क्यों ना वे ऐसा करें, कि अब से सिर्फ़ नाबालिगों को ही भर्ती करें?
वैसे भी, जिनके दिमाग में एक धर्मविशेष को मानना ही धर्म और उसे ना मानने वाले काफ़िर और काफ़िरों के खिलाफ़ ज़िहाद करना ही जन्नत का रास्ता है, यह बचपन से भरा गया हो, उनसे इस तरह के काम करवाना कुछ मुश्किल है क्या?
तो चित्र कुछ यूँ होगा, सीमा पार से १६-१७ साल के लड़कों का जत्था अब अक्सर यहाँ आता रहेगा। समुद्र, सड़क या फ़िर रेल के रास्ते। अपने साथ वे लायेंगे हथियारों का ज़खीरा। यहाँ आकर वे मचायेंगे कत्ल-ए-आम, अपने आप को बचाते हुए हर आते जाते को मारेंगे, जो दिखेगा उसे मारेंगे, हर पुलिसवाले को शहीद करते हुये वे तब तक गोलियाँ चलायेंगे, जब तक कि उनकी बंदुकों में एक गोली भी शेष रहेगी।
जैसे ही गोलियाँ खत्म होंगी, वे अपनी भोली सुरत दिखाते हुये आत्मसमर्पण कर देंगे। बस उनका काम खत्म।
या यह कहना ज्यादा बेहतर होगा कि - उनका मुश्किल काम खत्म।
यानि दुख भरे दिन बीते रे भैय्या, अब सुख आयो रेऽऽऽऽ!!
अब वे हमारी सरकार के शाही मेहमान बन कर रहेंगे। उन्हें सारी सुख सुविधायें मुहैय्या करवाई जाएंगी। जेल में उनके लिये खास सहुलियतें होगी। उनकी मदद करने के लिये हमारे ही यहाँ से कुछ 'खास वकील' तो रहेंगे ही, साथ ही साथ, कुछ 'खास मानवाधिकार संगठन' भी आ जायेंगे। जो 'उन' लड़ाकों, मेरा मतलब, उन लड़कों के नाबालिग होने की दुहाई दे दे कर सारी दुनियाँ को सर पर उठा लेंगे जिससे कि सरकार को मजबुर होकर उन 'मेहमानों' को 'बाल सुधारगृह' भिजवाना पडेगा। जहाँ से वे एक, दो या ज्यादा से ज्यादा तीन सालों में ही निकल कर वापस अपने देश जा सकें या फ़िर, उनके बाल सुधारगृह में किये गये 'अच्छे आचरण' को देखते हुए, अपने यहाँ की एक 'खास सेक्यूलर पार्टी' उन्हें यहीं बसने का आमंत्रण दे दें और राशनकार्ड/वोटरकार्ड इत्यादि भी बनवा दें। अरे भई, आखिर ये पार्टी वाले अपने वोट बैंक का खयाल नहीं रखेंगे तो इनको चुनाव कौन जितवाएगा??
एक एपीसोड खतम। कुछ समय बाद फ़िर यही कहानी दोहराई जायेगी - और बार-बार दोहराई जायेगी।
क्यों? कैसा लगा यह पढ कर?? अरे ज्यादा मत सोचिये, यदि हमारी 'सरकार' ऐसी ही * रहेगी तो कोई आश्चर्य नहीं, कि हमें ऐसे दिन भी देखने को मिलेंगे, वह भी जल्द ही।
* - लुंजपुंज, ढीली, नपुंसक, रीढविहीन, 'सेक्यूलर' - जो चाहिये वो लगाईये।
(पुन:प्रेषित)
Monday, April 27, 2009
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