहराई जायेगी।
क्यों? कैसा लगा यह पढ कर?? अरे ज्यादा मत सोचिये, यदि हमारी 'सरकार' ऐसी ही * रहेगी तो कोई आश्चर्य नहीं, कि हमें ऐसे दिन भी देखने को मिलेंगे, वह भी जल्द ही।
* - लुंजपुंज, ढीली, नपुंसक, रीढविहीन, 'सेक्यूलर' - जो चाहिये वो लगाईये।
(पुन:प्रेषित)
Friday, April 24, 2009
पी.ए.एन. (PAN)
पी.ए.एन. यानि कि पर्मानेन्ट अकाउंट नम्बर, जैसा कि आप सबको पता ही होगा, आयकर विभाग की तरफ़ से आयकर दाताओं को जारी किया जाता है। और इसका उल्लेख अधिकतर सौदों में करना होता है।
जिन्हें इसके बारे में पुरी जानकारी चाहिये हो, वे भारत सरकार की इस साईट को खंगाल सकते हैं - www.incometaxindia.gov.in/PAN/Overview.asp.
मैं यहाँ इसके बारे में सिर्फ़ एक दो छोटी छोटी परंतु दिलचस्प बातें बताने वाला हूँ, जो कि मुझे अभी अभी ही पता चली है:
१. PAN हमेशा १० अक्षरों का ही होता है।
२. इसके पहले ५ अक्षर हमेशा अंग्रेजी के अक्षर (alphabets) होते हैं।
३. उसके बाद के ४ अक्षर हमेशा अंक (numbers) होते हैं।
४. आखिरी अक्षर पुन: अंग्रेजी का कोई अक्षर (alphabet) होता है।
५. और आखिर में, PAN का ४था (चौथा) अक्षर हमेशा अंग्रेजी का "P" अक्षर होता है।
नोट: PAN इतना जरूरी है कि इसके बिना हमारी कंपनी में अब से तनख्वाह ही नहीं मिलेगी। :)
जिन्हें इसके बारे में पुरी जानकारी चाहिये हो, वे भारत सरकार की इस साईट को खंगाल सकते हैं - www.incometaxindia.gov.in/PAN/Overview.asp.
मैं यहाँ इसके बारे में सिर्फ़ एक दो छोटी छोटी परंतु दिलचस्प बातें बताने वाला हूँ, जो कि मुझे अभी अभी ही पता चली है:
१. PAN हमेशा १० अक्षरों का ही होता है।
२. इसके पहले ५ अक्षर हमेशा अंग्रेजी के अक्षर (alphabets) होते हैं।
३. उसके बाद के ४ अक्षर हमेशा अंक (numbers) होते हैं।
४. आखिरी अक्षर पुन: अंग्रेजी का कोई अक्षर (alphabet) होता है।
५. और आखिर में, PAN का ४था (चौथा) अक्षर हमेशा अंग्रेजी का "P" अक्षर होता है।
नोट: PAN इतना जरूरी है कि इसके बिना हमारी कंपनी में अब से तनख्वाह ही नहीं मिलेगी। :)
Wednesday, April 22, 2009
टाटा नेनो - मेरी नज़र से
अभी हाल ही में टाटा नेनो देख कर आया। यह कार तस्वीरों में जितनी छोटी दिखती है, दरअसल उतनी छोटी है नहीं। चार लोगों को तो आराम से समा लेने वाली कार लगी मुझे। बैठने के बाद भी सर के उपर काफ़ी जगह बचती है (मैं ५'१०'' हूँ)।
बाकी कारों की तुलना में इसकी अंदरुनी सजावट उतनी स्टैण्डर्ड, खर्चीली नहीं दिखी - ऐसा मुझे लगा। सीटें काफ़ी सामान्य सी दिखी।
टेस्ट ड्राईव तो नहीं दी गई, सो चलाने में कैसी रह्गी इसमें संशय रहेगा।
पेट्रोल क्षमता सिर्फ़ १५ लिटर की है।
इसमें इंजन पीछे की तरफ़ लगा है, जो कि जानकारों की माने तो, काफ़ी अच्छा है - गाड़ी की स्थिरता, संतुलन और शक्ति के हिसाब से।
एक बात जो मुझे अजीब लगी कि आगे और पीछे के पहिये अलग अलग माप के हैं, और जो अतिरिक्त पहिया (stepni) दी गई है वह आगे के पहिये के माप का है। मुझे पता नहीं कि बाकी कारों में भी ऐसा ही होता है या नहीं।
यह तो रहे टाटा नेनो के बारे में मेरे विचार।
नेनो आपने देखी है क्या?
