Thursday, November 30, 2006
गहरा षडयंत्र
आज (इन्फ़ैक्ट - कल, टू बी मोर प्रिसाईज़) मेरे साथ हुआ, हो सकता है आगे भी किसी और के साथ ऐसा हो जाये, सो पहले ही आपको आगाह कर देना चाहता हूँ।
आपको पता ही होगा कि आजकल कोई भी मशहूर चोर, चोरी के बाद मौका-ए-वारदात पर अपना "हस्ताक्षर" छोड़ जाता है ताकी लोग जान जायें कि ये किसकी "करतूत" है (अब ये भी नहीं पता तो भई "धूम २" देख लो) ठीक इसी तर्ज पर आजकल ब्लाग जगत में भी एक इसी तरह का क्रिमिनल खुल्ले आम घुम रहा है।
उस "क्राईम मास्टर गोगो" ने भी अपना एक स्टाईल विकसित कर लिया है। वैसे वो "क्रिमिनल" है तो काफ़ी होशियार। किसी का भी गला इस तरह से काटता है कि कटने वाले को पता भी नहीं चलता कि कब गर्दन कट गई। क्या कहा? यकीं नहीं होता, हमारे आर्काईव से यह खबर पढें। अब तो आया ना यकीं?
तो मैं बता रहा था कि किस तरह से इस मास्टर माईंड क्रिमिनल ने अपना टेरर (आतंक) फ़ैलाया हुआ है, कि अगर कोई क्राईम किसी छोटे मोटे चोर ने भी किया हो तो पहला "शक" डायरेक्ट और बिलाशक "क्राईम मास्टर गोगो" पर ही चला जाता है। और वो ही सारा का सारा "क्रेडिट" ले जाता है।
अब आप ही कहो, कोई भला मानुष, दिन भर की हाड़-तोड़ मेहनत के बाद, कुछ नेक काम करे, और उस पर भी उसका क्रेडिट कोई भलता ही ताड ले, तो दिल दुखेगा कि नहीं? बताओ..! बताओ..!! टेल ..टेल..!!
अब मैं यहाँ क्राईम के शिकार और क्रिमिनल का अता पता तो नहीं बताता...! मगर हाँ, क्राईम सीन १ और क्राईम सीन २ पर जरुर ले चलता हूँ. इसके पहले कि कोई आ के सबूत मिटा जाये, आप सब गवाहों की लिस्ट में आ जाओ।
जहाँ तक षडयंत्र की बात है - वो ऐसा है कि - बड़ी मछली छोटी मछलियों को ऐसे ही तो खा जाती है - जब मार्केट में बड़े बड़े लोग ही सारे क्राईम करेंगे तो हम जैसे छोटे-मोटे उठाईगिरों का पता नहीं क्या होगा? आज एल मामूली सी टिप्पणी के जरिये नाम चुरा लिया गया है, कल हो सकता है मेरी पोस्ट ही तड जाये!! आप लोग भी होशियार रहियेगा।
जाने क्या होगा रामा रेऽऽऽऽ ....जाने क्या होगा मौला रेऽऽऽऽऽऽ
वैसे थोड़ा बहुत करमचंद और शर्लाक होम्स बनने का मौका दे दिया है आपको, फ़िर भी यदि नहीं समझ पाओ तो हमसे पुछना बाद में.
Tuesday, November 28, 2006
घाटे की बाजी??
अव्वल तो हम किसी फ़िल्लम के बारे में कभी लिखते नहीं...
मगर आज अमित का लेख पढ कर हमने सोचा कि भई विजय, जब लोगबाग फ़िल्मों की बधिया उखाड़ने के लिये उनके नाम का मतबल भी गूगल पर ढूँढ रहे हैं तो जरूर कोई ना कोई बात तो होगी फ़िल्लम में...!!
तपाक से हम भी गूगला -दिये..! अब कुछ विशेष तो ढुँढना नहीं था, सो, जो हाथ लगा परोसे दे रहें हैं.
हमें पता चला कि "जेम्स बाण्ड" सीरिज़ में इसी नाम से पहले भी एक फ़िल्लम आ चुकी है वो भी १९६७ में, और मजे की बात, बिल्कुल इसी तरह की "साधारण" रही थी.
याने अब ये नई वाली जब हमनाम हुई तो साथ ही साथ हमभाग्य भी हो गई.
उसके हीरो थे: पीटर सेल्लर.
आगे, बाकी का किसी को पढना हो तो यहाँ देखें..हम ना करेंगे अंग्रेजी का हिन्दी.!! हाँऽऽ!!
Thursday, November 02, 2006
सावधान! एक खतरनाक बीमारी!!
जिस किसी को भी ये बीमारी लग जाये, समझ लो उसकी तो वाट लग गई..!!
बीमारी के लक्षण? मैं बताता हूँ ना -
- अंतर्जाल पर जरुरत से ज्यादा भ्रमण।
- ज्यादा से ज्यादा जालस्थलों को कम से कम समय में देखने की लालसा।
- ब्लाग्स (चिठ्ठों) पर अधिक मेहरबानी।
- उसमें भी हिन्दी चिठ्ठों पर कुछ खास नज़र-ए-इनायत।
- लगभग हर चिठ्ठे/जालस्थल से कुछ ना कुछ टीप (कॉपी) कर एक नोटपेड में मय लेखक के नाम से चेपना (पेस्ट करना)।
- टिप्पणियों को और तस्वीरों को भी नहीं छोड़ना।
- अपना अमुल्य समय देकर, जमा की गई जानकारी को संपादित करना।
- और अधिक समय बिगाड कर लिखे हुये / संपादित किये हुये पर कलरबाजी (फ़ारमेटिंग) करना।
- और अंततः इस प्रकार तैयार किये गये लेख को इस उम्मीद के साथ प्रकाशित कर देना कि लोग उससे लाभ उठायेंगे।
- (और भी बहुत सारे लक्षण हैं - उपरोक्त तो महज उनमें से प्रमुख ही हैं)
- देबाशीष (काफ़ी दिनों से बीमारी के लक्षण दबे हुये हैं - लगता है ठीक हो रहे हैं)
- अनुप शुक्ला (फ़्रिक्वेंट फ़्लायर हैं, बीमारी हायर स्टेज पर है)
- जितेन्द्र चौधरी (मजे मजे में बीमारी के किटाणु छू गये लगता हैं)
- समीर लाल (विशिष्ट कलात्मक रोगी, ये रोग फ़ैलाने में काफ़ी माहिर हैं)
- राकेश खंडेलवाल (सिरीयसली और रेग्युलरली बीमार)
- संजय बेंगाणी (छोटे छोटे दौरे पडते हैं)
- (और भी काफ़ी बीमार हैं, सूची यहाँ है)
अभी अभी विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि हमारे प्रिय मित्र "सागरचंद नाहर" भी इसी बीमारी के लपेटे में आ गये हैं, और ये रोग लगा बैठे हैं.
तो मित्रों ये बिमारी एक संक्रामक रोग है, और हमें अपने प्रियजनों को इस व्याधि से पीडित होने से बचाना है।
अतः अपने आस पास देखिये, अगर आपको किसी में भी इसके थोडे भी लक्षण दिखते हैं तो तुरंत बचाव के उपाय कीजिये।
हाँ, उस दौरान खुद को संक्रमण से बचाय रखना आपकी खुद की जिम्मेदारी है।
पुराने रोगी अक्सर ये बड़बड़ाते पाये जाते हैं:
- ...बहुत अच्छा लिखते हो...कुद पडो मैदान में..
- ...निमंत्रण भेजते हैं...
- ..क्या लिखते हो? एक छोटा सा काम है...
- ...एक सामाजिक काम है...करोगे क्या?...
अरे! इस बीमारी का नाम तो सुनते जाइये - इसका नाम है - चिठ्ठाचर्चा !!
आपका शुभचिंतक!
(यकिन मानिये - अभी तक तो इस रोग के लक्षण छू के भी नहीं गये हमें)
Saturday, October 21, 2006
क्या दिवाली? क्या ईद?
हाँ भई, पता है पता है, अब आप लोग तो यही कहेंगे कि -अरे खुरामा खुरामा शादी हुई है..और ये विचार? है ना?
तो जनाब बात ये है कि (शादी के बाद) पहली पहली दिवाली है...तो सारे परिवार के साथ खुशियाँ मनाते, दोस्तों के बीच हुडदंग होता, मगर कहाँ?? घर से कोसों दूर...पड़े हैं अलग-थलग किसी और दुनियाँ में. अकेले-अकेले (हाँ यार..! मैडम तो है, पर मैं - हम दोनों अकेले-अकेले हैं - ऐसा कह रहा हूँ).
दिवाली के पहले की साफ़ सफ़ाई, फ़िर घर की सजावट - फ़ूलों के हार, लाईटिंग वगैरह, फ़िर दिये बाती, नये कपडे, आतिशबाजी, पटाखे, आस पड़ोस में मिलने जुलने जाना, दोस्तों रिश्तेदारों का अपने घर आना.
यह पहली दिवाली होगी जब- हम अपने परिवार के साथ नहीं हैं.
इसके पहले तो ऐसा होता था कि - जहाँ भी होते थे, जैसे तैसे कर के, दिवाली के समय घर पहुँच ही जाते थे. तो इस बार, ऐसा कुछ नहीं है.
और फ़िर ईद! आहा! सिवैयां...शीर खुरमा डली हुई सिवैयां!! अभी तक तो कहीं से इस बार ऐसा कुछ होता नज़र नहीं आ रहा. :(
वैसे, वीकेण्ड जोड़ कर चार दिन की छुट्टियाँ तो हैं - पर वो क्या है ना कि - नंगा नहायेगा क्या, निचोडेगा क्या.
अमा यार आने जाने में ही चार दिन निकल जायेंगे हैं - हाँ कहने को जरुर सिंगापुर "पास" में है.
अब हम यह जरुर सोचते हैं कि काश हमारा परिवार बंगलौर या चेन्नई या फ़िर हैदराबाद में होता, कम से कम डायरेक्ट फ़्लाईट तो होती. अब इंदौर जाना हो तो पहले मुंबई उतरो, फ़िर अगली सुबह इंदौर की फ़्लाईट पकडो.
तो जनाब, आपको बताया जरुर जायेगा कि सिंगापुरी दिवाली कैसी रही - क्या कहा? कब?? अरे यार दिवाली होने तो दो. :)
तब तक तो आप, हमारी दोनों की तरफ़ से दिपावली और ईद की हार्दिक शुभकामनाएँ तो रख ही लीजिए.
मनाएं पर्व,
घर आई घड़ियाँ
है खुशियों की.
दिवाली! ईद!
लो शुभकामनाएँ,
हम दोनों की.
-
प्रणोति व विजय वडनेरे
सिंगापुर.
२१ अक्तुबर २००६
Thursday, October 12, 2006
किस्सा-ए-डुप्लीकेट
खबर है ना आपको?
क्या कहा?? नहीं?? - अरे आजकल एक विशेष टिप्पणीकर्ता, ब्लाग मार्केट में चल रहा है (चल रहा है या रही है -अब इतनी तो तफ़्सील नहीं है हमारे पास), और उनका काम क्या है कि - लोगों के ब्लाग्स पर जाते हैं (पढते है कि नहीं -ये मत पुछना), और बकायदा अपना निशान टिप्पणी के रुप में छोड़ आते हैं.
अब इनके "शिकार लोग" परेशान भी हैं और कुछ (मन ही मन) खुश भी.
खुश इसलिये कि - वाह! चलो ब्लाग पर टिप्पणी तो आई..
परेशान इसलिये कि - वो जनाब नाम किसी और का इस्तेमाल करते हैं; और टिप्पणी कुछ बेहुदा सी करते हैं.
याने एक पंथ दो शिकार - दो कैसे? - अरे जिसके ब्लाग पर टिप्पणी मारी और जिसके नाम से टिप्पणी मारी.
इन्ही दूसरे टाईप के "शिका र्स" में एक अपने अदद जीतू भैया भी हैं. उनका गम तो और ज्यादा है - अब उन्हे हर ब्लाग पर ज्यादा से ज्यादा चक्कर लगाने पडते हैं और सफ़ाई देते रहना पडती है कि -"वो मैं नहीं था"!!
अंत में थक हार के उन्होने चिठ्ठाकारों के लिये अनाउंस कर दिया कि - "..भाई लोगों देख लो, ऐसा ऐसा हो रहा है...इसमें कोई विदेशी हाथ लगता है.."!
मगर अपने जासूसी / खुरापाती दिमाग में अचानक एक बिजली सी कौंधी कि -
कहीं ऐसा तो नहीं कि - वैसी मेल लिखने वाले खुद ही असली जीतू भैया ना हो....??
हो सकता हो कि "उस"को अपने जीतू भैया पर तरस आ गया हो और ऐसी उसकी तमन्ना हो कि- जीतू भैया- बेदाग रहें.
मगर कुछ भी हो - अपराध तो अपराध ही है - और सजा / प्रायश्चित का फ़ैसला सुनाने का सर्वाधिकार न्यायपालिका के हाथ में है, तो चलिये ढुँढते (यानि आप और हम खेलते) हैं कि - " अपराधी कौन?"
नही....वो क्या है ना कि अब असली नकली का पता तो लगाना ही पडेगा ना..??
तो जासूस विजय उर्फ़ "लोकल शर्लाक होम्स" के फ़ंडे ये है कि -
- सबसे पहले तो हर एक को शक की निगाह से देखो (अगर आपको पुरानी फ़िल्मों के खलनायक के.एन.सिंह या प्राण की तरह एक भौंह टेढी करते आता है तो और बेहतर).
- फ़रीयादी को खुद -पाक साफ़ होने का सबूत देने को कहो.
- फ़रीयादी को बोलो की 'सो कॉल्ड' आरोपी को पकड़ लाओ या सुराग दो, तो (हमें) आसानी रहेगी (उसे सजा दिलाने/पकड़ने में).
- सारे असली लोगों के चेहरे/ब्लाग्स पर मार्क लगा दिया जाय (बकौल फ़िल्म अंदाज अपना अपना).
- असली ब्लागर्स के कम से कम ३ फ़ोटो (एक सामने, एक दाँयें और एक बाँये से) खींच कर बाकी सारे ब्लागर्स में डिस्ट्रीब्युट कर दिये जायें, और ये ताकीद कर दी जाये कि उन फ़ोटो से मिलते जुलते चेहरे वाला कोई भी व्यक्ति उनके ब्लाग पर टिप्पणी करता पाया गया तो कंट्रोल रूम में तत्काल संपर्क करे.
- अगर ये कोई बहुत ही चालाक अपराधी है तो फ़िर उसे पकडने का सरल तरीका ये है कि उसके किये गये अपराधों पर शिकार अपना खुद का अधिकार जताते चले. इससे अपराधी के ईगो को ठेस पहुँचेगी और वो या तो अपने आप सामने आ जायेगा या फ़िर कोई ऐसा आत्मघाती कदम उठायेगा जिससे वो बेनकाब हो जायेगा.