आपको कैसी लगी?
क्या किसी ने चला कर देखी है?
अपने अनुभव जरुर बताईए।
बाकी कारों की तुलना में इसकी अंदरुनी सजावट उतनी स्टैण्डर्ड, खर्चीली नहीं दिखी - ऐसा मुझे लगा। सीटें काफ़ी सामान्य सी दिखी।
टेस्ट ड्राईव तो नहीं दी गई, सो चलाने में कैसी रह्गी इसमें संशय रहेगा।
पेट्रोल क्षमता सिर्फ़ १५ लिटर की है।
इसमें इंजन पीछे की तरफ़ लगा है, जो कि जानकारों की माने तो, काफ़ी अच्छा है - गाड़ी की स्थिरता, संतुलन और शक्ति के हिसाब से।
एक बात जो मुझे अजीब लगी कि आगे और पीछे के पहिये अलग अलग माप के हैं, और जो अतिरिक्त पहिया (stepni) दी गई है वह आगे के पहिये के माप का है। मुझे पता नहीं कि बाकी कारों में भी ऐसा ही होता है या नहीं।
यह तो रहे टाटा नेनो के बारे में मेरे विचार।
नेनो आपने देखी है क्या?
आपको कैसी लगी?
क्या किसी ने चला कर देखी है?
अपने अनुभव जरुर बताईए।
Wednesday, April 15, 2009
हिंट: मैं हज़ारों में एक हूँ
पिछली पोस्ट
पाठकों की भारी मांग को देखते हुए मैं दो हिंट्स दे रहा हूँ:
१. हमारे परिवार में 45 हज़ार लोगों की "अचानक" वृद्धि हो गई है।
२. एक नीलामी में हमारे मुखिया ने "कुछ" खरीद लिया है।
और क्या कहुँ, आजकल अखबारों में बड़े सौदों में यही तो खबर चल रही है।
अभी तो पता नहीं कि 'हमारे' लिये यह अच्छा है या नहीं। देखते हैं आगे क्या होता है।
पाठकों की भारी मांग को देखते हुए मैं दो हिंट्स दे रहा हूँ:
१. हमारे परिवार में 45 हज़ार लोगों की "अचानक" वृद्धि हो गई है।
२. एक नीलामी में हमारे मुखिया ने "कुछ" खरीद लिया है।
और क्या कहुँ, आजकल अखबारों में बड़े सौदों में यही तो खबर चल रही है।
अभी तो पता नहीं कि 'हमारे' लिये यह अच्छा है या नहीं। देखते हैं आगे क्या होता है।
Tuesday, April 14, 2009
Wednesday, April 08, 2009
पक्षी की नकल
एक चैनल अपने किसी आने वाले कार्यक्रम के लिये अलग अलग खुबियों वाले कलाकार ढुँढ रहा था और अपने बीसवें माले के ऑफ़ीस में चयनकर्ता ऑडिशन ले रहा था।
एक कलाकार और चयनकर्ता के बीच की बातचीत:
कलाकार - "मैं किसी भी पक्षी की नकल उतार सकता हूँ।"
चयनकर्ता - "..पक्षियों की नकल उतारने वाले तो बहुत हैं, हमें और नहीं चाहिये। आप जा सकते हैं।"
"कोई बात नहीं, मैं कहीं और ट्राय करता हूँ" यह कहते हुए कलाकार खिड़की खोलकर बाहर उड़ गया।
एक कलाकार और चयनकर्ता के बीच की बातचीत:
कलाकार - "मैं किसी भी पक्षी की नकल उतार सकता हूँ।"
चयनकर्ता - "..पक्षियों की नकल उतारने वाले तो बहुत हैं, हमें और नहीं चाहिये। आप जा सकते हैं।"
"कोई बात नहीं, मैं कहीं और ट्राय करता हूँ" यह कहते हुए कलाकार खिड़की खोलकर बाहर उड़ गया।
Monday, April 06, 2009
आज के रियालिटी शो
स्टेज सजा हुआ है।
लाईट्स - धुँआ - ढेर सारे दर्शकों का शोर।
स्टेज के ठीक सामने करीब ७-८ निर्णायकगण बैठे हैं।
स्टेज संभाले हुए एंकर्स की जोड़ी।
और स्टेज पर एक कतार में खड़े हुए कई प्रतियोगी।