- सारे ब्लागर्स अपने अपने ब्लाग पर नजर गडा के बैठें, और जैसे ही कोई टिप्पणी आये, तुरंत सबको खबर करे और कन्फ़र्म कर ले. और जो भी "अं..आं...म्म्म्म..." इस तरह से बोलता नजर आये तो उसे "प्राईम सस्पेक्ट" की श्रेणी में डाल लिया जाय.
- सारे ब्लागर्स टिप्पणियों को सीरियसली लेना ही छोड़ दें, "जो चाहे आये...जो चाहे टिप्पणी करे हमारी बला से.." - टाईप का रुख इख्तियार कर लें. इल्लीगल टिप्पणी करने वाला अपने आप बोर हो कर कन्नी काट लेगा.
- अपने अपने ब्लाग्स सेक्युर कर के रखें - खुद लिखें और खुद पढें - और लगे तो (अगर पसंद आये तो) खुद ही टिप्पणी दें (टिप्पणी पर टिप्पणी भी खुद ही दें) - ना होगा बाँस ना बजेगी बाँसुरी.
- कुछ नुस्खे "फ़ुरसतिया" जी के यहाँ से उधार लिये (ताडे) हुये हैं:
- सिर्फ़ एक ही ब्लाग ना रखें, एक ही ब्लाग की २ - ३ कापियाँ रखें, जैसे ही किसी एक पर फ़र्जी टिप्पणी दिखे तो, धडाक से दूसरे पर शिफ़्ट हो लो.
- जब एक चुर्मुक सी टिप्पणी से इतना डर, तो "भैय्ये..ब्लाग लिखते ही काहे हो??"
- अपने ब्लाग में कविताओं, छंदो, हाईकुओं, कुंडलियों के अलावा कुछ लिखो ही मत. और "हर आम-औ-खास" को सूचित कर दो कि -हम टिप्पणी भी उसी फ़ारमेट में स्वीकारेंगे. जो "सच्चा ब्लागर/टिप्पणीकर्ता" होगा वो ही टिप्पणी करने की माथाफ़ोड़ी करेगा.
आगे और ध्यान आयेंगे तो "सर्व साधारण" को सूचित किया जायेगा.
(ही.. ही.. ही ... मैं तो बस्स...ऐसे ही ...सोऽऽऽऽच रहाऽऽऽ था.)
टीप १: USA: उल्लासनगर सिंधी एसोसिएशन (कभी बचपन में सुना था)
टीप २: फ़र्जी टिप्पणीबाज से अपेक्षा है कि वो यहाँ भी पधारे (खातिरदारी का पूरा इंतजाम है)
Thursday, September 07, 2006
आईये, आज "वन्दे मातरम्" गाएं।
वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
शस्य श्यामलां मातरम् ।
शुभ्र ज्योत्स्न पुलकित यामिनीम
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् ।
सुखदां वरदां मातरम् ॥ वन्दे मातरम्...
सप्त कोटि कन्ठ कलकल निनाद कराले
निसप्त कोटि भुजैब्रुत खरकरवाले
के बोले मा तुमी अबले
बहुबल धारिणीं नमामि तारिणीम्
रिपुदलवारिणीं मातरम् ॥ वन्दे मातरम्...
तुमि विद्या तुमि धर्मं, तुमि ह्रदि तुमि मर्मं
त्वं हि प्राणाः शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
ह्रदये तुमि मा भक्ति,
तोमारे प्रतिमा गडि मंदिरे मंदिरे ॥ वन्दे मातरम्...
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदल विहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलां मातरम् ॥ वन्दे मातरम्...
श्यामलां सरलां सुस्मितां भुषिताम्
Tuesday, September 05, 2006
चोर पर मोर!!
आपने बॉलीवुड को हॉलीवुड की नकल करते तो कई बार देखा होगा, पर आज ये देखिये, जब अपने यहाँ की नकल होती है तो क्या नया रंग उभर कर आता है.
हँसते हँसते पेट में बल पड़ जायेंगे, थोड़े ढिले-ढाले कपड़े पहन कर बैठियेगा, वरना बाद में कहेंगे कि 'बताया नहीं था' ... हाँ..!!
Sunday, September 03, 2006
क्या ताजमहल वाकई हिन्दु मंदिर था?
Friday, September 01, 2006
कहाँ गये वो दोस्त..!!
कहाँ गये वो दोस्त, जो हरदम याद किया करते थे...,
जान - बुझकर न सही, मगर भूले से भी मेल किया करते थे...,
खुशी और गम में हमारा साथ दिया करते थे...,
लगता है सब खो गया है ... प्रोजेक्ट्स की डेड्लाइन्स में...,
न अपनी न हमारी, जाने किसकी यादों में...,
ज़िन्दगी को भुला चुके हैं, नौकरी की आड में...,
हरदम फ़ँसे रहते है, अपने पी.एम. के जाल में...,
कभी आओ मिलो हमसे, बैठकर बाते करो...,
दर्द - ए- दिल अपना कहो, हाले - ए - दिल हमारा सुनो...,
क्या रंजिश, क्या है शिकवा, क्या गिला और क्या खता... ;
हम भी जाने तुम भी जानो, आखिर क्या मंज़र क्या माजरा...,
बस भी करो अब...
कह भी दो, अपने दिल का हाल,
क्या करोगे खामोश रहकर
जो चली गई ये ज़िन्दगी, चला गया ये कारवां...;
जागो प्यारे...! अब बस भी करो,
सिर्फ़ काम नही, थोडा ज़िन्दगी को भी महसूस करो...,
खाओ, पिओ, हँसो, गाओ, झूमों, नाचो, मौज करो...,
हकीकत में ना भले पर कम - से - कम ...
.. भूल से ही सही हमें याद तो करो...हम तो हरदम देंगे यही दुआ आपको..
याद न भी करो तो क्या, चलो, एन्जॉय ही करो।
Tuesday, August 29, 2006
गोलगट्टा लकड़पट्टा दे दनादन ले दनादन
आईये देखिये विचित्र किंतु सत्य टेबिल टेनिस.
Friday, August 18, 2006
सॉफ़्टवेअर इंजीनियर आखिर सॉफ़्टवेअर इंजीनियर ही होते हैं
पहला: ..फ़िर...फ़िर ..मैने उसे अपनी बाहों में उठाया और पलंग पर अपने नये लैपटॉप के बगल में लिटा दिया...
Tuesday, August 15, 2006
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें
उन धन्य पुण्यात्माओं की याद में...
जिन्होनें अपनी स्वतंत्रता के लिये शहादत दी.
हज़ारों नर-नारियों ने हँसते हँसते अपने प्राण न्योछावर कर दिये ,
ताकि तुम , जिन्हे न वे जानते थे और ना कभी जान पायेंगे,
स्वतंत्रतापूर्वक यह पढ सको,
स्वतंत्रता वह वस्तु है जिसे संसार की सारी संपत्ति भी खरीद नहीं सकती ,
वह पाई जा सकती है सिर्फ़ और सिर्फ़ वीरों के लहू से,
और आज, हम उन वीरों के लिये थोड़ी सी प्रार्थना कर सकते हैं जिन्होने हमारे लिये अपना बलिदान दिया ,
आज, १५ अगस्त २००६ को,
आओ, हम उन्हें याद करें और नमन करें जो हमारी खातिर शहीद हो गये.
॥ जय हिन्द ॥
॥ भारत माता की जय ॥
Wednesday, July 19, 2006
दिल फ़िर दिमाग पर भारी पड़ गया..!!
Processor and Core Logic
-Intel® Centrino® Duo mobile technology
System Memory
-1GB of DDR II RAM, upgradeable to 4GB using dual soDIMM modules
Display/Graphics
-14.1" WXGA Acer CrystalBrite™ TFT LCD, 1280 x 800 pixel resolution, 16.7 million colours, 16:10 viewing ratio, supporting simultaneous multi-window viewing on dual displays via Acer GridVista™
-ATI Mobility™ Radeon® X1400 with up to 512MB HyperMemory™
-MPEG-2/DVD hardware-assisted capability
-S-video/TV-out (NTSC/PAL) support
-Acer Arcade™ featuring Acer CinemaVision™ and Acer ClearVision™ technologies
Storage Subsystem
-100GB S-ATA hard disc drive
-5-in-1 card reader, supporting Secure Digital (SD), MultiMediaCard (MMC), Memory Stick® (MS), Memory Stick PRO™ (MS PRO), xD-Picture Card™ (xD)
Media Drive
-DVD-Super Multi double-layer
Dimensions & Weight
-334 (W) x 243 (D) x 28/35 (H) mm
-2.35kg
Power Subsystem
-ACPI 2.0b CPU power management standard: supports Standby and Hibernation power-saving modes
-53.3W 4800 mAh Li-ion battery pack (6-cell)
-3-hour battery life
-Acer QuicCharge™ technology: 80% charge in 1 hour; 2-hour rapid charge system-off; 2.5-hour charge-in-use
-3-pin 90W AC adapter
Keyboard and Pointing Device
-88-/89-key keyboard with inverted "T" cursor layout; 2.5 mm (minimum) key travel
-Built-in Touchpad with 4-way integrated scroll button
-12 function keys; 4 cursor keys; 2 Windows® keys; hotkey controls; embedded numeric keypad, international language support
-4 easy-launch buttons: Internet, e-mail, Acer Empowering Key and user-programmable button
-2 front-access buttons: WLAN and Bluetooth®
Audio
-Intel® High Definition audio support
-S/PDIF (Sony/Philips Digital Interface) support for digital speakers
-Audio system with 2 built-in speakers
-Sound Blaster Pro™ and MS-Sound compatible
-Built-in microphone
Communication Interface
-Acer Video Conference featuring Voice and Video over Internet Protocol (VVoIP) support via Acer OrbiCam
-Acer OrbiCam 1.3-megapixel CMOS camera featuring:
-- 225-degree ergonomic rotation
-- Acer VisageON technology
-- Acer PrimaLite technology
-Modem: 56K ITU V.92 with PTT approval; Wake-on-Ring ready
-LAN: gigabit Ethernet; Wake-on-LAN ready
-WLAN: Intel® PRO/Wireless 3945ABG network connection (dual-band tri-mode 802.11a/b/g) Wi-Fi CERTIFIED™ solution, supporting Acer SignalUp™ -wireless technology
-WPAN: Bluetooth® 2.0+EDR (Enhanced Data Rate)
I/O Interface
-3 x USB 2.0 ports
-1 x ExpressCard slot
-1 x PC Card slot (one Type II)
-1 x 5-in-1 card reader (SD/MMC/MS/MS Pro/xD)
-1 x IEEE 1394 port (4-pin)
-1 x Fast infrared (FIR) port
-1 x External display (VGA) port
-1 x S-video/TV-out (NTSC/PAL) port
-1 x Headphones/speaker/line-out jack with S/PDIF support
-1 x Microphone-in jack
-1 x Line-in jack
-1 x Ethernet (RJ-45) port
-1 x Modem (RJ-11) port
-1 x DC-in jack for AC adapter
OS Preload
-Genuine Microsoft® Windows® XP Home
Software
-Acer Empowering Technology (Acer eDataSecurity / eLock / ePerformance / eRecovery6 / eSettings / eNet / ePower / ePresentation Management)
-Acer GridVista™
-Acer Arcade™
-Acer Launch Manager
-Norton AntiVirus™ *
-Adobe® Acrobat® Reader®
-CyberLink® PowerProducer™
-NTI CD Maker™
Gift Items
-Acer Bluetooth® VoIP phone
-40 GB External USB disk drive
-1 GB Thumbdrive
-1-year limited local and international Traveller's (carry-in) warranty
Friday, July 14, 2006
अनुगूँज में चुटकुलों की गुँज
******* २ *******
बंता सिंह जी ने लंदन के एक बार में प्रवेश किया और एक साथ ३ बीयर का आर्डर दिया. बीयर आने के बाद उन्होने तीनो में से बारी बारी एक एक घूंट ले ले कर बीयर खत्म की, फ़िर बैरे को बुलाया और ३ बीयर फ़िर से आर्डर की.
बैरा जो यह देख रहा था, बोला - साहब, अपने बार में काफ़ी स्टॉक है बीयर का, आप एक-एक कर के ही आर्डर करो, और बीयर का आनन्द लो.
बंता सिंह बोले - अरे नहीं, दरअसल, हम तीन भाई हैं, एक कनाडा में है, एक दुबई में है, और मैं यहाँ लंदन में हूँ. जब हम साथ रहते थे तो हम लोग बार में जाकर इकठ्ठे ही बीयर पिया करते थे. और जब हम अपनी अपनी नौकरी धंधे की वजह से बाहर निकले तो हमने आपस में यह वादा किया कि हम जहाँ भी
रहेंगे, इसी तरह अपने पुराने दिनों को याद करके बीयर पिया करेंगे.
बंता सिंह जी उस बार में नियमित रुप से आने लगे और उसी तरह,हर बार ३ बीयर आर्डर करते, १ १ करके तीनो खतम करते और चले जाते.
लगभग एक साल बाद, बंता सिंह जी बार में आये, मगर इस बार उन्होने सिर्फ़ २ ही बीयर आर्डर की. यह देख कर बार के सभी नियमित ग्राहक और बैरे चकित रह गये, और किसी अनैष्ट की आशंका करते हुये शांत हो गये. थोडी देर बाद एक बैरा आया और बोला - साहब, मैं आपके गम को और बढाना नहीं चाहता मगर,
हमारी पुरी सहानुभूति आपके साथ है.
बंता सिंह जी ने थोडा चकित होते हुये बैरे को घुरा फ़िर जोर से हँस पड़े - हो हो हो ...!! अरे नहीं जी. मेरे सभी भाई बिल्कुल सही सलामत हैं. बात बस इतनी सी है कि, कल ही से........मैने बीयर छोड़ दी है.
एक बार एक व्यक्ति बार में पहुँचा और एक लार्ज बीयर का आर्डर दिया. अभी बह पुरी भी खत्म नहीं कर पाया था कि उसे "प्राकृतिक बुलावा" आया. वह अपनी बीयर यूँही छोडकर नहीं जाना चाहता था, उसे डर था कि अगर उसने अपना ग्लास टेबल पर छोडा तो कोई और आके उसे पी जायेगा.
उसने एक तरकीब निकाली, अपने ग्लास के पास टेबल पर उसने एक नोट लिख कर छोडा - "मैंने इस बीयर में थूका हुआ है, इसे ना पियें"और बाथरूम की तरफ़ चला गया.
जब वापस आया तो बीयर तो उसे वैसे कि वैसे ही मिली, साथ ही एक नोट और मिला, जिसपर लिखा था - "मैंने भी थूक दिया है"
बन्तासिंह बार में बैठे हुये सबको झिला रहे थे कि उनकी बहुत पहुँच है, और वो सबको जानते हैं. सन्तासिंह ने सोचा चलो देखते हैं. उसने बन्तासिंह से १० रू की शर्त लगाई कि बार में अब जो भी पहला व्यक्ति आयेगा वो बन्तासिंह को नहीं पहचानता होगा.