काफ़ी मेहनत(?) कर के ये प्रतियोगी यहाँ तक पहुँचे हैं। एक दूसरे के लिए काफ़ी उल्टा-सीधा बोल कर। एक दूसरे के खिलाफ़ खुब साज़िशें रच कर।
आज इनमें से कोई एक प्रतियोगी गेम से बाहर होने वाला है, यानि कि 'एलिमिनेट' होने वाला है। बाकी बचे हुए गेम जीत जाएंगे। रियालिटी टी।वी. की भाषा में 'ग्रेण्ड फ़िनालॆ' चल रहा है।
सारे जीते हुए प्रतियोगियों को बार बार टी।वी. पर आने का, खुब सारे टी.वी. विज्ञापन में काम करने का और ढेर सारा पैसा कमाने का सुनहरा मौका मिलेगा।
इन प्रतियोगियों से पुरे सत्र के दौरान काफ़ी सारे 'टास्क्स' करवाए गये हैं, जिनमें बहुत तरह के उट-पटांग करतब भी शामिल थे।
घर बैठे दर्शकों को भी खाली नहीं छोड़ा गया है, उनसे भारी मात्रा में 'एस।एम.एस' मंगवाए गये हैं, और इस सबसे आखिरी मुकाबले के दौरान फ़ैसला उन्हीं 'एस.एम.एस.' के आधार पर ही तो किया जाएगा। तो बस अब थोड़ी ही देर में, वह नाम लिया जायेगा जो आज इस प्रतियोगिता से बाहर होने वाला है।
एंकर्स सारे प्रतियोगियों से पुछ रहे है कि उन्होनें पुरे सत्र में क्या अच्छा किया और क्या बुरा किया। और इस 'शो' से बाहर जा कर उन्हें कैसा लगेगा?सभी का जवाब लगभग यही है कि - उन्होनें इसके लिये तैयारी तो बहुत की है, इस वक्त बाहर निकलेंगे तो बुरा तो लगेगा ही, मगर ये भी एक खेल है और इसे खेल की तरह ही लेंगे। और मानसिक रुप से पुरी तरह से तैयार हैं - चाहे फ़ैसला कुछ भी हो।
आखिरकार वो घड़ी आ गई जब वो नाम लिया गया। जो बाहर हो चुका था।
सुनते ही बचे हुये प्रतियोगियों में एकदम से हर्षोल्लास छा गया, मगर जो बेचारा बाहर हुआ है उसकी तो रुलाई फ़ुट पड़ी है।बेचारा फ़ूट-फ़ूट कर रोए जा रहा है मानो कि जिन्दगी ही खतम हो गई हो।तब तक उसके बाकी के साथी भी उसके पास आ चुके हैं। उसे गले लगा कर दिलासा दे रहे हैं। निर्णायकों में से भी कुछ-एक की आँखों में पानी साफ़ दिख रहा है।
कैमेरा बारी बारी एंकर्स, प्रतियोगियों, उनके संबंधियों, निर्णायकों, और दर्शकों के उपर से ज़ूम-इन, ज़ूम-आउट हो रहा है।
कट!!
कैसा लगा आपको ये एकदम ओरिजिनल दृश्य??जोकि आजकल के हर दूसरे-तीसरे टी।वी। सीरियल में आपको दिख रहा है। पहचाना कि नहीं?
चाहे कोई नाच प्रतियोगिता हो, या कोई गाने की, चुटकुले सुनाने की, एक साथ रहने की ही क्यों ना हो।हर जगह, हर सीरियल में यही लगता है कि 'स्क्रिप्ट' तो वही है, बस, स्टेज और कलाकार बदले हुये हैं। यहाँ तक कि डायलाग्स तक वही सुने सुनाए लगते हैं।
कट!!
अब जरा सोचिए, यही 'फ़ंडा' हर जगह इस्तेमाल होने लगे तो? लाईफ़ में कितना मजा आ जायेगा, नहीं क्या? हर कोई एस।एम.एस. करता दिखेगा।
१. भारतीय क्रिकेट टीम के सिलेक्शन में-
२. नेता चुनने में-
३. स्कूल के एडमिशन में-
४. शादी के लिये 'योग्य' वर/वधु ढुँढने में-
५. इन्हीं प्रतियोगिताओं के लिये 'निर्णायक' चुनने के लिये-
६. घरेलु नौकरों के लिये, या फ़िर उन नौकरों के मालिक/मालकिन चुनने के लिये-
अरे! अब क्या सब मैं ही सोचुंगा?
कुछ आप भी तो सोचिये....!
सोच कर हमें भी बताएं तो हमें और अच्छा लगेगा।
लाईट्स - धुँआ - ढेर सारे दर्शकों का शोर।
स्टेज के ठीक सामने करीब ७-८ निर्णायकगण बैठे हैं।
स्टेज संभाले हुए एंकर्स की जोड़ी।
और स्टेज पर एक कतार में खड़े हुए कई प्रतियोगी।
काफ़ी मेहनत(?) कर के ये प्रतियोगी यहाँ तक पहुँचे हैं। एक दूसरे के लिए काफ़ी उल्टा-सीधा बोल कर। एक दूसरे के खिलाफ़ खुब साज़िशें रच कर।
आज इनमें से कोई एक प्रतियोगी गेम से बाहर होने वाला है, यानि कि 'एलिमिनेट' होने वाला है। बाकी बचे हुए गेम जीत जाएंगे। रियालिटी टी।वी. की भाषा में 'ग्रेण्ड फ़िनालॆ' चल रहा है।
सारे जीते हुए प्रतियोगियों को बार बार टी।वी. पर आने का, खुब सारे टी.वी. विज्ञापन में काम करने का और ढेर सारा पैसा कमाने का सुनहरा मौका मिलेगा।
इन प्रतियोगियों से पुरे सत्र के दौरान काफ़ी सारे 'टास्क्स' करवाए गये हैं, जिनमें बहुत तरह के उट-पटांग करतब भी शामिल थे।
घर बैठे दर्शकों को भी खाली नहीं छोड़ा गया है, उनसे भारी मात्रा में 'एस।एम.एस' मंगवाए गये हैं, और इस सबसे आखिरी मुकाबले के दौरान फ़ैसला उन्हीं 'एस.एम.एस.' के आधार पर ही तो किया जाएगा। तो बस अब थोड़ी ही देर में, वह नाम लिया जायेगा जो आज इस प्रतियोगिता से बाहर होने वाला है।
एंकर्स सारे प्रतियोगियों से पुछ रहे है कि उन्होनें पुरे सत्र में क्या अच्छा किया और क्या बुरा किया। और इस 'शो' से बाहर जा कर उन्हें कैसा लगेगा?सभी का जवाब लगभग यही है कि - उन्होनें इसके लिये तैयारी तो बहुत की है, इस वक्त बाहर निकलेंगे तो बुरा तो लगेगा ही, मगर ये भी एक खेल है और इसे खेल की तरह ही लेंगे। और मानसिक रुप से पुरी तरह से तैयार हैं - चाहे फ़ैसला कुछ भी हो।
आखिरकार वो घड़ी आ गई जब वो नाम लिया गया। जो बाहर हो चुका था।
सुनते ही बचे हुये प्रतियोगियों में एकदम से हर्षोल्लास छा गया, मगर जो बेचारा बाहर हुआ है उसकी तो रुलाई फ़ुट पड़ी है।बेचारा फ़ूट-फ़ूट कर रोए जा रहा है मानो कि जिन्दगी ही खतम हो गई हो।तब तक उसके बाकी के साथी भी उसके पास आ चुके हैं। उसे गले लगा कर दिलासा दे रहे हैं। निर्णायकों में से भी कुछ-एक की आँखों में पानी साफ़ दिख रहा है।
कैमेरा बारी बारी एंकर्स, प्रतियोगियों, उनके संबंधियों, निर्णायकों, और दर्शकों के उपर से ज़ूम-इन, ज़ूम-आउट हो रहा है।
कट!!
कैसा लगा आपको ये एकदम ओरिजिनल दृश्य??जोकि आजकल के हर दूसरे-तीसरे टी।वी। सीरियल में आपको दिख रहा है। पहचाना कि नहीं?
चाहे कोई नाच प्रतियोगिता हो, या कोई गाने की, चुटकुले सुनाने की, एक साथ रहने की ही क्यों ना हो।हर जगह, हर सीरियल में यही लगता है कि 'स्क्रिप्ट' तो वही है, बस, स्टेज और कलाकार बदले हुये हैं। यहाँ तक कि डायलाग्स तक वही सुने सुनाए लगते हैं।
कट!!