तभी एक आदमी बार में घुसा और घुसते ही बन्तासिंह को देख कर आवाज दी - हे बन्तासिंह, कैसे हो?
शर्त हारने के बाद सन्तासिंह बोला कि चलो १०० रू की शर्त, जो भी सड़क पर पहला व्यक्ति मिलेगा वो तो तुम्हे नहीं जानता होगा.
दोनो सड़क पर निकले, एक आदमी पास से गुजरते हुये बोल गया - बन्तासिंह क्या हाल चाल?
खीज कर सन्तासिंह बोला कि शर्तिया अपने प्रधानमंत्री तो तुम्हे नहीं पहचानते होंगे. चलो १००० रू की शर्त.
दोनो प्रधानमंत्री निवास पहुँचे, वहाँ पहुँचते ही वहाँ तैनात सिपाही चिल्लाया - बन्तासिंह, तुम्हे पता है ना कि कोई भी इस तरह यहाँ नहीं आ सकता?
तभी प्रधानमंत्री का काफ़िला वहाँ से निकला, प्रधानमंत्री के सचिव ने चलती गाड़ी से हाथ हिला कर कहा - ओ बन्तासिंह, बडे दिनों बाद दिखे?
सन्तासिंह का दिमाग खराब. उसपर बन्तासिंह बोले, देखो मैं अभी जाके प्रधानमंत्री के साथ उपर उनकी बालकनी में आता हूँ.
बन्तासिंह कहे अनुसार प्रधानमंत्री के साथ उपर बाल्कनी में नजर आये. उन्होने नीचे सन्तासिंह को देख कर हाथ हिलाया और नीचे आये.
नीचे आकर देखा कि सन्तासिंह बेहोश पडे थे, सन्तासिंह को होश में लाकर पुछा कि क्यों मुझे प्रधानमंत्री के साथ देखकर बेहोश हो गये?
सन्तासिंह बोले - नहीं, जब तुम उपर थे तो कोई मेरे पीछे से आया और उपर इशारा कर के पुछा कि - ये बन्तासिंह बालकनी में किसके साथ खड़ा है?
एक 'बार' में एक बन्दा बड़ी खुबसूरत सी शर्ट पहन के आया. बारटेन्डर ने कहा - वाह! क्या कमीज़ है? कहाँ से ली?आदमी बोला - 'जार्जियो अरमानी'
थोड़ी देर बाद एक दूसरा आदमी अन्दर आया, उसकी पतलून देख कर बारटेन्डर ने कहा - वाह! क्या पतलून है? कहाँ से ली?दूसरा आदमी बोला - 'जार्जियो अरमानी'
थोड़ी देर बाद एक तीसरा आदमी अन्दर आया, उसके जूते देख कर बारटेन्डर ने पुछा- वाह! क्या जुते है? कहाँ से लिये?तीसरा आदमी बोला - 'जार्जियो अरमानी'
तभी एक आदमी नंग-धडंग बार में घुस गया, उसे देख कर बारटेन्डर चिल्लाया - ओ ओ, कहाँ घुसे आ रहे हो? कौन हो तुम?वो आदमी बोला - अरे मैं ही जार्जियो अरमानी हूँ.
एक बार एक पादरी 'बार' घुसा और जोर से चिल्लाया - "जो भी स्वर्ग जाना चाहता है, खड़ा हो जाय"
पादरी उनके पास पहुँचा और बोला - बेटे, तुम मरने के बाद स्वर्ग नहीं जाना चाहते?
बन्तासिंह बोले - मरने के बाद?? मैं तो समझा आप अभी के अभी एक लॉट ले जा रहे हो..!
बन्तासिंह को सुबह सुबह उनकी मम्मी ने उठाया और कहा - "उठो बेटे, ७ बज गये हैं, तैयार हो जाओ, स्कूल जाना है".
बन्तासिंह बोले - "नहीं, मैं स्कूल नहीं जाउंगा".
माताजी बोलीं - "चलो मुझे कोई २ कारण बताओ स्कूल ना जाने के".
बन्तासिंह बोले - "सारे बच्चे मुझे चिढाते हैं, और सारी की सारी टीचर भी मुझसे नफ़रत करती हैं".
माताजी बोलीं - "चलो चलो, बहाने मत बनाओ, और जल्दी तैयार हो जाओ".
बन्तासिंह बोले - "चलो आप मुझे कोई २ कारण बताओ स्कूल जाने के".
माताजी बोलीं - "पहला तो ये कि तुम ५२ साल के हो. और दूसरा ये कि तुम स्कूल के प्रिंसीपल हो".
सन्ता और बन्ता रात को एक बैंक में चोरी की नीयत से घुसे. अंधेरे में उन्हे बैंक में दो बडे भारी थैले मिले. जिन्हे वे उठा लाये, और एक एक थैले आपस में बाँट कर अपने अपने घर चले गये.
चोरी के लगभग एक महीने बाद दोनो फ़िर मिले.
सन्ता - तुम्हारे थैले में क्या निकला?
बन्ता - करीब १० लाख.
सन्ता - वाह! क्या बात है? तुमने उनका क्या किया?
बन्ता - एक घर खरीद लिया और एक सेकण्ड हेण्ड कार भी मिल गई. तुम्हारे थैले में क्या निकला?
सन्ता - कुछ नहीं यार, बिल ही बिल थे.
बन्ता - फ़िर तुमने उनका क्या किया?
सन्ता - क्या करता, ढेर सारे हैं यार, धीरे धीरे करके भर (चुकता कर) रहा हूँ.
सन्ता घर पहुँचा तो देखा कि उसकी बीबी अपना सामान बाँध रही है.
सन्ता - अरे! कहाँ जा रही हो?
श्रीमति सन्ता - लास वेगास!
सन्ता - लास वेगास? क्यों?
श्रीमति सन्ता - मुझे एक आदमी मिला है जो मुझे $400 देगा उस काम के जो तुम फ़्री में करते हो.
सन्ता कुछ देर सोचने के बाद अपना भी सामान बाँधने लगा.
श्रीमति सन्ता - तुम कहाँ जा रहे हो?
सन्ता - लास वेगास!
श्रीमति सन्ता - लास वेगास? क्यों?
सन्ता - ये देखने के लिये कि सिर्फ़ $800 में तुम साल भर कैसे निकालती हो.
लालू दाढी बनवाने के लिये नाई की दुकान में बैठा. नाई को लालू की दाढी बनाने में तकलीफ़ हो रही थी क्योंकि लालू के बाल वैसे ही छोटे छोटे थे.तो नाई ने अपने बक्से में से लकड़ी की एक छोटी सी गेंद निकाली और लालू को मुँह में रखने के लिये दी, जिससे दाढी अच्छे से बन सके.
दाढी बनने के बाद लालू ने पुछा - अगर यह गेंद मुँह से पेट में चली जाती तो क्या होता?
नाई बोला - क्या होता? तुम इसे अगले दिन सुबह (शौच के बाद) मुझे वापस कर देते, जैसे और लोगों ने दी थी.
एक बार एक आदमी कहीं जा रहा था कि उसे एक आवाज आई.
उसने देखा कि एक मेंढक उसे पुकार रहा था, मेंढक कह रहा था - अगर तुम मुझे 'किस' करोगे तो मैं एक खुबसूरत लड़की में बदल जाउंगा.
उस आदमी ने मुस्कुरा कर मेंढक को देखा और उसे उठा कर अपनी जेब में रख लिया.
थोड़ी देर बाद मेंढक फ़िर बोला - अगर तुम मुझे 'किस' करोगे तो मैं एक खुबसूरत अमीर लड़की में बदल जाउंगा और तुम मुझसे शादी कर सकते हो.
आदमी ने मेंढक को अपनी जेब से निकाला, उसे देखा और मुस्कुरा कर वापस अपनी जेब में रख लिया.
थोड़ी देर बाद मेंढक फ़िर बोला - अगर तुम मुझे 'किस' करोगे तो मैं एक खुबसूरत लड़की में बदल जाउंगा और तुम मुझसे शादी कर सकते हो, और मेरी सारी दौलत भी तुम ले सकते हो.
आदमी ने मेंढक को फ़िर अपनी जेब से निकाला, उसे देखा और मुस्कुरा कर वापस अपनी रखने लगा.
मेंढक चिल्लया - अरे, कैसे मर्द हो तुम? मैं तुमसे कह रहा हूँ कि अगर तुम मुझे 'किस' करोगे तो मैं एक खुबसूरत लड़की में बदल जाउंगा और तुम मुझसे शादी कर सकते हो, और फ़िर मेरी सारी दौलत भी तुम ले सकते हो.तुम मुझे 'किस' क्यों नहीं करते?
आदमी बोला - क्योंकि मैं एक सॉफ़्टवेअर इंजीनियर हूँ, प्रेमिका और बीबी के लिये मेरे पास समय नहीं है, मगर एक 'बोलने वाला' मेंढक वाकई 'कूल' है.
Monday, June 19, 2006
९ मई २००६ से १६ जून २००६
Friday, June 16, 2006
आरक्षण: एक और उदाहरण (व्यंग्य)
जब परिणाम आया तो सबने देखा कि चिंटू को ८३% अंक मिले हैं जबकि बंटू को मात्र ६१%.
मगर फ़िर भी इंजीनियरींग कॉलेज में बंटू कछुए को ही दाखिला मिलता है.
क्या आप जानते हैं क्यों??
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सोचिये सोचिये!!
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अरे खेल कोटे में यार.
आप लोग भी ना! जाने कहाँ से जात-पात वगैरह वगैरह सोचने लगते हैं.
भूल गये क्या? जब बचपन में, खरगोश और कछुए की दौड़ हुई थी तो उस दौड़ में कौन जीता था?
कछुआ ही तो जीता था ना? फ़िर??
Thursday, June 15, 2006
किताबें और मेरा बचपन
Wednesday, June 07, 2006
फ़िर लीजिये, पुनः हाजिर हुये, हाइकू लिये!!
हूँ परेशान,
ज़िंदगी की ये राह,
नहीं आसान!!ना कोई पास,
किस की करूँ आस,
दिल उदास!!घर से दूर,
हाँ, हूँ मैं मजबूर,
क्या है कसूर?ऐ मेरे नबी*,
अब तू बता, क्या है
यही जिंदगी?है अजनबी,
लगते अब सभी,
थे पास कभी!!झुमे आँगन,
खिले उठे ये मन,
करो जतन!!हे भगवान!!
सेव मी ओ' जीसस!!
खुदा रहम!!
Monday, June 05, 2006
दिल का हाल..कह तो दिया अब.. दिल को खोल..!!
हम भी जा पहुँचे और बड़े-बुढों को लिखता देख हमने भी हाथ मारा,
और सबसे पहली बनाई ये वाली:-
क्या होती है ये?
इसे कविता कहें?
है गणित ये!!
आज जब चुटकुलेबाजी से फ़ुर्सत मिली तो से घुमते घामते फ़िर हाइकू सेक्शन तक आ पहुँचे.
सोचा आज एक अदद और लिख दी जाय.
तो जनाब, बनाने बैठे.
अब जब बनते बनते उम्मीद से काफ़ी बड़ी बन गई तो मन में लालच आ गया.
सोचा परिचर्चा तक ही क्यों इसे सीमित रखें, ऐसे "कलात्मक पीस" को तो अपने चिठ्ठे पर ही जगह मिलनी चाहिये.
तो साहेबान, पेश-ए-खिदमत है,
हाल-ए-हाइकू:
सोचा बहुत,
लिखूँ मैं कुछ और,
है नया दौर!
'आरक्षण' है
'महाजन' भी तो है
जिंदगी बोर...!
मन में व्यथा
और है व्याकुलता
बाहर शोर..!!
काम करते,
हम व्यस्त दिखते,
मन में चोर..!!
विरह में हैं,
इंतजार में रहें,
कितना और..!!
सपना मेरा,
खुशियों का बसेरा,
सांझ या भोर..!!
समय हुआ,
हम चलते बने,
घर की ओर..!!
कामना भी है,
मन करता अब,
जाऐं इन्दौर..!!
बहुत हुआ,
अब मत कहना-
कि वंस मोर..!!
नाम है मेरा,
विजय वडनेरे,
ना कोई और..!!
Thursday, June 01, 2006
कुछ खास नहीं...
- पंकज भाई ने क्या कहा होगा?- लवन बागला भाई ने क्या जवाब दिया होगा?- नाहर जी क्या बोले?- जीतू भीया के श्रीमुख से क्या वचन निकले होंगे...इत्यादि इत्यादि.
Friday, May 26, 2006
आरक्षण: शायद ऐसा तो नहीं होगा...??
Tuesday, May 23, 2006
गिफ़्ट के लिये थैंक्यू!!
माना कि- आज की तारीख में उनकी ये बात हम पर फ़िट नहीं बैठती,
मगर जो बडे बुढों की टिप्पणियाँ आई है उसे देखकर तो यही लगता है कि इससे फ़िट और कुछ हो भी नहीं सकता.
वैसे,
जो आपने बताया है वो तो "गोडाऊन" में रखा होता है, हम तो "शोरूम" देखकर ही खुश हो जाते हैं.
बाद की तो बाद में कहेंगे, आज आपसे हम अपने आज-के हाल बताते हैं:-
डालर का मोह ले आया हमें अपने वतन से दूर,
टप्पे खाते खाते लो पहूँच गये आखिर सिंगापूर,
आखिर सिंगापूर, हमें तो नजर ये आया,
यहाँ से तो अच्छे बंगलौर में ही थे भाया,
वहाँ खाने का इंतजाम तो था ही पक्का,
हर चीज में नहीं मिलाते कोई "मक्का",
मिल जाता था वहाँ दाल चावल राजमा रोटी,
यहाँ तो खाओ मुर्गा मच्छी मेंढक और बोटी,
यहाँ का खाना खा के भी जाने क्या हो फ़ायदा,
रोटी पराठा नूडल्स, मैदे से ही बनाने का कायदा,
रोज रोज होटल में खाने पर हो पेट और पैसे की बरबादी,
इन्ही सब झंझटों को टालने के लिये कर बैठे हम शादी,
कर बैठे हम शादी, मगर अब भी छडे छडे हैं,
बीबी है भारत में और खुद अकेले यहाँ पडे हैं,
वो वहाँ हम यहाँ मत पुछो अब कैसा है ये मन,उनको तो अपने पास लाने का अब पूरा हैं जतन,
हाथ जोडे, सर फ़ोडा और दाँतो को पिसा,
पर अभी नही बना मोहतरमा का वीसा,
माना कि अपनी शादी तो हुई है नई नई,
पर मैडम को आते आते गुजर जाएगी मई,
जून जुलाई अगस्त बारिश में झुमेंगे,
बीबी के साथ ही पूरा सिंगापुर घुमेंगे,
अभी तो कर रहा हूँ कंजूसी औ' बचा रहा हूँ पैसा,
तभी तो एन्जॉय कर पाउंगा बर्डपार्क और सैण्टोसा,
आगे का तो पता नहीं हाल अभी का सुना रहा हूँ,
शादी होने के बाद भी साथ रहने को तडप रहा हूँ,
रोज सुबह तो आज भी दफ़्तर देर से जाता हूँ,
बाद की छोडो, अभी ही बॉस की डाँट खाता हूँ,
करनी माना मेरी ही है सो मैं उसे भर लुंगा,
बीबी रहेगी साथ में, उसे, जी भर तो देखुंगा,
काश मालिक मुझमे ये डालर का मोह ना जगाता,
कुछ समय ही सही, बीबी के साथ तो रह पाता,अगर अपनी मैडम को मैं अपने साथ ही यहाँ ले आता,कितना ही अच्छा होता मैं फ़ोर्स्ड बैचलर तो ना कहलाता.