अब जरा सोचिए, यही 'फ़ंडा' हर जगह इस्तेमाल होने लगे तो? लाईफ़ में कितना मजा आ जायेगा, नहीं क्या? हर कोई एस।एम.एस. करता दिखेगा।
१. भारतीय क्रिकेट टीम के सिलेक्शन में-
२. नेता चुनने में-
३. स्कूल के एडमिशन में-
४. शादी के लिये 'योग्य' वर/वधु ढुँढने में-
५. इन्हीं प्रतियोगिताओं के लिये 'निर्णायक' चुनने के लिये-
६. घरेलु नौकरों के लिये, या फ़िर उन नौकरों के मालिक/मालकिन चुनने के लिये-
अरे! अब क्या सब मैं ही सोचुंगा?
कुछ आप भी तो सोचिये....!
सोच कर हमें भी बताएं तो हमें और अच्छा लगेगा।
Sunday, April 05, 2009
एक दीवाना नेट पे...
एक दीवाना नेट पे,
वर्डप्रेस पे या ब्लागर पे,
लिखने का बहाना ढुंढता है, छपने का बहाना ढुंढता है।
एक दीवाना...
इस हिन्दी ब्लागिंग की दुनियाँ में अपना भी कोई ब्लाग होगा,
अपने पोस्टों पर होंगी टिप्पणियाँ, टिप्पणियों पे अपना नाम होगा,
देवनागरी के यूनिकोड फ़ोण्टों में....
देवनागरी या देवनगरी...?
देवनागरी के यूनिकोड फ़ोण्टों में लिखने का जतन वो ढुंढता है,
ढुंढता है,
लिखने का बहाना ढुंढता है, छपने का बहाना ढुंढता है।
एक दीवाना...
एक दीवाना नेट पे,
वर्डप्रेस पे या ब्लागर पे,
लिखने का बहाना ढुंढता है, छपने का बहाना ढुंढता है।
एक दीवाना...
जब सारे हिन्दी में...
सारे? और हिन्दी में?
जब सारे हिन्दी में लिखते हैं,
सारा नेट हिन्दी हो जाता है,
सिर्फ़ इक बार नहीं फ़िर वो लिखता,
हर बार लिखता जाता है,
पल भर के लिये...
पल भर के लिये...
पल भर के लिये किसी ब्लागिंग का अवार्ड भी जीतना चाहता है,
चाहता है,
लिखने का बहाना ढुंढता है, छपने का बहाना ढुंढता है।
एक दीवाना...
एक दीवाना नेट पे,
वर्डप्रेस पे या ब्लागर पे,
लिखने का बहाना ढुंढता है, छपने का बहाना ढुंढता है।
एक दीवाना...
वर्डप्रेस पे या ब्लागर पे,
लिखने का बहाना ढुंढता है, छपने का बहाना ढुंढता है।
एक दीवाना...
इस हिन्दी ब्लागिंग की दुनियाँ में अपना भी कोई ब्लाग होगा,
अपने पोस्टों पर होंगी टिप्पणियाँ, टिप्पणियों पे अपना नाम होगा,
देवनागरी के यूनिकोड फ़ोण्टों में....
देवनागरी या देवनगरी...?
देवनागरी के यूनिकोड फ़ोण्टों में लिखने का जतन वो ढुंढता है,
ढुंढता है,
लिखने का बहाना ढुंढता है, छपने का बहाना ढुंढता है।
एक दीवाना...
एक दीवाना नेट पे,
वर्डप्रेस पे या ब्लागर पे,
लिखने का बहाना ढुंढता है, छपने का बहाना ढुंढता है।
एक दीवाना...
जब सारे हिन्दी में...
सारे? और हिन्दी में?
जब सारे हिन्दी में लिखते हैं,
सारा नेट हिन्दी हो जाता है,
सिर्फ़ इक बार नहीं फ़िर वो लिखता,
हर बार लिखता जाता है,
पल भर के लिये...
पल भर के लिये...
पल भर के लिये किसी ब्लागिंग का अवार्ड भी जीतना चाहता है,
चाहता है,
लिखने का बहाना ढुंढता है, छपने का बहाना ढुंढता है।
एक दीवाना...
एक दीवाना नेट पे,
वर्डप्रेस पे या ब्लागर पे,
लिखने का बहाना ढुंढता है, छपने का बहाना ढुंढता है।
एक दीवाना...
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