माना कि ये आडी तेढी तुकबन्दी है,
मगर क्या करें आजकल तो दिल ही तेढा हो रहा है,
सीधी बात कहाँ से निकलेगी....?
याने कि- जस का तस धर रखा है!!
Monday, May 15, 2006
फ़ोर्स्ड बैचलर!!
Wednesday, May 03, 2006
आज सिंगापुर से आखिरी पोस्ट
Wednesday, April 26, 2006
Jewel in the palace - चांगजिंग
Monday, April 24, 2006
आरक्षण, एक नई सोच!
Sunday, April 16, 2006
मन व्यथित है
एक गांव था. उस गांव के लोग पीने के पानी के लिये दो कुँवों पर निर्भर थे. एक तो बिल्कुल ही पास में था, और दुसरा काफ़ी दुर था.एक दिन कहीं से एक जहरीला सांप गांव के पास वाले कुंऐ के पास आ गया और वहीं रहने लगा.जो भी उस कुंऐ के पास पानी लेने जाता था तो सांप उसे डस लेता था. इसके डर से, गांव वालों ने उस कुंऐ पर जाना छोड दिया था, और पानी लेने दूर के कुंऐ पर जाने लगे थे.इससे काफ़ी समय और श्रम नष्ट होता था.एक दिन उस गांव में एक साधु आया.गांव वालों ने उसे सांप के बारे में बताया. साधु सांप के पास गया और उसे अहिंसा का उपदेश दिया कि दूसरों का नुकसान करना, अहित करना बुरी बात है इत्यादि.जिसका सांप पर तुरंत प्रभाव पडा और उसने लोगों को डसना छोड दिया.जब लोगों को यह पता चला तो काफ़ी खुश हुये. उनमें से कुछ जोशीले लोग अपनी बहादूरी दिखाने के लिये सांप को परेशान भी करने लगे.जब सांप ने डसना छोड दिया तो लोगों ने उससे डरन भी छोड दिया.बच्चे तक आते जाते सांप को परेशान करते, उसे पत्थर मारते. मगर सांप तो बदल चुका था, उसने अहिंसा का रास्ता अपना लिया था.इतना परेशान होने के बावजूद वह अपना आपा नही खोता था.कुछ दिनों बाद वही साधु महाराज फ़िर गांव में आये. और फ़िर उस सांप के हालचाल देखने उसके पास गये.उसे घायल और कष्ट में देखकर काफ़ी दुखी हुये.तब उन्होने सांप को फ़िर उपदेश दिया-"दूसरों को नुकसान पहुँचाना तो बुरी बात है ही, मगर खुद का बचाव ना करना उससे भी बुरी बात है.तुम भले ही लोगों को डसो मत, परन्तु, कोई तुम्हें परेशान करने आये तो सिर्फ़ सहते मत रहो. कम से कम फ़ुँफ़कार के उसे दूर तो भगा सकते हो."तब से वो सांप डसता तो नहीं है, मगर जब कोई उसके पास उसे परेशान करने जाता है तो फ़ुँफ़कार के उसे भगा देता है.
Thursday, April 13, 2006
फ़ोरम के नाम चुनने की प्रक्रिया
Saturday, April 08, 2006
जरुरत क्या है... (जगजीत सिंह)
बे-सबब बात बढाने की जरुरत क्या है,हम खफ़ा कब थे, मनाने की जरुरत क्या है!बे-सबब बात बढाने की जरुरत क्या है,रंग आँखो के लिये, बू है दिमागों के लिये,रंग आँखो के लिये, बू है दिमागों के लिये,फ़ूल को हाथ लगाने की जरुरत क्या है!...हम खफ़ा कब थे, मनाने की जरुरत क्या है!तेरा कूचा, तेरा दर, तेरी गली काफ़ी है,तेरा कूचा, तेरा दर, तेरी गली काफ़ी है,बेठिकानों को, ठिकाने की जरुरत क्या है!..हम खफ़ा कब थे, मनाने की जरुरत क्या है!दिल से मिलने की तमन्ना ही नहीं जब दिल में,दिल से मिलने की तमन्ना ही नहीं जब दिल में,हाथ से हाथ, मिलाने की जरुरत क्या है!..हम खफ़ा कब थे, मनाने की जरुरत क्या है!बेसबब बात बढाने की जरुरत क्या है,हम खफ़ा कब थे, मनाने की जरुरत क्या है!
Friday, April 07, 2006
समझते थे मगर फ़िर भी...(पार्ट २)
कभी खुद का दिमाग भी तो ना चलाया हम ने,
लिखने के जोश में कर डाला है घोटाला हमने!!
Thursday, April 06, 2006
झेलिये....
किसी ने जादू टोना किया है!
Tuesday, April 04, 2006
समझते थे मगर फ़िर भी...(जगजीत सिंह)
वैसे तो जगजीत सिंह जी की सारी गजलें बहुत अच्छी होती हैं,
बोल और आवाज, दोनो दिल की गहराईयों तक उतरते हैं।
मुझे उनमें से कुछ-एक, विशेष रुप से पसन्द हैं।
पेश-ए-खिदमत है उन्ही चुनिन्दा गजलों में से एक:
समझते थे, मगर फ़िर भी न रखी दुरियाँ हमने,
चरागों को जलाने में जला ली ऊँगलियाँ हमने।कोई तितली हमारे पास, आती भी तो क्या आती,
सजाए उम्र भर कागज के फ़ुल-ओ-पत्तियाँ हमने,
..चरागों को जलाने में जला ली ऊँगलियाँ हमने।युँ ही घुट घुट के मर जाना हमें मँजुर था लेकिन,
किसी कमजर्फ़ पर जाहिर ना की मजबुरियाँ हमनें,
..चरागों को जलाने में जला ली ऊँगलियाँ हमने।हम उस महफ़िल में बस इक बार सच बोले थे ऐ गालिब,
जुबां पर उम्र भर महसूस की चिंगारियाँ हमने,
..चरागों को जलाने में जला ली ऊँगलियाँ हमने।समझते थे, मगर फ़िर भी न रखी दुरियाँ हमने,
चरागों को जलाने में जला ली ऊँगलियाँ हमने।
Friday, March 31, 2006
एक दीवाना नेट पर...
एक दीवाना नेट पर,
वर्डप्रेस पर या ब्लागर पर,
लिखने का बहाना ढुंढता है,
और छपने का बहाना ढुंढता है.
इस हिन्दी ब्लागिंग की दुनिया में अपना भी कोई ब्लाग होगा,
अपने पोस्टों पर होंगी टिप्पणियां, टिप्पणियों पे अपना नाम होगा,
देवनागरी के यूनिकोड फ़ोण्टों में लिखने का जतन वो ढुंढता है,
ढुंढता है,
लिखने का बहाना ढुंढता है,
और छपने का बहाना ढुंढता है.
एक दीवाना नेट पर,
वर्डप्रेस पर या ब्लागर पर,
लिखने का बहाना ढुंढता है,
और छपने का बहाना ढुंढता है.
जब सारे हिन्दी में...
सारे? और हिन्दी में!
जब सारे हिन्दी में लिखते हैं, सारा नेट हिन्दी हो जाता है,
सिर्फ़ इक बार नहीं फ़िर वो लिखता, हर बार लिखता जाता है,
पल भर के लिये..
पल भर के लिये..
किसी ब्लागिंग का अवार्ड भी जीतना चाहता है,
चाहता है,
लिखने का बहाना ढुंढता है,
और छपने का बहाना ढुंढता है.
एक दीवाना नेट पर,
वर्डप्रेस पर या ब्लागर पर,
लिखने का बहाना ढुंढता है,
और छपने का बहाना ढुंढता है.
Wednesday, March 29, 2006
मिल गया, हमको तोहफ़ा मिल गया...
काफ़ी दिनों बाद एक 'इंटैलेक्चुअल' तोहफ़ा मिला है. सधन्यवाद एवं सहर्ष अंगीकृत!!
तोहफ़ा मिलते ही सोचा टिप्पणी दी जाये, मगर फ़िर लगा कि सिर्फ़ टिप्पणी देना रवि जी के दिये गये तोहफ़े की शान में गुस्ताखी होगी, इसलिये 'पलट पोस्ट' कर रहा हूँ.
अब लोगबाग सोच रहे होंगे कि इसमे 'इंटैलेक्चुअलपना' कहाँ है, तो बंधुवर, अगर कोई जिन्दगी के फ़लसफ़े साफ़ सुंदर सटीक शब्दों में आपको टिका रहा है तो वह भले लोगों की भाषा में 'इंटैलेक्चुअलिटी' ही कहलाती है.
वैसे मेरा तो मानना है कि जीवन में ३ "प" का बडा महत्व है, और इन्ही तीन "प" के कारण सब लोग पागल रहते हैं.
ये ३ 'प' हैं- प्यार, पैसा और परेशानी.
इन तीनों का काम एक दुसरे के बिना नहीं चलता, या यूँ कहें कि ये तीनो एक दुसरे के पूरक हैं तो भी अतिश्योक्ति ना होगी.
प्यार और पैसा जहाँ आ जाता है, वहाँ पीछे पीछे परेशानी भी आ ही जाती है. मगर जहाँ प्यार और पैसा नहीं; मियां जहाँ इनमें से कोई नहीं वहाँ पहले ही से परेशानी के अलावा क्या रहेगा?
रवि जी ने बडी सफ़ाई से हमें (सबको) ये समझाने की कोशिश की है कि-'खबरदार, अभी भी वक्त है, मान जाओ', मगर क्या करें? 'दिल तो पागल है, दिल दीवाना है..'
अब अपना तो 'दिल है कि मानता नहीं..', और फ़िलहाल तो प्रसन्न हैं और इंतजार कर रहे हैं (रवि जी की लिस्ट में अंतिम से तीसरा बिन्दु).
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चाहता तो था कि और बहुत लिखुँ मगर क्षमा चाहता हूँ.
पहली बार अपने जन्मदिन (जीतू भैय्या, हम तो "जन्मदिन" ही बोलेंगे आप चाहे जो समझिऐ) पर अपने प्रियजनों से काफ़ी दूर बैठा हूँ, खुद फ़ोन कर कर के शुभकामनाऐं लेनी पड रही है, और 'होम सिकनेस', 'फ़्रेण्ड्स सिकनेस', 'इंडिया सिकनेस' न जाने कौन कौन सी सिकनेसें होने लगी है.
अब तो और लिखा नहीं जा रहा.
खत को तार और थोडे को बहुत समझिऐ.
शब्ब-बह-खैर!!
Friday, March 24, 2006
हिन्दी का शब्दकोष
क्योंकि थोडी देर पहले तक मुझे भी नहीं पता था.
यहाँ आप अंग्रेजी के शब्दों की हिन्दी में अर्थ सहित व्याख्या खोज सकते हैं:
शब्दकोष (http://www.shabdkosh.com)
हममें से कोई इसे भी समृद्ध बनाने में अपना योगदान दे सकता है.
Wednesday, March 22, 2006
फ़िर ना कहना कि बताया नही...
सांप निकल जाय और आप लोगों के पास लकीर पीटने के अलावा कुछ ना बचे!
या फ़िर चिडिया खेत चुग जाये और आप लोग बस पछताते ही रह जायें!
या फ़िर "का वर्षा जब कृषि सुखानी" इस टाईप का कुछ हो जाये!
याने कि बचपने में सुनी हुई ऎसी कोई भी कहावत आपकी आपबीती ना बन जाये,
और आप लोगों को मुझसे मुँह छिपाते फ़िरना पडे.
ऎसी किसी भी शर्मनाक स्थिति से आपको बचाने के लिये ही मैं आज ये लिखने बैठा हूँ.
तो बन्धुओं, भाईयों और बहिनों, दोस्तों और दोस्तनियों, नियमित मेरे ब्लाग पर भ्रमण करने वालों, और अनियमित रुप से पधारने वालों, यहाँ तक कि भूले भटके आने वालों से भी मेंरा नम्र निवेदन है कि आप लोग अभी से बचत करना प्रारंभ कर दीजिये, बाद में पैसे वगैरह की किल्लत का बहाना नहीं चलेगा और ना ही हम ये सुनेंगे कि महीने के आखिरी दिन है वगैरह वगैरह.
क्या? क्या पुछ रहे हैं? क्यों?
अरे! आज से ठीक ७ दिनों बाद हमारी जन्म की वर्षगांठ है,
याने कि सालगिरह,
याने कि जन्मदिन,
याने कि अपना हैप्पी बड्डे टू यू है यार!
क्या कहा? जमा की गई धनराशि का क्या करना है ?
अरे यार, आप भी अजीब हो, अरे जन्मदिन पर खाली हाथ चले आओगे क्या?
कोई गिफ़्ट-विफ़्ट लाने का इरादा है कि नही?
जैसे:-
जीतू भैय्या कुवैत से एक आध छोटा मोटा तेल का कुँआ देने वाले हैं,
मिश्राजी अपनी रसायनशास्त्र की कुटी में से मेंरे लिये कुछ "आयु घटाओ" वटी बना कर देने वाले हैं,
रवि जी तो मेरे लिये अपने कुछ अनुवाद लाने वाले हैं,
तरुण और रमण कौल जी तो अमरीका से कुछ भारी ही चीज ला रहे लगता है,
पंकज एवं संजय बेंगाणी जी अहमदाबाद से मेरे लिये ताजा तरीन ब्लाग शुरु करने वाले हैं,
अनुनाद सिंह जी तो अपने इन्दौर ही के हैं, नमकीन और सराफ़े की मिठाईयों के अलावा कुछ और लाने का सवाल ही कहाँ,
हाँ, समीर लाल जी कनाडा से उडनतश्तरी ही भेजने वाले हैं ऎसा लगता है.
हाँ बाकी आप लोग आपस में सिन्क्रोनाईज्ड रहिये, ऎसा ना हो कि कोई एक ही गिफ़्ट दुबारा मिल जाय.
तो मित्रों याद रहे २९ मार्च २००६ (सन भी लिख दिया है ताकि गडबडी की कोई गुंजाईश ना रहे) तक आप सबके तोहफ़े मिल जाने चाहिये, वरना ऎसा 'कुलबुलाऊंगा' कि आप लोग अपना ब्लाग भी मेरे नाम कर देंगे.
आपका अपना - विजय वडनेरे